डॉ. सुरेश खैरनार
हर बार की तरह अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को रमजान के मौके पर नरेंद्र मोदी जी ने सौगात मतलब भेंट में शायद हजार पांच सौ रुपये का इफ्तार के उपवास के बाद श्याम के नाश्ते में कुछ खाने की चीजें देने की घोषणा की है . लेकिन सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी और दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता इफ्तार पार्टी में शामिल होने को लेकर सैफ्रॉन डिजिटल आर्मी ने काफी ट्रोल किया है . या इसके पहले कांग्रेस पार्टी अक्सर इफ्तार पार्टी के दौरान शामिल होने को लेकर इसी भारतीय जनता पार्टी और उसके मातृ संगठन आर एस एस ने कांग्रेस को मुस्लिम परस्त तथा मुलायम सिंह यादव को तो मुल्ला मुलायम और अभी उनके बेटे अखिलेश को और उनकी समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश भाजपा लगातार हिंदुओं के विरोधी और मुस्लिम परस्त बोला जा रहा है . लेकिन नरेंद्र मोदी ने सौगात – ए-मोदी ऐलान करने के बाद हमारे मीडिया में भी तुरंत हिन्दू – मुस्लिम भाईचारे के संपादकीय लिखे जा रहे हैं .
क्या आज से 23 साल पहले के गुजरात के दंगे को कैसे भूल सकते हैं ? और उसके बाद 2014 से केंद्र में सत्ता में आने के बाद. पिछले दस सालों से लगातार हिजाब, गोमांस, कावड के दौरान दुकानदारों को अपने दुकान के सामने अपनी पहचान लिखने के लिए कहना तथा गरबा से लेकर कुंभ मे शामिल होने से रोकने वाले फैसले किस सौगात के परिचायक है? तथा ताजा उदाहरण कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने मुसलमानों को नौकरियों मे कुछ कोटा देने का ऐलान किया. तो संसद में सत्ताधारी भाजपा हंगामा कर रही है . और हमारे संविधान में धर्म के आधार पर रिजर्वेशन देने का प्रावधान नहीं है, का तर्क दे रहे हैं. और न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा और आज से बीस साल पहले न्यायमूर्ति राजेंद्र सच्चर कमिटियों ने मुसलमानों के पिछड़ेपन के बारे में जो रिपोर्ट दी है. उसके बाद तो संविधान के आड मे मुसलमानों को वर्तमान स्थिति से ऊपर उठाने के लिए दोनों कमिटियों के रिपोर्ट के सुझावों को अमल मे लाना छोड़कर धर्म के आधार पर हमारे संविधान में रिजर्वेशन का प्रावधान नहीं है. तो पिछले सौ साल से आर एस एस और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा जो शत प्रतिशत धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे हैं. क्या वह हमारे देश के संविधान के अनुसार है ?
गोमांस के नाम पर अबतक सौ से अधिक संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों को (हिटलर ने जर्मनी में जिस यहूदियों को तरह मॉब लिंचिंग कर के मार डाला था ) तब कौन सी सौगात दी जा रही थी ? वैसे ही दुकानों के सामने यह दुकान किसकी है ? यह धर्म के आधार पर लिखने के लिए कहना कौन-से संविधान के अनुसार जारी है ?
तिन सौ या पांच सौ सालो के पहले इतिहास का हवाला देते हुए किसी औरंगजेब या बाबर ने किए हुए कामों का इक्कीसवीं सदी मे हिसाब मांगने में कौन सी सौगात है ?
कपड़ो पर से पहचाने जाते हैं. बोलने के बाद कोई रेल सुरक्षा गार्ड किसी को चलती हुई रेल मे सरकार ने रेलवे सुरक्षा के लिये दिए हुए पिस्तौल से सिर्फ कपड़े देख कर किसी रेलयात्री की हत्या करना कौन सी सौगात है ? वैसे ही सर्वोच्च न्यायालय ने बुलडोजर से मुसलमानों के घरों को तोड़ने की कार्रवाई गलत है. बोलने के बावजूद मुसलमानों के घरों को बुलडोजर से तोड़ने की कार्रवाई बदस्तूर जारी है. यह कौन सी सौगात है ?
आज भारत में कम-से-कम 25 करोड़ आबादी मुसलमानों की 78 साल की आजादी के बाद कभी नहीं इतनी असुरक्षित मानसिकता में रह रही हैं। इसके कारण क्या है ? हजार पांच सौ रुपये का नाश्ता या भोजन वह भी सौगात – ए- मोदी का ऐलान कर देने से खत्म होने वाला है?
आने वाले दिनों मे सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले उत्तर प्रदेश और बिहार में विधानसभा चुनाव को देखते हुए अगर नरेंद्र मोदी जी यह घोषणा कर रहे हैं. तो वह गलतफहमी में है . क्योंकि संघ और संघ की सभी इकाईयों का पिछले सौ सालो से मुसलमानों के खिलाफ चल रहे अपप्रचार ने मुसलमानों को बुरी तरह से असुरक्षित मानसिकता मे डालने का काम किया है. और दस दिन पहले ही नागपुर में क्या हुआ यह भी नरेंद्र मोदी जी को अच्छी तरह से मालूम है. नरेन्द्र मोदी जी दो दिन बाद नागपुर संघ मुख्यालय शायद संघ के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार आ रहे हैं. तो मेरी उनसे विनम्र प्रार्थना है कि “अपने मातृ संस्था आर एस एस और उसके अन्य संबंधित संगठन जिसमें आप की सत्ताधारी भाजपा का भी समावेश होता है।
क्या आज से 23 साल पहले के गुजरात के दंगे को कैसे भूल सकते हैं ? और उसके बाद 2014 से केंद्र में सत्ता में आने के बाद. पिछले दस सालों से लगातार हिजाब, गोमांस, कावड के दौरान दुकानदारों को अपने दुकान के सामने अपनी पहचान लिखने के लिए कहना तथा गरबा से लेकर कुंभ मे शामिल होने से रोकने वाले फैसले किस सौगात के परिचायक है? तथा ताजा उदाहरण कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने मुसलमानों को नौकरियों मे कुछ कोटा देने का ऐलान किया. तो संसद में सत्ताधारी भाजपा हंगामा कर रही है . और हमारे संविधान में धर्म के आधार पर रिजर्वेशन देने का प्रावधान नहीं है, का तर्क दे रहे हैं. और न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा और आज से बीस साल पहले न्यायमूर्ति राजेंद्र सच्चर कमिटियों ने मुसलमानों के पिछड़ेपन के बारे में जो रिपोर्ट दी है. उसके बाद तो संविधान के आड मे मुसलमानों को वर्तमान स्थिति से ऊपर उठाने के लिए दोनों कमिटियों के रिपोर्ट के सुझावों को अमल मे लाना छोड़कर धर्म के आधार पर हमारे संविधान में रिजर्वेशन का प्रावधान नहीं है. तो पिछले सौ साल से आर एस एस और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा जो शत प्रतिशत धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे हैं. क्या वह हमारे देश के संविधान के अनुसार है ?
गोमांस के नाम पर अबतक सौ से अधिक संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों को (हिटलर ने जर्मनी में जिस यहूदियों को तरह मॉब लिंचिंग कर के मार डाला था ) तब कौन सी सौगात दी जा रही थी ? वैसे ही दुकानों के सामने यह दुकान किसकी है ? यह धर्म के आधार पर लिखने के लिए कहना कौन-से संविधान के अनुसार जारी है ?
तिन सौ या पांच सौ सालो के पहले इतिहास का हवाला देते हुए किसी औरंगजेब या बाबर ने किए हुए कामों का इक्कीसवीं सदी मे हिसाब मांगने में कौन सी सौगात है ?
कपड़ो पर से पहचाने जाते हैं. बोलने के बाद कोई रेल सुरक्षा गार्ड किसी को चलती हुई रेल मे सरकार ने रेलवे सुरक्षा के लिये दिए हुए पिस्तौल से सिर्फ कपड़े देख कर किसी रेलयात्री की हत्या करना कौन सी सौगात है ? वैसे ही सर्वोच्च न्यायालय ने बुलडोजर से मुसलमानों के घरों को तोड़ने की कार्रवाई गलत है. बोलने के बावजूद मुसलमानों के घरों को बुलडोजर से तोड़ने की कार्रवाई बदस्तूर जारी है. यह कौन सी सौगात है ?
आज भारत में कम-से-कम 25 करोड़ आबादी मुसलमानों की 78 साल की आजादी के बाद कभी नहीं इतनी असुरक्षित मानसिकता में रह रही हैं। इसके कारण क्या है ? हजार पांच सौ रुपये का नाश्ता या भोजन वह भी सौगात – ए- मोदी का ऐलान कर देने से खत्म होने वाला है?
आने वाले दिनों मे सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले उत्तर प्रदेश और बिहार में विधानसभा चुनाव को देखते हुए अगर नरेंद्र मोदी जी यह घोषणा कर रहे हैं. तो वह गलतफहमी में है . क्योंकि संघ और संघ की सभी इकाईयों का पिछले सौ सालो से मुसलमानों के खिलाफ चल रहे अपप्रचार ने मुसलमानों को बुरी तरह से असुरक्षित मानसिकता मे डालने का काम किया है. और दस दिन पहले ही नागपुर में क्या हुआ यह भी नरेंद्र मोदी जी को अच्छी तरह से मालूम है. नरेन्द्र मोदी जी दो दिन बाद नागपुर संघ मुख्यालय शायद संघ के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार आ रहे हैं. तो मेरी उनसे विनम्र प्रार्थना है कि “अपने मातृ संस्था आर एस एस और उसके अन्य संबंधित संगठन जिसमें आप की सत्ताधारी भाजपा का भी समावेश होता है।
इन सभी को इसके आगे के सौ साल भारत में रह रहे सभी धर्मों के लोगों को भी भारत में उतना ही अधिकार है. जो आर एस एस के एक साधारण स्वयंसेवक को भी है . यह बदलाव करने के लिए कहिए . ” अन्यथा आपने पिछले 26 जनवरी को लाल किले से भारत की आजादी के दिवस के साथ ही भारत विभाजन दिवस भी मनाने की घोषणा की है और मैंने आपके इस घोषणा का स्वागत किया है . क्योंकि भारत का बटवारा सिर्फ हिंदू – मुस्लिम के आधार पर किया गया था . उसके लिए कौन से कारण जिम्मेदार थे ? तो सिर्फ हिंदू और मुस्लिम दो अलग अलग राष्ट्र है यह बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर के हिंदुत्व नाम की किताब में 1927 को लिखा हुआ मजमून बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना ने भी उसी आधार पर पाकिस्तान की मांग की थी. जो आज पाकिस्तान बना है. लेकिन अभी भारत में पाकिस्तान से अधिक संख्या में मुसलमानों की संख्या है और 78 सालों के बाद फिर से हिंदू- मुस्लिम के नाम पर राजनीति होती है तो आखिर में उसका अंत क्या होगा ? इसलिए सौगात – ए – मोदी जैसे लाडली बहना चुनाव को ध्यान में रखते हुए घोषणा की गई थी वैसे ही उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनावों को देखकर कर रहे हों तो उससे क्या होगा ?