ऊषा शुक्ला
आज का मनुष्य बड़ा अजीब सा हो गया हैं । उसे लगता है कि झूठ बोल करके मैं सामने वाले व्यक्ति को बेवक़ूफ़ बना रहा हूँ पर सच तो यह है कि वह ख़ुद ही अपनी नज़रों में बहुत बड़ा बेवकूफ़ बन रहा है ।हमें कभी भी बेवजह झूठ नहीं बोलना चाहिए ।झूठ बोलने वाला व्यक्ती है हर समय एक झूठी दुनिया में ही जीता है । उसका खाना पीना उठना बैठना सोना जागना यहाँ तक कि पूजा पाठ करना भी झूठ से शुरुआत होती है । आश्चर्य की बात है कि वह पूजा तो कर रहा है भगवान के पास ही बैठे हैं पर झूठ बोलना नहीं छोड़ रहा है क्या तमाशे चल रहा ।झूठ बोलने से व्यक्ति को डरना चाहिए । हम सभी जानते हैं कि भगवान हमारे झूठ को देख रहा है सुन रहा है पर फिर भी हम झूठ झूठ बोले चले जा रहे हैं क्यों ।झूठ बोलना अच्छी बात नहीं है पर फिर भी दिखाते हैं कि लोग बेवजह हर समय बस झूठ नहीं बोलते रहते हैं। जिससे वह झूठ बोल रहे हैं वह व्यक्ति जानता है कि मेरे सामने वाला व्यक्ति झूठ बोल रहा है फिर भी झूठा व्यक्ति बोले चले जा रहे हैं झूठी बातें कही जा रहे हैं पता नहीं क्यों । जो व्यक्ति हर समय झूठ बोलते हैं उसे लो रोगी कहते हैं । झूठ बोलने का कोई कारण होना चाहिए । अगर कोई मनुष्य बेवजह हर समय झूठ बोलता है तो उस पर कौन विश्वास करेगा और ऐसा व्यक्ति किसी सच्चे व्यक्ति पर भी विश्वास नहीं करता ।झूठ बोलने की बीमारी का नाम है मिथोमेनिया इसमें, झूठ बोलने का व्यवहार बहुत अधिक आवेगपूर्ण और लगातार होता है। मिथोमेनिया से पीड़ित व्यक्ति के लिए झूठ बोलना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। सामान्य झूठ के विपरीत, व्यक्ति बिना किसी उद्देश्य या रुचि के लगातार झूठ बोलता है और ज्यादातर अपने द्वारा बोले गए झूठ पर विश्वास करता है ।झूठ बोलने वाले व्यक्ति को यह पृथ्वी और भगवान कभी क्षमा नहीं करते, बल्कि झूठ बोलने वाला व्यक्ति स्वयं झूठ बोल-बोल कर थक जाता है और वह खुद को बोझिल महसूस करता है।शास्त्रों में वर्णित है कि जहां व्यक्ति को झूठ बोलने की नौबत आए, वहां उसे मौन धारण कर लेना चाहिए। कपटी, झूठा व दूसरे की निंदा करने वाला व्यक्ति ईश्वर को तो क्या मनुष्यों को भी पसंद नहीं होते। बनावटी व्यवहार करने वाला मनुष्य भी खुद ही परेशान हो जाता है। स्पष्टवादी व्यक्ति की बातें बेशक कड़वी लगती हों, लेकिन इन बातों से कोई पछतावा नहीं रहता। भागवत के अनुसार चित स्वरूप शक्तिशाली जगत के ईश्वर कण-कण में विराजते है। वर्तमान युग में हर कोई भगवान की तलाश में भटकता फिर रहा है। भगवान की शरण में जाने के लिए किसी तलाश की आवश्यकता नहीं, क्योंकि वह तो संसार में हर जगह विद्यमान है। सभी वस्तुओं में भगवान के दर्शन करना ही उच्च कोटि की भक्ति है। झूठ बोलना पाप नहीं है जब आप देख रहे सामने वाला चोर या गुंडा है,या आपका अहित कर सकता है । पता चला सामने वाला आपसे आपके अकाउंटेंट नम्बर, एटीएम मांग रहा है आप ऐसा कानून हैं की सच बोलो तब तो आपका सारा पैसा गया न।एक रोगात्मक झूठा व्यक्ति न केवल बार-बार झूठ बोलता है, बल्कि ऐसा करने के लिए मजबूर भी महसूस कर सकता है। रोगात्मक झूठ बोलने वाले लोग तब भी झूठ बोलना बंद नहीं कर पाते, जब इससे उन्हें मनोवैज्ञानिक परेशानी होती है, उन्हें खतरे में डालती है, और रिश्तों, काम या दैनिक जीवन के अन्य पहलुओं में समस्याएँ पैदा होती हैं।लेकिन आप ऐसे किसी व्यक्ति को क्या कहेंगे? कोई ऐसा व्यक्ति जो बेईमान और अविश्वसनीय हो, और कम से कम बहुत चालाकी से काम करने की कोशिश कर रहा हो। शायद एक रोगग्रस्त झूठा। शायद एक समाज विरोधी। शायद (दुख की बात है, लेकिन यह सबसे अच्छा मामला है) गहराई से भ्रमित । जो भी मामला हो, आप उनकी मदद नहीं कर सकते और वे कभी नहीं बदलेंगे, इसलिए इस पागलपन से दूर हो जाओ। झूठ बोलने वाला व्यक्ति नर्क में जाता हैं — जो व्यक्ति बहुत ज़्यादा झूठ बोलता है उसे “रोगात्मक झूठा” कहा जा सकता है। बेईमानी एक अच्छी आदत नहीं है, लेकिन यह हमेशा रोगात्मक झूठ की परिभाषा में फिट नहीं बैठती । रोगात्मक झूठ बोलने वाले लोग अक्सर जीवन में कभी तरक़्क़ी नहीं कर पाते हैं । एक सच को छिपाने के लिए मनुष्य को बहुत झूठ बोलने पड़ते हैं और फिर वह झूठ पर झूठ झूठ पर झूठ बोलता चला जाता है और उनकी कहानियां बढ़ती चली जाती है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति भूल जाता है कि उसमें थोड़ी देर पहले क्या बोला था और वह जो आस पास सुनता है उसी चीज़ को दोहराता है और वही कहानी बनाता है।