चरण सिंह राजपूत
क्या साउथ के नेता इंडिया गठबंधन का कबाड़ा करने में लगे हैं? क्या साउथ के नेताओं की बयानबाजी से हिन्दी बेल्ट में विपक्ष को नुकसान होने जा रहा है। क्या विपक्ष को भारी पड़ने वाले हैं उदय निधि रेवंत रेड्डी के बयान ? साउथ नेताओं की गलत बयानबाजी पर अंकुश क्यों नहीं लगा पा रहा है विपक्ष ? क्या आरोप प्रत्यारोप में ही उलझ कर रह जाएंगे विपक्ष के नेता? क्या विपक्ष के बिखराव का फायदा उठा रही है बीजेपी ? क्या विपक्ष में उत्तर भारतीयों पर हावी हैं साउथ के नेता ? आइये आपको बताते हैं कि विपक्ष में कौन किसे नुकसान पहुंचा रहा है और कौन किसे फायदा ?
विपक्ष इन लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का दंभ तो भर रहा है पर कारगर रणनीति नहीं बना पा रहा है। जहां बीजेपी लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से जुट गई है वहीं इंडिया गठबंधन में नाराज होने और मनाने का दौर चल रहा है। साउथ के नेता अलग से विपक्ष को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं।
हाल ही में डीएमके नेता उदयनिधि के सनातनियों पर गलत बयानबाजी कर विपक्ष के सामने असहज स्थिति पैदा कर दी थी। अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने केसी राव के अंदर बिहार का डीएनए कहकर एक नया बवाल खड़ा कर दिया है। बीजेपी इन नेताओं की बयानबाजी को मुद्दा बना ले रही है। साउथ के नेताओं की इस तरह की बयानबाजी को बीजेपी सनातनियों और हिन्दी बेल्ट का अपमान बता रही है। दरअसल हिन्दी बेल्ट के प्रदेश उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं।
उदय निधि के सनातन तो रेवंत रेड्डी के बिहार डीएनए के बयान से उत्तर भारत में विपक्ष बीजेपी को मजबूत मुद्दा मिल गया है। मतलब विपक्ष के नेता बीजेपी को घर बैठे मुद्दा थमा दे रहे हैं। जहां विपक्ष सत्ता पक्ष पर हावी होना चाहिए था वहीं सत्ता पक्ष विपक्ष पर हावी है। दरअसल साउथ के इन नेताओं के बयान की तुलना उत्तर भारतीयों के खिलाफ मनसे नेता राज ठाकरे द्वारा छेड़े गये अभियान से की जा रही है। जिस तरह से राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों विशेषकर बिहार औेर उत्तर प्रदेश के लोगों के खिलाफ अभियान चलाया था, उसी प्रकार से उदय निधि और रेवंत रेड्डी उत्तर भारतीयों का अपमान करने में लगे हैं। इन नेताओं की इस बयानबाजी का नुकसान इंडिया गठबंधन को हो रहा है।
इंडिया गठबंधन के इस ढुलमुल रवैये से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर भी बेकार साबित हो रहा है। दरअसल उत्तर भारत में सनातन के खिलाफ बयानबाजी से हिन्दू संगठनों ने बेहद नाराजगी देखन को मिल रही है। उधर रेवंत रेड्डी के केसी आर में बिहार का डीएनए होने के बयान से बिहार में बवाल मचा हुआ है। बीजेपी ने इन मामलों को तूल दे दिया है। बीजेपी का कहना है कि विपक्ष के नेताओं ने इन नेताओं की सनातन और बिहार विरोधी बयानबाजी पर चुप्पी क्यों साध रखी है ? वैसे भी साउथ में विपक्ष के दल ही राज कर रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है तो केरल में कांग्रेस के सहयोग से वामपंथियों की सरकार है। तमिलनाडु में भी कांग्रेस के समर्थन ने एमके स्टालिन मुख्यमंत्री हैं।
बीजेपी को दरकिनार करने की रणनीति बनाने में लगा इंडिया गठबंधन चुनाव लड़ने के लिए अभी तक एक राय भी नहीं बना पा रहा है। हर दल का नेता अपने को प्रधानमंत्री पद के रूप में प्रस्तुत कर रहा है।
ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का प्रस्ताव क्या कर दिया था कि नीतीश कुमार नाराज होकर पटना चले गये थे। अब राहुल गांधी ने फोन कर उन्हें मनाया। सीटों के बंटवारे में अलग से रार पैदा हो रही है। उत्तर प्रदेश में जहां अखिलेश यादव कांग्रेस को मात्र 8 सीटें देने की बात कर रहे हैं तो पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी दो ही सीटें देने को तैयार हैं। दिल्ली और पंजाब में तो केजरीवाल एक भी सीट नहीं देना चाहते। ऊपर से समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी के नाम से अलग बिदक जा रही है। बिहार में तो जदयू और राजद में ही सीटों के बंटवारे में संशय बना हुआ है। वैसे भी इंडिया गठबंधन में सहयोगी दल बिदकने शुरू हो गये हैं। माकपा और पीडीपी गठबंधन से अलग होने जा रहे हैं।
दिल्ली अशोका होटल में हुई 28 विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में जल्द से जल्द सीट बंटवारे का काम खत्म करने पर आम सहमति बनी है। बैठक में तय हुआ कि 15 जनवरी तक ज्यादातर राज्यों में सीटें बांट ली जाएंगी। सीट बंटवारे को लेकर पार्टियों के बीच राज्य स्तर पर बात होगी. ज्यादातर राज्यों में वहां की क्षेत्रीय पार्टी और कांग्रेस के बीच बात होनी है। इंडिया गठबंधन की बैठक से ठीक पहले कांग्रेस ने गठबंधन पर चर्चा के लिए पांच वरिष्ठ नेताओं की कमेटी बनाई है।
सबसे ज्यादा उलझन पंजाब को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच है। कांग्रेस नेतृत्व और अरविंद केजरीवाल तो साथ नजर आ रहे हैं, लेकिन दोनों दलों के प्रदेश के नेता एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं।
एक राय यह है दिल्ली की सात सीटों पर गठबंधन हो, लेकिन पंजाब में दोनों दल आमने सामने लड़ें, क्योंकि वहां बीजेपी मजबूत है। हालांकि यदि पंजाब में बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन होता है तो फिर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन तय है। दिल्ली की सात में से चार पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तीन सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। पंजाब और चंडीगढ़ की 14 सीटें दोनों पार्टियां आधी-आधी बांट सकती हैं। आम आदमी पार्टी गुजरात, गोवा और हरियाणा में भी कांग्रेस से सीटें मांग सकती है।
यूपी में कांग्रेस के लिए कितनी सीटें छोड़ेगी सपा?
सबसे बड़े राज्य यूपी में अब तक साफ नहीं है कि समाजवादी पार्टी कांग्रेस के लिए कितनी सीटें छोड़ेगी, ताजा पेंच यह है कि यूपी कांग्रेस के कुछ नेता बीएसपी को इंडिया गठबंधन में शामिल करना चाहते हैं, लेकिन मंगलवार को हुई इंडिया गठबंधन की बैठक में समाजवादी पार्टी नेता रामगोपाल यादव ने साफ कह दिया कि एसपी को बीएसपी का साथ कबूल नहीं है। सूत्रों की मानें तो एसपी के साथ गठबंधन में कांग्रेस की नजर यूपी की 80 में से 20 सीटों पर है।
बिहार में आरजेडी और जेडीयू के साथ गठबंधन
बिहार में कांग्रेस आरजेडी, जेडीयू के साथ वाम दलों के साथ गठबंधन में है। यहां की 40 सीटों को लेकर जेडीयू और आरजेडी के बीच सीटों के चयन को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। माना जा रहा है दोनों बड़े दल 15–15 सीटों पर लड़ सकते हैं, वहीं सीपीआई एमएल और सीपीआई ने ज्यादा सीटों का दबाव बनाया तो कांग्रेस को पांच सीटों से ही संतोष करना पड़ सकता है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से कैसे बनेगी बात?
बंगाल में वाम दल और ममता का एक साथ चुनाव लड़ना नामुमकिन है। ऐसे में कांग्रेस के सामने पहेली है कि वो वाम दलों के साथ गठबंधन जारी रखे या टीएमसी से हाथ मिलाए। दोनों दल बंगाल में कांग्रेस को पैर पसारने देना नहीं चाहते। ऐसे में बंगाल में कांग्रेस पांच–सात सीटों से आगे बढ़ती हुई नहीं दिख रही।
महाराष्ट्र में कौन बड़ा भाई की लड़ाई!
महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी में दो फाड़ के बाद कांग्रेस को लगता है कि वो बड़े भाई की भूमिका में रहेगी, लेकिन लगता नहीं कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार अपना हिस्सा कम करेंगे। कुल मिलाकर यहां तीनों दल 48 सीटें बराबरी से बांट सकते हैं। तमिलनाडु में डीएमके और झारखंड में जेएमएम के साथ कांग्रेस के गठबंधन में कोई खास उलझन नहीं है। इसके अलावा ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की सीधी टक्कर बीजेपी से है।
देखना यही है कि इंडिया गठबंधन के दल सीटों की गुत्थी कैसे और कब तक सुलझाते हैं। सभी दल चाहते हैं कि गठबंधन में उनके जितने सांसद होंगे, सत्ता आने पर भागीदारी भी उतनी मिलेगी। क्षेत्रीय दल चाहते हैं कि कांग्रेस उनसे सीटें मांगने से ज्यादा ध्यान उन राज्यों पर लगाए, जहां उसका बीजेपी से सीधा मुकाबला है।