नई सुविधाओं के साथ अपडेट किया गया एप्पल स्टोर ऐप

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सैन फ्रांसिस्को | टेक दिग्गज ऐप्पल ने आईओएस के लिए ऐप्पल स्टोर ऐप को एक नई सुविधा के साथ अपडेट किया है जो उपयोगकर्ताओं के लिए आइटम को सूचियों में सहेजना और उन सूचियों को एप्पल विशेषज्ञों के साथ साझा करना आसान बनाता है।

एप्पलइनसाइडर की रिपोर्ट के अनुसार, एक बार जब कोई उपयोगकर्ता किसी आइटम या उत्पाद को सूची में सहेज लेता है, तो वे उन्हें एक नए सहेजे गए आइटम अनुभाग में ढूंढ सकते हैं जो कि एप्पल स्टोर खाता पृष्ठ से सुलभ है।

उपयोगकर्ता सहेजे गए आइटम को किसी एप्पल विशेषज्ञ के साथ इन-स्टोर या ऑनलाइन भी साझा कर सकते हैं। किसी सूची से संबंधित सत्र समाप्त होने के बाद, उपयोगकर्ता नोट्स और सुझावों के साथ सत्र का संक्षिप्त विवरण देख सकते हैं।

इसके अलावा, एप्पल स्टोर ऐप को उत्पादों के ऑडियो विवरण के साथ भी अपडेट किया गया है।

यह सुविधा उपयोगकर्ताओं को विभिन्न एप्पल उपकरणों और उत्पादों के बारे में सुनने देती है, भले ही वे उत्पाद वीडियो को स्क्रीन पर देखने में असमर्थ हों।

एप्पल स्टोर ऐप ऐप स्टोर से मुफ्त डाउनलोड किया जा सकता है।

आरएसएस ने आजादी के संघर्ष में हिस्सा नहीं लिया; और वह गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार है – ये दो तथ्य नए नहीं हैं। आजादी के बाद से आरएसएस के खिलाफ इन्हें अनेक बार दोहराया जा चुका है। आरएसएस आजादी के संघर्ष में हिस्सेदारी का दावा तो ठोंक कर नहीं करता, अलबत्ता गांधी की हत्या में संलिप्तता को गलत आरोप बताता है। जब से केंद्र में मोदी-सरकार बनी है, सेकुलर खेमा इन दो तथ्यों को जोर देकर लगातार दोहरा रहा है। पिछले कुछ महीनों से उसके इस उद्यम में काफी तेजी आई है। शायद वह सोचता है कि इन दो बिंदुओं को लगातार सामने लाकर वह आरएसएस को देश के लोगों की निगाह में गिरा देगा, जिसका राजनैतिक फायदा उसे मिलेगा। सेकुलर खेमे की इस सोच पर ठहर कर विचार करने की जरूरत है। जिस रूप में और जिस मकसद से सेकुलर खेमा इन दो बिंदुओं को उठा कर आरएसएस पर हमला बोलता है, उसकी आजादी और गांधी के लिए कोई सार्थकता नहीं है। सार्थकता तब होती अगर सेकुलर खेमा गंभीरता और ईमानदारी से सवाल उठाता कि आजादी के संघर्ष से द्रोह और गांधी की हत्या जैसे संगीन कृत्य करने के बावजूद भाजपा नरेंद्र मोदी के सीधे नेतृत्व में बहुमत सरकार बनाने में कैसे कामयाब हो गई? वह इस गहरी पड़ताल में उतरता कि क्या आजादी और गांधी भारतवासियों के लिए वाकई महत्वपूर्ण नहीं रह गए हैं? अगर नहीं रह गए हैं तो उसके क्या कारण हैं? तब सेकुलर खेमा शायद आत्मालोचना भी करता कि यह स्थिति बनने में वह खुद कितना जिम्मेदार है? और अपने से यह प्रश्न पूछता कि क्या वह खुद आजादी के मूल्य और गांधी की प्रतिष्ठा चाहता है?

 

अपने को किसी भी प्रश्न से परे मानने वाला सेकुलर खेमा तर्क दे सकता है कि यह केवल 31 प्रतिशत मतदाताओं के समर्थन की सरकार है; बाकी का भारतीय समाज आजादी और गांधी को मान देने वाला है, जिसे वह आरएसएस के खिलाफ सचेत कर रहा है। यहां पहली बात तो यह कि 31 प्रतिशत नागरिकों का आजादी और गांधी से विमुख होना सेकुलर खेमे के लिए कम चिंता की बात नहीं होनी चाहिए। यह समाज का बड़ा हिस्सा बैठता है। वैचारिक और सांस्थानिक स्तर पर राष्ट्रीय जिम्मेदारी निभाने वाला सेकुलर खेमा समाज को तेरे-मेरे में बांट कर नहीं चल सकता। बात यह भी है कि क्या सेकुलर खेमा आश्वस्त है कि जिन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिया, वे सब आजादी के संघर्ष और गांधी में आस्था रखने वाले लोग हैं? वस्तुस्थिति यह है कि बाकी 69 प्रतिशत मतदाताओं का मत जिन नेताओं और पार्टियों को मिला है, वे सभी नेता और पार्टियां कमोबेस नवउदारवाद के पक्षधर हैं। कहने की जरूरत नहीं कि नवउदारवाद का पक्षधर आजादी के मूल्यों और गांधी का विरोधी होगा। लिहाजा, अगर सवाल यह पूछा जाएगा कि आजादी का विरोध और गांधी की हत्या करने के बावजूद आरएसएस-भाजपा ने बहुमत की सरकार कैसे बना ली, तो कुछ आंच पूछने वालों पर भी आएगी। उस आंच से बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। क्योंकि जो तथ्य आप नहीं देखना चाहते, छिपाना चाहते हैं, ऐसा नहीं है कि लोग भी उन्हें नहीं देख रहे हैं।

 

आगे बढ़ने से पहले यह स्पष्ट कर दें कि गांधी को सभी के लिए अथवा किसी के लिए भी मानना जरूरी नहीं है। लेकिन नहीं मानने वालों को बार-बार उनकी हत्या का हवाला देकर राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। गांधी की विरोधी मायावती और दलित अस्मिता के वाहक दलित बुद्धिजीवी उनकी हत्या की कभी दुहाई नहीं देते। यही स्थिति आजादी के मूल्य की भी है। जरूरी नहीं है कि सभी लोग आजादी के संघर्ष और उस दौर में अर्जित मूल्यों का समर्थन करें। लेकिन फिर ऐसे लोगों को आजादी के संघर्ष में हिस्सा नहीं लेने के लिए आरएसएस पर हमला नहीं बोलना चाहिए।

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