शिवरात्रि का पर्व मनाने के पूर्व शिव के चरित्र को जीवन में उतारें

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एड. आराधना भार्गव
कोरोना महामारी के कारण सतपुड़ा के अंचल में मनाया जाने वाला महादेव मेला विगत दो वर्षो से बन्द था, किन्तु इस वर्ष भूरा भगत देश भर से आये शिव भक्तों से भरा है। मेरे पिता स्वर्गीय प्रेमनारायण भार्गव शिव के बड़े भक्त थे और शिव के रूप को उन्होंने मुझे जिस तरीके से समझाया उसी तरीके से मैने शिव को अपने अन्दर ढ़ाल लिया। मैं किसी मंदिर में पूजा करने नही जाती पर शिव को अपना नेता मानती हूँ। शिव आखिर क्यों पूजे जाते है ? इसे समझना आवश्यक है। समाज के जहर कुपौषित, अति कुपौषित बच्चे तथा महिलायें, महिलाओं के साथ बलत्कार, महिला हिंसा, किसानों की लूट और पूँजीपति को छूट, पैसा कानून तथा पांचवी अनुसूची का उल्लंघन, जल, जंगल, जमीन की लूट धर्म के नाम पर आडम्बर यही तो सरकार द्वारा समाज में घोले गये विष है, इनसे बचाना तथा इनके लिए संघर्ष करना ही मेरी दृष्टि में समाज के जहर को पीना है, जिसे मैं सहर्ष पीने को तैयार हूँ और जीवन के अन्तिम क्षण तक इस जहर को पीने का संकल्प लेती हूँ। इसका मायने यह हुआ कि मैं इनके खिलाफ आवाज उठाऊंगी चाहे मुझे जेल के सींखचों के पीछे जाना पड़े। शिव की मूर्ति या मंदिर को हम देखें शिव के सिर पर पानी की धारा है जो यह बताती है कि पानी को सुरक्षित रखना है तो जटा का होना आवश्यक है, जटा याने पेड़ की जड़े, पानी तभी रूक सकेगा जब पेड़ और रेत सुरक्षित होगी । शिव के शरीर पर सांप (नाग) लिपटे दिखाई देते हैं जो यह संदेश देते है कि समाज के लिए हानि पहुँचाने वाले लोगों को अपने निकट रखें ताकि वह समाज को नुकसान ना पहुँचा पाऐं। तथा जंगल वन्य जीवों के भी नैसर्गिक पर्यावास है और जैव विविधतता के सबसे बड़े स्त्रोत है। बैल शिव की सवारी है जो यह दर्शाता है कि बैल को सुरक्षित रखोंगे तो तुम्हारे खेत उन्नति करेंगे। शिव के परिवार पर दृष्टि डालों तो छोटा परिवार सुखी परिवार का संदेश देता है। पर्वत पर धूनी लगाकर बैठे शिव संदेश देते है कि ग्लेशियर को पिघलने से बचाइये ताकि समुद्र का जल स्तर ना बढ़े और समुद्र के किनारे बसे शहर समुद्र में डूबने से बचें। शिव के पर्वत पर निवास का यह संदेश भी है कि पहाड़ियों को गांव की बसाहट के उपयोग में लायें ताकि खेती योग्य जमीन निवास के रूप में उपयोग ना की जा सकें। शिव की शादी का पर्व शिवरात्री यह बताया है कि हमारे रोटी और बेटी के रिश्ते आदिवासियों के साथ कैसे हो सकते है शिव की बारात हमें यह संदेश देती है कि जीवन की खुशिया बांटने से बढ़ती है और शादी में गरीबी अमीर छोटे बड़े का भेद मिटाकर सबके साथ खुशीयाँ बांटी जाये। कम पूंजी में भी शादी का जश्न कैसे मनाया जा सकता है कोई शिव की बारात से यह सीखे। आज भी जिन्हें हम आदिवासी कहते है उनकी बारात शिव की बारात की तरह ही निकलती है आदिवासीयों की शादी में पूरा गांव जुड़ता है सब अपने अपने वाद्य यंत्र लेकर शादी में उपस्थित होते है नाच गाकर अपने घर वापस हो जाते हैं। दूर दराज जंगल में निवास करने वाले शिव के परम् भक्त हैं और प्रकृति को बचाकर वे बड़ादेव की पूजा करके प्रकृति में खिलने वाले हर फूल की कीमत करते हैं चाहे वह फूल धतूरे का हो या अकोने का, बेल के फल में बोनमेरो होता है इसे शिव ने पहचाना और बेल को अपने निकट रखा।
आज शिवरात्रि का पर्व विकृत रूप में दिखाई देता है सतपुड़ा के अंचल में चैरागढ़ की पहाड़ी पर चढ़ते हुए भक्त शराब के नशे में धुत, गांजा और चिलम पीते दिखाई देते है। भूरा भगत के मेले में गपई गपई चिल्लाते हुए नाबालिक बच्चे भी देशी शराब बेचते दिखाई देते हैं, सूखती हुई नदी तो शिवभक्तों को दिखाई ही नही देती, चैरागढ़ का बढ़ता हुआ तापमान तथा कटते हुए जंगल पर तो दृष्टि डालने का भक्तों का सवाल ही पैदा नही होता। अब तो शिव भगवान बाजार के हवाले कर दिये गये हैं। जगह जगह अभी से हवन करने के लिए आम के पेड़ काटे जा रहे हैं जबकि आम के पेड़ में मोहर (फूल) आ चुकी है। शिव की पूजा के लिए बड़े बड़े पंडाल लगाने की तैयारी तथा कान फोडू डी.जे. पर बजने वाले धर्म के नाम पर अश्लील तरीके से बजने वाले गाने पर तो किसी का ध्यान नही जा रहा है। परीक्षा का समय है तेज आवाज में बजने वाले गाने जो विद्यार्थी के ध्यान को बांटकर उनमें चिड़चिड़पन बढ़ाते है मजाल है कि कोई शिव भक्तों के डी. जे. को बन्द करा दे। जो कोशिश करेगा उस पर सरकार राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज करके जेल के सींखचों के अन्दर डाल देगी। गरीबों पर तो शिवरात्री मनाने का बढ़ा भूत सवार है क्योंकि टी.वी. चैनल पर चलने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में यह संदेश दिया जा रहा है कि तुम्हारी गरीबी का कारण तुम्हारे पिछले जन्म के पाप हैं। अगर तुमने शिव भगवान की पिण्डी में दूध, शुद्ध घी, दही, शहद, शक्कर, मिश्री चढ़ा दी तो तुम पर शिव भगवान की कृपा होगी और अगले जन्म में तुम गरीब नही रहोगे। तुमने शुद्ध घी का दीपक जला दिया, पण्डितजी को सोना चाँदी, हीरा मोती दक्षिणा में दे दिये तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे, और अगला जन्म सुधर जायेगा। गरीब काम धन्धा छोड़कर अपने बच्चों के हिस्से का दूध, दही, मक्खन, शहद, शक्कर लेकर पण्डित जी की शरण में पहुँचने को उतारू है ताकि अगला जन्म फिर गरीबी में ना गुजरे। अन्धविश्वास फैलाने में धार्मिक चैनल कोई कोर कसर नही छोड़ रहा है।
जब तक हम शिव के सही स्वरूप को नही पहचानेेंगे तब तक हम सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समानता व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता प्राप्त नही कर सकते। शिव के विवाह के समय बारात में सभी वर्गो का प्रतिनिधित्व यह दर्शाता है कि खुशियाँ हमें तब मिलती है जब हम खुशियों को सबके बीच बांटते है। शिवरात्री के पर्व को हमने अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित किया है यह तभी सिद्ध होगा जब हम शिव के चरित्र को अपने जीवन में उतारकर बन्धुत्व की भावना के साथ आगे बढ़े।
एड. आराधना भार्गव

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