नीरज कुमार
रोम में एक संत हुए थे जिन्हें रोमन सम्राट ने कैद कर लिया था क्यूंकि युद्ध के माहौल में हुक्म था की कोई भी सैनिक विवाह अदि से दूर रहेगा और ये संत छुप छुप कर सैनिकों की शादी करवाते थे, अतः सैनिक इन्हें प्रेम का देवता मानते थे | उन संत के जन्म दिन को समयान्तर्गत वेलेंतायींन दिवस के रूप में मनाया जाने लगा एवं प्रेमी प्रेमिका को फुल देकर अपने प्रेम का इज़हार करने लगे | भारत में आज से 20 वर्ष पहले हमने कभी इस दिन के बारे में नही सुना, इसका आना तो तब हुआ जब इकॉनमी को खोल दिया गया और बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने विस्तार के लिए नया बाज़ार ढूँढने लगी एवं भारत से अच्छा बाज़ार कोई नही था, तब आर्ची जैसी कंपनिया अपने कार्ड एवं उपहार सामग्री की बिक्री के नए नए ढंग खोजने लगी उसी की एक पैदाईश यह दिवस हुआ ||
आज के युवा इस दिन को दीपावली होली से भी बड़ा त्यौहार मानने लगे क्यूंकि खुली छुट खिलन्दरेपन का खुला प्रदर्शन, यौन वासना तृप्ति का उत्सव जो बन गया यह,कभी नहीं सोचा इन्होने प्रेम एक पूजा है, सात्विक अनुभूति है, एक संवेदना है, प्रेम का प्रदर्शन एक व्यापार है, एक ओछापन है, प्रेम को इतना सस्ता बना कर इसे यूँ दिखाना शोभनीय नही |
भारतीय संस्कृति कितनी महान है इसका परिचय प्रेम की परिभाषा से मिलता है ,ढाई आखर का प्रेम कबीर का त्याग है, मीरा की आस्था है, रहीम का संस्कार है, सुर की तपस्या है, भारतीय प्रेम शुद्ध दर्शन का विषय है यह प्रदर्शन का विषय नहीं | जब कृष्ण राधा से प्रेम करते हैं, रास होता है तो गूढता समझे आत्मा का परमात्मा में विलीन होना रास है, यह अध्यात्म की चरम सीमा है ,इस अद्भुत अध्यात्म को समझाने के लिए गोपी गीत बना, यह काम को प्रदर्शित नहीं करता वरन काम पर आत्मा की विजय का दर्शन है |