केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज (शनिवार) को पटना पहुंच रहे हैं। लोकसभा चुनाव की घोषणा में अब हफ्ते-दस दिन का वक्त बचा है। जाहिर है कि अमित शाह अपने बिहार दौरे में भाजपा और एनडीए के नेताओं से लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा करेंगे। हालांकि उनके आगमन का मूल मकसद पटना जिले के पाली में आयोजित ओबीसी मोर्चा का सम्मेलन है। वैसे तो भाजपा ने हिन्दुत्ल के हथियार से जातीय उभार को रोकने की अलग चाल चली है, लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे सूबों में जातीय आधार पर चुनाव कड़वी सच्चाई है। इसलिए भाजपा इसे भी साधने की कोशिश कर रही है। लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी पूरी तरीके से चारों ओर बिसात बिछाने में लगी हुई है। साथ ही साथ बिहार में महागठबंधन में रहते नीतीश कुमार की सरकार ने जातिगत गणना का काम कराया था। इसमें बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से अधिक पाई गई है। जिसमें जातिगत गणना में एक सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ा ओबीसी का उभर कर सामने आया है, जिसे आधार बना कर नीतीश सरकार ने आरक्षण का दायरा 50 से बढ़ा कर 75 प्रतिशत कर दिया। वहीं बात करे बिहार में ओबीसी आबादी 63 प्रतिशत (27% पिछड़ा वर्ग, 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग) है। नीतीश के इस कदम को राजनीति में मास्टर स्ट्रोक माना गया था। पर आजादी के बाद पहली बार जातिगत सर्वेक्षण का काम किसी सरकार ने कराया है। केंद्र सरकार ने तो पहले ही हाथ खड़े कर दिए थे। कुछ राज्य सरकारों ने कराया भी तो उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए। नीतीश ने अपने बूते यह काम कर दिखाया। वहीं इस पर नीतीश कुमार ने जाति सर्वेक्षण का काम तो कराया, लेकिन भाजपा ने सर्वेक्षण के आंकड़ों पर अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी। सबसे पहले भाजपा ने मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना कर ओबीसी समुदायय को यह संदेश देने की कोशिश की कि ओबीसी में बड़ी आबादी यादव (बिहार में 14 प्रतिशत) समाज को वह कैसे तरजीह देती है। और बात करे यादवों की आबादी कि तो यूपी बिहार के अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी खासा प्रभाव रखती है। अकेले बिहार और यूपी में ही लोकसभा की 120 ऐसी सीटें हैं, जहां ओबीसी वोटर निर्णायक हैं। जिसको देखते हुए मध्य प्रदेश और हरियाणा में ओबीसी के प्रभाव वाली सीटों को जोड़ दें तो यह संख्या 159 हो जाती है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इन 19 सीटों में 118 सीटों पर जीत दर्ज की थी।