प्रीति रावत
नारी तेरी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखो में है पानी। ये शब्द औरत की कमजोरी को दर्शाते प्रतीत होते हैं। अब सब बदल गया है। 21वी सदी..महत्वकांक्षाएं…आत्मविश्वास…समानता…बराबरी। ये शब्द एक नारी की जिंदगी में एक अहम भूमिका रखते हैं। ये शब्द ही इन्हे नई पहचान दिलाते हैं। महिलाएं जीवन में कई अहम रोल निभाती हैं। कभी मां के रूप में, कभी बहन के रूप में, तो कभी एक पत्नी के रूप में। महिलाओं के सम्मान में ही हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।आज की हम महिलाएं झांसी की रानी से कम नही हैं। हर कही हर जगह हमने चक दे फट्टे कर दिया है। खेल जगत हो या राजनीति नारी को है सब भाती। एक चुटकी सिंदूर की कीमत को निभाने के साथ। येस बॉस की बातों को भी पूरा कर जाती क्योकिं आप में है एक मॉर्डन वूमैन जो दायित्व और जिम्मेदारीयों में ताल-मेल बैठाना जानती है। एक कवि ने कहां था कि “ नारी तेरी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखो में है पानी”।पर अब नारी की आंखो का पानी तो खत्म हो गया साथ ही अलग आत्मविश्वाशी पहचान भी मिली है।
लेकिन फिर भी वो कुछ दकियानूसी सोच का शिकार होती रहती हैं। चलिए आपको हम बचपन से शुरू करते हैं।हम लड़कियों की पढ़ाई जहां 12 तक खत्म होती है, वही समाज और पड़ोसियों को हमारी शादी की चिंता हमारे मां-बाप से ज्यादा सताती है। फिर अगर आप नौकरी पेशा होती हैं तो इनकी सुई समय पर अटक जाती है..कैसी लड़की है इतनी रात-रात को घर आती है। कुछ नही मिलता तो कपड़े अड़ोसी-पड़ोसी लोगो का मनपसंदीदा टॉपिक होता है । ये उन चुनिंदा लोगो में से है जो अभी भी लड़कियों को घर में रहने वाला शो पीस,बच्चों की फौज बनाने वाली मशीन,पति की जी हजूरी करने वाला आईटम मानते हैं। सभी को समझना होगा नई महिला. नया सवेरा है। हम,अब ना रुकेंगे हम।कोई साथ दे ना या ना दे अपनी किस्मत बदलेंगे, खुद।पहले भी समाज के कई ठेकेदार आए पर गलत सोच नारी पर अख्तियार ना कर पाए।मॉर्डन युग की युवती है हम….नए समाज की नई युक्ति । एक औरत सामाज का आधार है उसेइज्जत के साथ समानता का भी हक है।वैसे भी हम इतनी टैलेंटिड़ होती है की घर-परिवार,आफिस-में आसानी से पिरो लेती हैं। कोई भी जिम्मेदारी की भूमिका दो हर रोल को अच्छे से निभा जाती है…. हम से है जमाना हम जमाने से नहीं।
लेकिन फिर भी वो कुछ दकियानूसी सोच का शिकार होती रहती हैं। चलिए आपको हम बचपन से शुरू करते हैं।हम लड़कियों की पढ़ाई जहां 12 तक खत्म होती है, वही समाज और पड़ोसियों को हमारी शादी की चिंता हमारे मां-बाप से ज्यादा सताती है। फिर अगर आप नौकरी पेशा होती हैं तो इनकी सुई समय पर अटक जाती है..कैसी लड़की है इतनी रात-रात को घर आती है। कुछ नही मिलता तो कपड़े अड़ोसी-पड़ोसी लोगो का मनपसंदीदा टॉपिक होता है । ये उन चुनिंदा लोगो में से है जो अभी भी लड़कियों को घर में रहने वाला शो पीस,बच्चों की फौज बनाने वाली मशीन,पति की जी हजूरी करने वाला आईटम मानते हैं। सभी को समझना होगा नई महिला. नया सवेरा है। हम,अब ना रुकेंगे हम।कोई साथ दे ना या ना दे अपनी किस्मत बदलेंगे, खुद।पहले भी समाज के कई ठेकेदार आए पर गलत सोच नारी पर अख्तियार ना कर पाए।मॉर्डन युग की युवती है हम….नए समाज की नई युक्ति । एक औरत सामाज का आधार है उसेइज्जत के साथ समानता का भी हक है।वैसे भी हम इतनी टैलेंटिड़ होती है की घर-परिवार,आफिस-में आसानी से पिरो लेती हैं। कोई भी जिम्मेदारी की भूमिका दो हर रोल को अच्छे से निभा जाती है…. हम से है जमाना हम जमाने से नहीं।