प्रतियोगी परीक्षा में कुशाग्र का चयन होने से घर में खुशी का माहौल था| इस परीक्षा में मेधा के आधार पर उसका स्थान प्रथम था| सभी की तरफ से बधाई संदेश आ रहे थे| कुशाग्र के दोस्त भी एक एक कर आ रहे थे और उसे मुबारकबाद दे रहे थे|
माँ रसोई में कुशाग्र के पसंद का खाना बनाने में लगी थी साथ में गोसाईं के लिए खीर भी बना रही थी| पिताजी भी अपने बेटे की सफलता से फूले नहीं समा रहे थे| वशिष्ठ बाबू अपने पोते की उपलब्धि पर गदगद भी हो रहे थे साथ ही साथ कुछ सोच भी रहे थे|
क्या सोच रहे हैं बाबा – नंदी ने पूछा|
ज्यादा कुछ नहीं पोतु| जाइये जाकर कुशाग्र बाबू को मेरे पास लेकर आइये|
जी बाबा कहकर नंदी जल्दी जल्दी दौड़कर पहुंची अपने भैया कुशाग्र के पास और बोली – भैया आपको बाबा अभी के अभी बुला रहे हैं|
क्या हो गया? बाबा क्यों अभी के अभी बुला रहे हैं?
हम नहीं जानते हैं| आप खुद जाकर पूछिए|
कुशाग्र अपने दोस्तों से विदा लेकर पहुंचा बाबा के पास|
जी बाबा हम आ गए| क्या बात हो गयी? सब ठीक तो है न ?
हाँ बाबू हाँ सब ठीक है|
तो फिर आप जल्दी से हमको बुलाने के लिए क्यों बोले?
वो इसलिए कि अब तुम्हारे जीवन का एक नया अध्याय शुरू होने वाला है| इस अध्याय की शुरुआत शुभ फलदायी हो, तुम्हे समृद्धि प्रदान करने वाली हो, सफलता के सर्वोच्च शिखर तक ले जाने वाली हो और हम सब को गौरवान्वित करने वाली हो| जीवन के कुछ मंत्रात्मक सूत्र जो इनको हासिल करने में तुम्हारी मदद करेंगी उन्ही सूत्रों को तुम्हे पकड़ाना है|
बस इसी बात के लिए तुम्हे बुलाया है| अपने दोस्तों को भी यहीं बुला लो| जीवनोपयोगी यह सूत्र उनको भी जानना चाहिए|
हम भी जानेंगे बाबा- नंदी ने कहा|
हाँ पोतु हाँ तुमको भी बताएँगे|
कुशाग्र ने अपने दोस्तों को भी वहां बुला लिया|
बाबा को घेरकर सब बैठ गए|
अब जो हम कहेंगे ये मेरे शब्द नहीं हैं| ये श्रीकृष्ण के शब्द हैं जो उन्होंने अर्जुन से कहे हैं| तुम सब भी इसे न सिर्फ ध्यान से सुनना बल्कि अपने जीवन में इसे धारण करना| इसको धारण करने से जीवन में कभी तुम पतन के मार्ग पर नहीं जाओगे| सफलता के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचोगे|
ध्यायतो विषयान्पुंस: संगस्तेषूपजायते।
संगात्संजायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहातस्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
इसको क्रम से समझो-
1 – ध्यायतो विषयान्पुंस: – किसी भी विषय का निरंतर ध्यान करना| विषयों का चिन्तन अर्थात किसी भी विषय, किसी व्यक्ति, किसी वस्तु आदि के बारे में निरंतर सोचना |
2 – संगस्तेषूपजायते- विषयों में आसक्ति – निरंतर एक ही दिशा में सोच के प्रवाहित होने से उस वस्तु के प्रति आसक्त हो जाना| काम, वासना से लिप्त हो जाना|
3 – संगात्संजायते काम: – विषयों को प्राप्त करने की इच्छा अथवा लालसा- एक बार आसक्ति हो गयी तो फिर उसे पाने की इच्छा या लालसा करना|
4 – कामात्क्रोधोऽभिजायते- विषयों की प्राप्ति में किसी भी प्रकार की बाधा आने से क्रोध – इच्छित वस्तु यदि न मिले तो क्रोधित होना, गुस्सा करना|
5 – क्रोधाद्भवति सम्मोह: – सम्मोह अर्थात् मूढ़ता – क्रोध की वजह से स्वयं को किस प्रकार व्यक्त करें यह समझ नहीं आना| स्वयं का विवेक खो देना|
6 – सम्मोहातस्मृतिविभ्रम:- स्मृतिभ्रम – खुद को व्यक्त न कर पाने से भ्रमित अवस्था को प्राप्त करना|
7 – स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो- बुद्धिनाश – पूर्ण रूपेण बुद्धि का नाश अर्थात सही गलत में भेद करने में अक्षम हो जाना| विवेकशून्य हो जाना| यह अच्छे से जान लो कि Man without wisdom is worse than an animal.
इसके बाद सोचो क्या होगा ?
8 – बुद्धिनाशात्प्रणश्यति- परिणाम पूरी तरह से पतन होना मतलब you are totally destroyed .
ये आठ सीढ़ियां हैं| एक एक कर के इन सीढ़ियों के सहारे तुम आगे कदम बढ़ाओगे तो तुम्हे नीचे गिरने से कोई नहीं बचा सकता है| तुम्हारा पतन अवस्यम्भावी है|
यह याद रखना कि इसकी शुरुआत होती है हमारे सोच से| अपनी सोच को सात्विक रखना होगा|हमारे सोच के पीछे का भाव यदि शुद्ध है, धर्म रक्षित है तब तो हम आगे की सीढ़ी पर चढ़ने से बच जायेंगे और पतन से भी बच जायेंगे|
पूरे विवेक से इसे समझकर अपने जीवन में आत्मसात करना जिससे की जीवन में आने वाले सभी विकारों से बच सको|
निर्णय तुम्हारा की तुम जीवन में सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचना चाहते हो या पतन के मार्ग पर अग्रसर होना चाहते हो…
बाप रे कितना बड़ा बड़ा आप बात बता रहे हैं बाबा |
हमको त कुछ समझे नहीं आ रहा है|
तानी हमको भी त समझाईये बाबा|
अरे मेरी पोतुआ ये जो पिछले सप्ताह तुम कह रही थी न की ख़ुशी के पास जो गुड़िया है हमको भी वही चाहिए same to same और जब नहीं मिला था तब तुम क्या की थी ..याद है ?
हाँ बाबा हम बहुत गुस्सा हो गए थे| अपना सारा खिलौना फ़ेंक दिए थे और कहे थे की जब तक वैसी गिडिया नहीं आएगी हम किसी का कुछ नहीं सुनेंगे..
बस बस बस पोतु |
यही बात हम कुशाग्र बाबू और उनके दोस्तों को समझा रहे हैं की जीवन में आगे बढ़ना है तो इस प्रकार के सोच और गुस्से से अपने आपको बचाना होगा|
अब समझ में आया कुछ?
जी बाबा थोड़ा थोड़ा ..नंदी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया|
कुशाग्र और उसके दोस्त बाबा से आत्म संयम का जीवनोपयोगी महत्वपूर्ण सूत्र पाकर गदगद हुए|