आज यानी 28 दिसंबर को भारत के 2 बड़े बिजनेसमैन का जन्मदिन है। रतन टाटा 86 साल के हो गए हैं, जबकि रिलायंस के फाउंडर धीरूभाई अंबानी का ये 91वां जन्मदिन है।
धीरूभाई ने जहां कपड़े के कारोबार से एक ऐसी कंपनी खड़ी की जिसका कारोबार एनर्जी, रिटेल से लेकर मीडिया-एंटरटेनमेंट और डिजिटल सर्विस में फैल गया है। ये कंपनी सुबह के नाश्ते से रात के बिंज वॉच तक जिंदगी का हिस्सा है।
तो वहीं रतन टाटा ने उन्हें सौंपी गई विरासत को एक नए मुकाम पर पहुंचाया है। उन्होंने एअर इंडिया को अपने एंपायर में शामिल किया है। विदेशी कंपनी फोर्ड के लग्जरी कार ब्रांड लैंडरोवर और जगुआर को भी अपने पोर्टफोलियो में जोड़ा।
इस मौके पर यहां हम दोनों दिग्गजों के जीवन से जुड़े रोचक किस्से बता रहे हैं। ये किस्से एक तरह से बिजनेस लेसन भी है जो लाइफ में बड़े काम के साबित हो सकते हैं…
बात करे साल 1998 का टाटा मोटर्स ने अपनी पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका लॉन्च की थी। यह रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था लेकिन इस में इनको सफलता नहीं मिली और कंपनी घाटे में चली गई।
टाटा मोटर्स ने एक साल के भीतर ही अपने कार कारोबार को बेचने का फैसला ले लिया था। 1999 टाटा ने अमेरिका की बड़ी कंपनी फोर्ड के साथ डील करने का फैसला लिया। फोर्ड से डील होने के बाद कंपनी ने बोला यह डील करके टाटा पर ही एहसान करेंगे।
यह टाटा कंपनी के लिए बड़े अपमान की बात थी जिसके बाद टाटा ने फैसला लिया की अब वह कार प्रोडक्शन नहीं बेचेंगे आपको बता दे 9 साल के बाद साल 2008 का था जब अमेरिका की कंपनी फोर्ड को बड़ा नुक्सान हुआ।
जिसके बाद रतन टाटा ने फोर्ड के दो पॉपुलर ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 बिलियन डॉलर में करोड़ लिया। रतन टाटा ने एक बार बारिश के मौसम में टू वीलर पर एक परिवार के 4 लोगो को भीगते हुए देखा तोह उन्हें खराब लगा इसी घटना ने उन्हें टाटा नैनो के निर्माण की प्रेरणा दी। रतन टाटा ने इंजीनियर को बुलाया और 1 लाख में कार बनाने का काम सौप दिया। जिससे एक माध्यम वर्ग के आदमी आराम से यह कार खरीद सके। पर लोगो को यह कार पसंद नहीं आई और यह कार भी फ्लॉप हो गई। जिसके कारण साल 2020 में इसका प्रोडक्शन भी बंद करना पड़ा। और बात करे धीरूभाई की तो साल था 19481 धीरूभाई अम्बानी 16 साल की उम्र में काम करने यमन के एडेन शहर जा कर वेतन 300 रूपए तक हो गई थी
उस समय यह रकम बड़ी थी। धीरूभाई के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था इसलिए 1954 में वह वह से भारत लौट कर आ गए। उन्होंने 1955 से अपनी किस्मत
मुंबई में व्यावसायिक यात्रा शरू कर दी। मसालों का इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट और कपड़ो का काम की शुरुवात कर दी। धीरे धीरे बिज़नेस पूरे तरीके से कपड़ो पर दिया 1966 में रिलायंस टेक्सटाइल’ के नाम से गुजरात के अहमदाबाद में एक कपड़ा मिल की शुरुआत की थी और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. धीरू ने अपने बिजनेस में मुनाफे से ज्यादा सामान और उसकी बेहतर क्वालिटी पर ध्यान दिया था.
बात हैं 18 मार्च 1982 की कुछ ब्रोकर्स ने रिलायंस के शेयर्स को शार्ट कर के कमाई का प्लान बनाया अम्बानी को पता चला तो उन्होंने दूसरे ब्रोकर्स को
शेयर खरीदने को कह दिया। कोलकाता में बैठे ब्रोकर्स रिलायंस के शेयर बेच रहे थे तो धीरूभाई के ब्रोकर्स लगतार शेयर खरीद रहे थे इससे शेयर को खरीदने का प्लान फ़ैल हो हो गया। अब जब शेयर को शोर्ट करने वाले ब्रोकर्स की शेयर वापस करने की बारी आई तो उनके पास शेयर ही नहीं थे ऐसे में ब्रोकर्स ने घटा उठाते हुए शेयर वापस करने के लिए जहा से भी हुआ जिस दाम पर मिले वहा से ख़रीदा 18 मार्च 1982 से शुरू हुआ दंगल 10 मई 1982 तक चला था।