भारतीय समाज के जीवन में श्रीराम 

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 प्रियंका सौरभ

 

सारांश

 

भगवान श्रीराम भारतीय संस्कृति के ऐसे वटवृक्ष हैं, जिनकी पावन छाया में मानव युग-युग तक जीवन की प्रेरणा और उपदेश लेता रहेगा। जब तक श्रीराम जन-जन के हृदय में जीवित हैं, तब तक भारतीय संस्कृति के मूल तत्व अजर-अमर रहेंगे। श्रीराम भारतीय जन-जीवन में धर्म भावना के प्रतीक हैं, श्रीराम धर्म के साक्षात् स्वरूप हैं, धर्म के किसी अंग को देखना है, तो राम का जीवन देखिये, आपको धर्म की असली पहचान हो जायेगी। वास्तव में हमें जब भी कोई काम करना हो तो हम भगवान राम की ओर देखते हैं। भगवान राम की जय बोलते हैं। राम हमारे मन में बसे हैं। राम हमारी संस्कृति के आधार हैं। देश के लब्धप्रसिद्ध युवा दोहाकार डॉ. सत्यवान सौरभ ने अपने दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ में श्री राम के बारे बड़ी गहराई से लिखा है -राम नाम है हर जगह, राम जाप चहुंओर। चाहे जाकर देख लो, नभ तल के हर छोर।। राम हमारे मन में बसे, श्रीराम हमारी संस्कृति है, हमारी बोलचाल, प्यार, उलाहनों और कहावतों में सदियों से रचे बसे है श्रीराम।

 

बीज-शब्द-

राम, संस्कृति, मर्यादा, लोकजीवन, कहावतें, लोकगीत, जनमानस, आदर्श, प्रेरणा, रामायण, आराध्य।

 

 

 

विषय प्रवेश-

 

राम-राम जी। हरियाणा में किसी राह चलते अनजान को भी ये ‘देसी नमस्ते’ करने का चलन है। यह दिखाता है कि गीता और महाभारत की धरती माने जाने वाले हरियाणा के जनमानस में श्रीकृष्ण से ज्यादा श्रीराम रचे-बसे हैं। हरियाणवियों में रामफल, रामभज, रामप्यारी, रामभतेरी जैसे कितने ही नाम सुनने को मिल जाएंगे। लोकजीवन में, साहित्य में, इतिहास में, भूगोल में, हमारी प्रदर्शनकलाओं में उनकी उपस्थिति बताती है; राम किस तरह इस देश का जीवन हैं। राम का होना मर्यादाओं का होना है, रिश्तों का होना है, संवेदना का होना है, सामाजिक न्याय का होना है, करुणा का होना है। वे सही मायनों में भारतीयता के उच्चादर्शों को स्थापित करने वाले नायक हैं। लोकमन में व्याप्त इस नायक को सबने अपना आदर्श माना। राम सबके हैं। वे कबीर के भी हैं, रहीम के भी हैं, वे गांधी के भी हैं, लोहिया के भी हैं। राम का चरित्र सबको बांधता है। अनेक रामायण और रामचरित पर लिखे गए महाकाव्य इसके उदाहरण हैं। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त स्वयं लिखते हैं- राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाए, सहज संभाव्य है।

 

हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ हिम्मत सिंह के अनुसार हरियाणा के आम जनमानस में बरसात होने पर रामजी खूब बरस्या या बरसात न होने पर रामजी बरस्या कोनी का उलाहना सुनने को मिलेगा। किसी से अच्छा प्यार-पहचान जताने के लिए उस गेल्यो बढ़िया राम-राम है या अनजानापन जताने के लिए उसतै तो मेरी राम-राम बी कौना, कहवात का इस्तेमाल करते हैं। यहां सांग में राम के प्रसंग जुड़े हैं तो भजनों में भी राम का जिक्र मिलता है। ‘लाड्डू राम नाम का खाले नै हो ज्यागा कल्याण’.. या ‘मनै इब कै पिलशन मिल जा मैं तो ल्याऊ राम की माला’… जैसे हरियाणवी भजन हिट रहे हैं।

किसी को सांत्वना देने के लिए ‘राम भली करैगा या आंधे की माक्खी राम उड़ावै’ जैसी कहावतें हैं। परसां चढ़ता मेरा बाबुल बुझ्या, कहो तो कातिक नाल्हू हो राम। कार्तिक न्हाणा बड़ा दुहेला, खुशी तैं कार्तिक न्हाले बेटी कहै सै योह राम। यह हरियाणा का एक लोकगीत है। इसमें नवबाला अपने परिवार से कार्तिक नहाने की अनुमति मांगने के लिए अनुनय विनय कर रही है। जवाब में उनके परिजन राम के नाम पर कार्तिक नहाने की अनुमति दे रहे हैं। यह लोकगीत अपने आप में बताने के लिए पर्याप्त है कि हरि की धरती हरियाणा के लोकगीत, लोक रागनी और लोक भजन में भी प्रभु राम रचे-बसे हैं। यहां राम के बिना कहीं भी सार्थकता दिखाई नहीं देती। कार्तिक मास के लोकगीत व लोक भजन तो राम की स्तुति में ही गाए जाते हैं। हरियाणा में राम के नाम पर कई गीत गाए जाते हैं। हरियाणा का लोकगायन राम से शुरू होता है और राम के जयकारे के बाद ही खत्म होता आया है।

 

हरियाणा का लोक गायन राम संस्कृति से ओत-प्रोत है। राम को हरियाणा में गीत संगीत का प्रणेता माना जाता है। एक अन्य कार्तिक गीत में राम, सीता और लक्ष्मण की आराधना इस प्रकार की जाती है- राम और लक्ष्मण दशरथ के बेटे, दोनों बण खंड जाए, ऐजी कोए राम मिले भगवान। एक बण चाले दो बण चाले, तीजे में लग आई प्यास, एजी कोए राम मिले भगवान। कातिक नहाण के समय सुबह सवेरे जोहड़ के कंठारे पर गाया जाने वाला कार्तिक गीत इस प्रकार है-आई छोरियां की डार, सुत्या जल जागियो हो राम। उर्लै पर्लै घाट खड़ी, तेरी लाडली हो राम। इनकी भी सुनिए हो राम। इसी तरह एक अन्य कार्तिक मास का राम भजन इस प्रकार है- राम को बुलाओ, मेरे लक्ष्मण को बुलाओ, दोनों को ढूंढ के लाओ, कहां गए लछमण और राम। एक अन्य भजन में कार्तिक न्हाण का वर्णन इस प्रकार है- चलो सखी नहाण चलां, कार्तिक आई हो राम। इस प्रकार पूरे लोकगीत में राम की आराधना की जाती है। हरियाणवी लोकगीत में कैकेयी को इस प्रकार कोसा जाता है- कैकेयी तैनै जुल्म गुजारे, वन में भेज दिए राम। राम कड़ी बेल का कड़ा तूंबड़ा, सब तीरथ कर आई। घाट घाट का जल भरले फिर भी ना मिले राम। आगे राम चलत है, पीछे लक्ष्मण भाई, राम बीच बिचालै चलै जानकी, देखो जनक की जाई। वहीं सावन के महीने में राम नाम की टेर से इस प्रकार मल्हार गाया जाता है- कड़वी कचरी है मां मेरी बाग में, क्यूं कर खाल्यूं हो राम।

 

हरियाणा के भजनी व सांगी जब गांव में आते थे तो वह भजनों की शुरुआत राम को समर के इस प्रकार करते थे। राम नाम सबतैं बड़ा, इससे बड़ा न कोये। जो सुमिरन करें राम का, तो बंदे शुद्ध आत्मा होये। पंडित लख्मीचंद, मांगेराम, दयाचंद, जगन्नाथ समचानिया, मास्टर सतबीर सिंह, हरदेवा अली बख्स भी राम से अपने कार्यक्रम की शुरुआत करते थे। जाट मेहर सिंह ने अपनी शहादत के समय जो चिट्ठी लिखी थी तो उसकी शुरुआत भी राम के नाम से की थी। लिखा था साथ रहणिये संग के साथी, दया मेरे पै फेर दियो। देश कै ऊपर जान झोकदी, लिख चिट्ठी में गेर दियो। पहले तो मेरे मात-पिता के चरणों में प्रणाम लिखूं। काका ताऊ बड़े-बड़ों को मेरी राम राम लिखूं। एक रागिनी में कीचक और सुदेशना के महाभारत किस्से में राम का इस प्रकार उद्धरण किया गया है। वो हे उसका राम, जिसमें मन बस ज्या। घाल दे दासी ने, मेरा घर बसज्या। एक अन्य रागिनी में राम का वर्णन अपनी पत्नी को समझाते हुए दूल्हा इस प्रकार करता है। जहाज कै में बैठ, गोरी राम रट कै। ओढना संगवाले, तेरा पल्ला लटके।

 

रामायण पर चार पीएचडी करवा चुके 90 वर्षीय डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा कहते हैं कि सन् 1999 तक हिंदी भाषी क्षेत्रों में राम व रामायण पर 150 से ज्यादा शोध थे। अब इनकी संख्या 250 से ज्यादा होगी। गैर हिंदी प्रदेशों में भी काफी शोध हुए हैं। हरियाणा व हिंदी भाषी क्षेत्र में राम के लोकजीवन में रचने बसने का श्रेय कई संतों व कवियों और आर्य समाज को जाता है। कबीर को निम्न जाति का मानते हुए उस काल में मंदिरों में नहीं जाने देते थे। तब कबीर ने राम को निर्गुण मानते हुए प्रचार किया। पहले आदि कवि वाल्मीकि, संत रविदास, नामदेव ने निर्गुण रूप का प्रचार किया। हरियाणा में आर्य समाज का काफी प्रभाव रहा है और आर्य समाज ने राम को आदर्श पुरुष माना है। प्रदेश में कबीरपंथ का प्रचार करने के लिए डेरे भी हैं। कबीर के दोहों में रा को छत्र और म को माथे की बिंदी माना है। यानी सभी को रक्षा व सम्मान का प्रतीक माना है। हरियाणा के पुराने सांगों में राम के प्रसंगों का खूब जिक्र होता रहा है, इस वजह भी पीढ़ी दर पीढ़ी राम की असर जनमानस है, जबकि कुरुक्षेत्र जैसी धर्मनगरी समेत प्रदेश में कहीं भी श्रीराम के प्राचीन मंदिर नहीं हैं। रामराज्य की कल्पना में ही नैतिक मूल्य व राजनीतिक दर्शन है। राजनीति में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली आया राम-गया राम की कहावत भी हरियाणवी राजनीति से निकली है। जब 1967 में एक विधायक ने एक ही दिन में 3 बार में दल-बदल किया था।

 

हरियाणा के गांव मुंदडी में लव-कुश ने रामायण कंठस्थ की थी और सीवन गांव में माता सीता समाई थी। कैथल दडी में भगवान राम व सीता के पुत्रों लव-कुश ने महर्षि वाल्मीकि से इसी तीर्थ पर रामायण को कंठस्थ कर दिया था, जिसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने मौन धारण कर दिया था। इससे ही गांव का नाम मुंदडी हो गया। इस तीर्थ पर शिव, हनुमान व लव-कुश के मंदिर हैं। मंदिर के गर्भगृह की भित्तियों पर राम, लक्ष्मण को कंधे पर बैठाए हुए हनुमान, गोपियों के साथ कृष्ण, रासलीला व गणेश इत्यादि के चित्र बने हुए हैं। नारद पुराण के अनुसार चैत्र मास की चतुर्दशी को इस तीर्थ में स्नान करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।मंदिर के सरोवर की खुदाई से कुषाणकाल (प्रथम-द्वितीय शती ई.) से लेकर मध्यकाल 9-10वी शती ई. के मृदपात्र एवं अन्य पुरावशेष मिले थे। जिससे इस तीर्थ की प्राचीनता सिद्ध होती है। यहां महर्षि वाल्मीकि संस्कृत यूनिवर्सिटी भी बनाई जा रही है। वहीं, कैथल के गांव सीवन या शीतवन को जनमानसे जनकनंदिनी सीता जी से संबंधित मानती है। प्रचलित विश्वास के अनुसार सीता इसी स्थान पर धरती में समा गई थीं। इसीलिए इस तीर्थ को स्वर्गद्वार के नाम से भी जाना जाता है। इस तीर्थ का उल्लेख महाभारत एवं वामन पुराण के अतिरिक्त पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, कूर्म पराण, नारद पुराण तथा अग्नि पुराण में भी पाया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि यही शीतवन अपभ्रंश हो कर परवर्ती काल में सीतवन के नाम से विख्यात हो गया। वामन पुराण में इस तीर्थ को मातृतीर्थ के पश्चात् रखा गया है।

 

वास्तव में हमें जब भी कोई काम करना हो तो हम भगवान राम की ओर देखते हैं। भगवान राम की जय बोलते हैं। राम हमारे मन में बसे हैं। राम हमारी संस्कृति के आधार हैं। वनवास से लेकर रामराज्य की स्थापना तक का श्री राम का संघर्षमय जीवन भारतवर्ष को बहुत कुछ सिखाता है। वे समाज में लोकप्रिय हैं ही, साथ ही एक कुशल योजक, संगठक के रूप में दिखाई देते हैं। श्री राम का हृदय करुणा सागर है। धीर-गम्भीर और वीरता से युक्त उनका तेजस्वी व्यक्तित्व है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन के अनेक पहलू हैं। श्री राम ने जहाँ एक ओर केवट, शबरी और जटायु को आत्मीयता से स्वीकार किया, उनपर स्नेह की वर्षा की; वहीं दूसरी ओर उन्होंने वानरों, भालुओं तथा वनवासियों को एकत्रित किया। उन्होंने वानर सेना को अधर्म के विनाश के लिए तैयार किया। उन्होंने रावण सहित समस्त असुरों को समाप्त कर धर्म की पताका को अभ्रस्पर्शी बनाया। इतना ही नहीं तो श्री राम का जीवन तप, क्षमा,शील, नीति, मान, सेवा, भक्ति, मर्यादा, वीरता और न जाने कितने महान गुणों से युक्त था। इसलिए वे भारतीय समाज के जीवन में बड़ी गहराई से बस गए हैं।

 

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने “गोस्वामी तुलसी दास” नामक अपनी पुस्तक में कहा है, “राम के बिना हिन्दू जीवन नीरस है; फीका है। यही रामरस उसका स्वाद बनाए रहा और बनाए रहेगा। राम ही का मुख देख हिन्दू जनता का इतना बड़ा भाग अपने धर्म और जाति के घेरे में पड़ा रहा। न उसे तलवार काट सकी, न धनमान का लोभ, न उपदेशों की तड़क-भड़क।” स्वामी विवेकानन्द ने 31 जनवरी, सन 1900 को, अमेरिका के पैसाडेना (कैलिफोर्निया) में ‘रामायण’ विषय पर बोलते हुए अपने व्याख्यान में कहा था, “राम ईश्वर के अवतार थे, अन्यथा वे ये सब दुष्कर कार्य कैसे कर सकते थे? हिन्दू उन्हें भगवान अवतार मानकर पूजते हैं। भारतीयों के मतानुसार वे ईश्वर के सातवे अवतार हैं। राम भारतीय राष्ट्र के आदर्श हैं।” स्वामी जी इसी व्याख्यान में रामायण को भारत का आदि काव्य कहकर उसकी प्रशंसा करते हैं।

 

निष्कर्ष-

 

श्री राम भारतीय जनमानस में आराध्य देव के रूप में स्थापित हैं और भारत के प्रत्येक जाति, मत, सम्प्रदाय के लोग श्री राम की पूजा-आराधना करते हैं। कोई भी घर ऐसा नहीं होगा, जिसमें रामकथा से सम्बन्धित किसी न किसी प्रकार का साहित्य न हो क्योंकि भारत की प्रत्येक भाषा में रामकथा पर आधारित साहित्य उपलब्ध है। भारत के बाहर, विश्व के अनेक देश ऐसे हैं जहाँ के लोक-जीवन और संस्कृति में श्री राम इस तरह समाहित हो गए हैं कि वे अपनी मातृभूमि को श्रीराम की लीला भूमि एवं अपने को उनका वंशज मानने लगे हैं। हम श्री राम को पढ़ते हैं, पूजते हैं। उनके जीवन, विचार, संवाद और प्रसंगों को पढ़ते-पढ़ते भाव विभोर हो जाते हैं। उनका नाम लेते ही हमारा हृदय श्रद्धा और भक्ति भाव से सराबोर हो जाता है। यहाँ तक कि भारत के करोड़ों लोग अपने नाम के आगे अथवा पीछे ‘राम’ शब्द का प्रयोग बड़े गर्व से करते हैं; जैसे –रामलाल, रामप्रकाश, सीता राम, रामप्रसाद, गंगा राम, संतराम, सुखराम आदि। विवाह-गीत, सो हर, लोकगीत, होली गीत, लोकोक्तियां आदि सभी लोक संस्कृति में श्री राम और माता जानकी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। इस तरह लोकजीवन में राम दिखाई देते हैं। सबके राम, सबमें राम, जय जय श्रीराम।

(लेखिका रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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