मकर संक्रांति और लोहड़ी : प्रकृति का पर्व

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दिनेश कुमार कुशवाहा 

मकर संक्रांति और लोहड़ी, भारतीय संस्कृति के वे पर्व हैं जो हमारे जीवन में प्रकृति के महत्व और उसकी गहराई को दर्शाते हैं। ये त्योहार केवल धार्मिक या सांस्कृतिक नहीं हैं, बल्कि प्रकृति के साथ हमारे सामंजस्य को भी प्रकट करते हैं।

 

मकर संक्रांति: प्रकृति के चक्र का उत्सव

 

मकर संक्रांति वह दिन है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और पृथ्वी पर दिन लंबे होने लगते हैं। इसे सूर्य की उत्तरायण यात्रा की शुरुआत माना जाता है, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, नई शुरुआत और समृद्धि का प्रतीक है।
यह पर्व हमारे कृषि प्रधान समाज की जड़ों से जुड़ा हुआ है। मकर संक्रांति के समय फसलें तैयार होती हैं और किसान अपनी मेहनत का फल प्राप्त करने के लिए उत्सव मनाते हैं। गंगा स्नान, तिल-गुड़ का दान और पतंग उड़ाना, ये सभी प्रकृति और मानव के बीच के गहरे संबंध को प्रकट करते हैं।

 

लोहड़ी: फसल और आग का पर्व

 

लोहड़ी मुख्य रूप से पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाता है, लेकिन इसका संदेश पूरे भारतवर्ष में गूंजता है। यह त्योहार सर्दियों के समाप्त होने और नई फसल के स्वागत का प्रतीक है।
लोहड़ी की रात को आग जलाने की परंपरा केवल धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का तरीका है। इसमें तिल, गुड़, मूंगफली और फसल की अन्य वस्तुएं अर्पित कर हम यह दर्शाते हैं कि प्रकृति ने हमें कितना कुछ दिया है।

 

प्रकृति और मानव का अटूट संबंध

 

मकर संक्रांति और लोहड़ी हमें यह सिखाते हैं कि मानव और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं। इन त्योहारों में उपयोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे तिल, गुड़, गन्ना, और मूंगफली, हमें यह याद दिलाते हैं कि हमारी जीवनशैली प्रकृति पर आधारित है।
पतंग उड़ाना, सूर्य पूजा, और आग का आयोजन यह सब प्रकृति के प्रति आदर प्रकट करने के प्रतीक हैं। यह त्योहार हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हमें अपनी प्राकृतिक धरोहर को सहेजना और उसका सम्मान करना चाहिए।

 

आओ, प्रकृति का सम्मान करें

 

आज, जब आधुनिकता की दौड़ में प्रकृति का दोहन बढ़ रहा है, तब मकर संक्रांति और लोहड़ी जैसे पर्व हमें अपनी जड़ों की याद दिलाते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि जब तक हम प्रकृति का संरक्षण नहीं करेंगे, तब तक हमारा अस्तित्व भी संकट में रहेगा।
प्रकृति सेवा फाउंडेशन के माध्यम से, मैं आप सभी से अपील करता हूं कि इन पर्वों की सार्थकता को समझें और पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने प्रयासों को और मजबूत करें।

“प्रकृति का सम्मान करें, यही हमारी सबसे बड़ी पूजा है।”

(लेखक प्रकृति सेवा फाउंडेशन दिनेश कुमार कुशवाहा
अध्यक्ष हैं)

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