RSS policy : मोहन भागवत के दलितों के बयान पर राजद ने कहा-हंस अब तुम्हारे कहने से कौवा नहीं बनेंगे

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राष्ट्रीय जनता दल के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर कमेंट किया गया है। अरे भागवत जी घोड़ा, पानी और मंदिर की समानता दलितों-पिछड़ों से लड़कर हासिल कर ली अब ये लड़ाई तो सरकारी नौकरियों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व कॉलेजियम सिस्टम खत्म कर जज बनने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उस पर बात करो उस पर। हंस अब तुम्हारे कहने से कौआ नहीं बनेंगे, समझे चितपावन भागवत जी ? लोग दौड़ेंगे तो कितनी नौकरी दे सकते हैं ?बोले मोहन भागवत तो लालू प्रसाद यादव ने महाझूठ, महाकपटी पाठशाला कह ऐसे कसा तंज।

लोगों का रिएक्शन

दिलीप मंडल नाम के ट्विटर हैंडल से भागवत के बयान पर लिखा गया, जब एससीएसटी,ओबीसी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हमारे लोग जज क्यों नहीं हैं, कॉलेजियम सिस्टम क्यों है जो भागवत जी कह रहे हैं कि चलो तुमको साथ बैठाकर खाना खिला देते हैं। ज्यादा नाराजगी है तो एक ही श्मशान में सबकी लाशों के जलने का बंदोबस्त कर देते हैं। चलो मंदिर भी ले चलेंगे। खुश ? अरुण नाम के ट्वीटर यूजर द्वारा लिखा गया कि संघ की मानसिकता के लोगों ने एक दलित को भारत का राष्ट्रपति बनाया और आदिवासी को भारत का राष्ट्रपति बनाया। ऐसे ही बदलाव होते रहेंगे तो समाज अपने आप सुधर जाएगा।

दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरा के के दिन नागपुर के आरएसएस कार्यालय में अपने वार्षिक संबोधन के दौरान रोजगार, महिला सशक्तिकरण, जनसंख्या नीति और दलितों के साथ होने वाले भेदभाव का जिक्र किया, जिस पर राष्ट्रीय जनता दल के ट्विटर हैंडल से मोहन भागवत पर तंज कसा गया। आरएसएस प्रमुख के बयान पर सोशल मीडिया यूजर्स ने भी कई तरह की प्रतिक्रियाएं दी हैं।

मोहन भागवत ने दलितों को लेकर दिया गया ऐसा बयान

मोहन भागवत ने सामाजिक समरसता की बात करते हुए कहा कि संविधान के कारण राजनीतिक और आर्थिक क्षमता का पद तो बन गया है लेकिन सामाजिक समता को लाए बिना वास्तविक और टिकाऊ बदलाव नहीं आएगा। डॉ. भीमराव अंबेडकर का जिक्र कर उन्होंने कहा कि हमें राजनीतिक स्वतंत्रता तो मिल गई है लेकिन सामाजिक आजादी नहीं मिली है।
मंदिर पानी और श्मशान पर कही ऐसी बात

अपने संबोधन के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि जाति के आधार पर विभेद करना अधर्म है। मंदिर पानी और श्मशान सबके लिए एक होने चाहिए। इसकी व्यवस्था तो सुनिश्चित करनी ही होगी। ये घोड़ी चढ़ सकता है वो घोड़ी नहीं चढ़ सकता। ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें तो हमें खत्म करनी होगी। सबको एक दूसरे का सम्मान करना होगा। इसके बारे में स्वयं को ही नहीं बल्कि समाज को भी सोचना होगा।

 

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