आधुनिक समस्याओं से जूझता भारत कैसा विश्वगुरु?

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भारत आगे का रास्ता दिखा सकता है. यह दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्रों में से एक है, लेकिन हमारे लोगों की भागीदारी मतदान तक ही सीमित है। भारत अपने संस्थानों का विकेंद्रीकरण करके सहभागी लोकतंत्र का एक मजबूत मॉडल बना सकता है। इसके बजाय, यह सत्ता के केंद्रीकरण मॉडल को दोगुना कर रहा है। निःसंदेह, ये समस्याएँ बहुत बड़ी हैं। आख़िरकार, विश्व गुरु बनना कोई आसान उपलब्धि नहीं है। आदिकाल में हम विश्व गुरु थे,लेकिन जो स्थिति आज देश में बन गई है वह संकेत नकारात्मक है, इसके लिए हमें सकारात्मक होना ही पड़ेगा समाज में मार-काट, सामाजिक वैमन्सयता को उठाकर दूर होगा तभी हमारा दिवास्वप्न विश्व गुरु बनने का साकार रूप ले सकेगा। फिलहाल अभी हमें एक क्षीण- सी आशा की किरण भी दिखाई नहीं दे रही है । इसके लिए हमारे राजपुरूषों को निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है जिससे समाज का हर वर्ग एकता के सूत्र में बंध सके और जो हमारे विश्वगुरु बनने के सपनों को साकार कर सकें।

 

प्रियंका सौरभ

भारत तब तक विश्व गुरु नहीं हो सकता जब तक भारत एक मजबूत वैश्विक शक्ति नहीं बन जाता, जिसे दुनिया देखे और सुनने के लिए तैयार हो। शक्ति के बिना कोई प्रभाव नहीं है और प्रभाव के बिना कोई सम्मान नहीं हो सकता। आज यदि भारत को एक असाधारण विश्व गुरु देश के रूप में देखा जाना है, तो उसे आधुनिक समस्याओं के लिए नए समाधान पेश करने होंगे। विविधता, धार्मिक अतिवाद, असमानता और अधिनायकवाद की समस्याएँ नए उत्तर तलाश रही हैं। समाज में बढ़ती राजनैतिक और धार्मिक विषमताओं और विसंगतियों ने भारत की महान संस्कृति को विश्व के मानसपटल से विस्मृत कर दिया है। भारत भीतरी और बाहरी समस्याओं से जूझने को मजबूर है। पाकिस्तान की समस्या, चीन की कारस्तानियां, कश्मीरी घुसपैठ की चुनौती, राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव, इन सभी कारणों से देश विश्वपटल पर हाशिए पर है। इसका मतलब यह नहीं है कि भारत के पास अद्वितीय ताकतें नहीं हैं। वास्तव में इसमें एक सार्वभौमिक दर्शन, स्वाभाविक रूप से सहिष्णु धर्म, युवा आबादी, लोकतंत्र और विविधता का दुर्लभ संयोजन है जिसकी तुलना कोई अन्य राष्ट्र नहीं कर सकता है। मुख्य बात यह है कि इन शक्तियों को बर्बाद करने के बजाय इनका सदुपयोग किया जाए।

अब जब ऐसी स्थिति हो तो फिर विश्व गुरु बनने का जो मानक होता है उस पर हम खरे उतर पाएंगे ? न तो हमारे किसी संत ने या स्वामी ने आध्यात्मिक रूप से स्वामी विवेकानंद के आस-पास अपने को लाने का प्रयास किया है न ही आज कोई उनके जैसा दिखता है, जो जाकर विश्व पटल पर अध्यात्मिक ज्ञान का सिक्का जमा सके, न ही हम आर्थिक रूप से उतने संपन्न हो सके हैं कि विश्व को चुनौती दे सके, न शैक्षिक रूप से उतने संपन्न हुए हैं और न ही सामरिक रूप से, फिर किस आधार पर हम यह कह सकते है कि हम विश्व गुरु बनने जा रहे हैं? यह शुद्ध राजनीतिक झूठ है जिसे बोलकर जनता को गुमराह किया जाता है। हां, हमारे राष्ट्र निर्माता इस झूठ से बचते हुए यह कहें कि यदि जनता सामूहिक प्रयास करे तो भारत फिर से विश्व गुरु के रूप में अपने को स्थापित कर सकता है । इसके लिए निरंतर प्रयास करना और समाज को प्रेरित करते रहना इन राष्ट्र पुरुषों का काम होना चाहिए न कि झूठे दिवास्वप्न दिखाकर फिर उसे जुमला करार देना उचित है। इसके लिए सबसे पहले, भारत को सरकार को एक नई प्रणाली का आविष्कार करना चाहिए जो दुनिया को विविध आबादी से निपटने में आगे का रास्ता दिखाए। यह स्थानीय स्वायत्तता और राष्ट्रीय सर्वोच्चता का संयोजन प्रदान करके किया जा सकता है। यह अन्य देशों के लिए अपनी ‘विविधता में एकता’ को प्रबंधित करने का एक मॉडल हो सकता है। जबकि, भारत स्थानीय नियंत्रणों को नकारने और मजबूत केंद्रीय सरकारों को मजबूर करने में व्यस्त रहा है।

दूसरा, धार्मिक कट्टरता को नियंत्रित करने में भारत एक वैश्विक रोल मॉडल बन सकता है। धार्मिक अल्पसंख्यकों को हमेशा के लिए बलपूर्वक दूर नहीं किया जा सकता या उन पर शासन नहीं किया जा सकता। भारत को अपने अल्पसंख्यकों को सत्ता में उचित हिस्सेदारी देने का रास्ता खोजना होगा, ताकि वे हमारे राष्ट्र के पुनर्निर्माण में सच्चे भागीदार बन सकें। हिंदू एकता और आधिपत्य अल्पकालिक आवश्यक है, मगर ऐसा होने से दुनिया भर में हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा और घरेलू स्तर पर दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है। जांच के धर्म को कट्टरता के धर्म में बदलना कहाँ तक उचित है। तीसरा, भारत पूंजीवाद और समाजवाद का एक संतुलन भी ढूंढा सकता है जिसका अनुसरण दुनिया कर सकती है। यह कल्याणकारी राज्य की सर्वोत्तम प्रथाओं को बनाए रखते हुए सरकार की भूमिका को सीमित करके ऐसा कर सकता है। इसके बजाय, सत्ता की तलाश में भाजपा वोट-हथियाने वाले समाजवाद के पुराने तरीकों को अपना रही है। चौथा, दुनिया भर में लोग निरंकुश सरकारों के अधीन पीड़ित हैं। भारत आगे का रास्ता दिखा सकता है. यह दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्रों में से एक है, लेकिन हमारे लोगों की भागीदारी मतदान तक ही सीमित है। भारत अपने संस्थानों का विकेंद्रीकरण करके सहभागी लोकतंत्र का एक मजबूत मॉडल बना सकता है। इसके बजाय, यह सत्ता के केंद्रीकरण मॉडल को दोगुना कर रहा है। निःसंदेह, ये समस्याएँ बहुत बड़ी हैं। आख़िरकार, विश्व गुरु बनना कोई आसान उपलब्धि नहीं है।

हालात देख क्या हम कह सकते है कि भारत फिर एक बार विश्वगुरु बन सकता है? विश्वगुरु यानी विश्व को पढ़ाने वाला शिक्षक या विश्व को अंधकार से प्रकाश की और लेजाने वाला मार्गदर्शक। अगर हम भारत की वर्तमान स्थिति देखे तो भारत आज फिर से समृद्धशाली बनता जा रहा है।चाहे वो आर्थिक क्षेत्र हो या चिकित्सा का क्षेत्र हो, रक्षा क्षेत्र हो या अंतरिक्ष की दुनिया हो, विज्ञान हो या प्रौद्योगिकीय क्षेत्र हो, कृषि क्षेत्र हो या फिर उत्पादन क्षेत्र हो। लेकिन क्या ये काफी है विश्वगुरु बनने के लिये? ऐसे समृद्ध देश तो आज सभी विकसित देश भी है। सच्चाई ये है कि आज हम सिर्फ विकसित देशो की नकल कर रहे उनकी सभ्यता, संस्कृति और शिक्षा को अपना कर अपनी बहुमूल्य, गौरवशाली सभ्यता, संस्कृत और शिक्षा का इतिहास भूल गए है। स्वतंत्रता के बाद भी कमजोर सरकार और स्वार्थी नेतृत्व ने देश की नींव को ओर खोखला कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप देश स्वतंत्र तो हो गया पर भारतवासियों की सोच स्वतंत्र नही पाई और गुलामी की जंजीरों मे वैसे ही जकड़ी रही। जो खुद गुलाम हो वो दुसरो को क्या दे सकता है?परन्तु कहीं न कहीं देश का हित सोचने वाले लोगों के द्वारा देश और इसकी सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने की कामयाब कोशिश की गई लेकिन धीरे धीरे देश के नेता अपने वोट बैंक के लिये देश को धर्म जाति मे विभाजित करते गए और अपना स्वार्थ साधने लगे और जनता के पैसे अपनी तिजोरियों मे भरने लगे।

सरकार परिवारवाद तक सीमित हो गयी और नेता जातिवादी हो गए,सरकारी तंत्र को घूसखोरी रूपी दीमक लग गया और सरकारी अधिकारी भ्रष्ट होते चले गए। नई पीढ़िया सिर्फ़ पढ़ लिख कर बड़ी-बड़ी उपाधियाँ ग्रहण कर सिर्फ पैसे कमाने में लग गयी और और अपनी संस्कृति, सभ्यता को भूल पश्चिमी सभ्यता में डूब गई और इसका मूल कारण हमारी शिक्षा रही जो अंग्रेजो ने हमे शिक्षा दी वही शिक्षा हमको आजादी के बाद भी प्राप्त हो रही है। जिससे देश का गौरवशाली इतिहास खो गया और नई पीढ़ी को देश से, देश की संस्कृति से कोई प्यार नही रहा।।दूसरी तरफ देश के दुश्मन देश को अंदर से खोखला ओर तोड़ने में लग गए। कानून अमीरों, सत्ताधारियो और समर्थवान लोगो के घर की जागीर बन गया। और देशद्रोहियो को पनाह देने लगा। आदिकाल में हम विश्व गुरु थे,लेकिन जो स्थिति आज देश में बन गई है वह संकेत नकारात्मक है, इसके लिए हमें सकारात्मक होना ही पड़ेगा समाज में मार-काट, सामाजिक वैमन्सयता को उठाकर दूर होगा तभी हमारा दिवास्वप्न विश्व गुरु बनने का साकार रूप ले सकेगा। फिलहाल अभी हमें एक क्षीण- सी आशा की किरण भी दिखाई नहीं दे रही है । इसके लिए हमारे राजपुरूषों को निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है जिससे समाज का हर वर्ग एकता के सूत्र में बंध सके और जो हमारे विश्वगुरु बनने के सपनों को साकार कर सकें।

(लेखिका रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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