इन दिनों नीतीश कुमार के पाला बदलने यानी एनडीए में जाने को लेकर एक बार फिर अटकलें तेज हो गई हैं। जब से दिल्ली के अशोका होटल में हुई इंडिया गठबंधन की बैठक में नितीश कुमार ने इंडिया का नाम बदलकर भारत रखने का प्रस्ताव रखा था तब से ऐसा माना जा रहा था कि नितीश अपना पाला बदल सकते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले जदयू के राजग में शामिल होने के प्रश्न का सवाल अशोक चौधरी ने दार्शनिक अंदाज में दिया। उन्होंने कहा कि कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा? उन्होंने यह भी कहा कि अभी वह इंडी गठबंधन का हिस्सा हैं। वही बात करे भवन निर्माण मंत्री डॉ. अशोक चौधरी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनकी बढ़ी राजनीतिक सक्रियता पर बयान देते हुए बोले टाइगर अभी जिन्दा है।
साथ हि उन्होंने यह भी बोला कि नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से जदयू और मजबूत होगा। उनका कहना हैं कि जदयू के राष्ट्रीय पार्टी बनने का लक्ष्य हासिल हो जाएगा। लेकिन नितीश कुमार के बार बार दल बदलने के कारण उनकी छवि बिहार के लोगो के बीच काफी खराब हुई हैं।
कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा’
लोकसभा चुनाव से पहले जदयू के राजग में शामिल होने के प्रश्न का उत्तर उन्होंने दार्शनिक अंदाज में दिया- कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा? अभी हम महागठबंधन की सरकार के अंग हैं। सहयोगी दलों की मदद से सरकार चल रही है।
अशोक चौधरी ने ईडी और सीबीआई सहित अन्य केंद्रीय एजेंसियों पर लग रहे आरोपों के बारे में कहा- संविधान के तहत गठित एजेंसियों की कार्य प्रणाली में पारदर्शिता होनी चाहिए। इन एजेंसियों के रवैये की चर्चा चारों ओर हो रही है। भाजपा नेताओं को इन चर्चाओं के बारे में जवाब देना चाहिए।
कब और किस दल में शामिल हुए नितीश कुमार
1985 में नीतीश कुमार ने पहली बार नालंदा की हरनौत सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था। चार साल बाद 1989 में जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़े। इसके बाद 1990 की बात है। तब नीतीश कुमार ने जनता दल में अपने वरिष्ठ नेता लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनवाने में खूब मदद की। नीतीश लालू को बड़े भाई कहकर बुलाते थे। 1991 में मध्यावधि चुनाव में नीतीश बाढ़ इलाके से चुनाव जीता। 1994 में नीतीश ने लालू यादव से बगावत कर दी और जॉर्ज फर्नांडीज के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई।
साल 2000 में विधानसभा चुनाव हुए। तब नीतीश कुमार की पार्टी का नाम समता पार्टी था। भाजपा, समता पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा। वहीं, राजद, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी एकसाथ मैदान में थे। एनडीए गठबंधन को चुनाव में 151 सीटें मिलीं। भाजपा ने 67 सीटें जीती थीं। नीतीश कुमार की पार्टी के 34 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। एनडीए गठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चुन लिया। नीतीश ने सीएम पद की शपथ भी ले ली। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा 163 था। राजद की अगुआई वाली यूपीए के पास 159 विधायक थे। बहुमत का आंकड़ा नहीं होने के कारण नीतीश को सात दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा और यूपीए गठबंधन की सरकार बनी।
2005 में जब जदयू-भाजपा ने मिलकर लड़ा चुनाव
ये बात 2005 विधानसभा चुनाव की है। चुनाव से दो साल पहले यानी 2003 में समता पार्टी नए नाम जदयू के तौर पर अस्तित्व में आई। इसमें नीतीश कुमार की समता पार्टी के साथ लोक शक्ति, जनता दल (शरद यादव ग्रुप), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय हो गया था। जदयू और भाजपा ने मिलकर एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ा। फरवरी में हुए इस चुनाव में किसी भी गठबंधन या दल को बहुमत नहीं मिला।
राम विलास पासवान की लोजपा को 29 सीटें मिलीं। पासवान जिसके साथ जाते उसकी सरकार बनती। लेकिन, पासवान दलित या मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की मांग पर अड़ गए। दोनों ही गठबंधन उनकी शर्त मानने को तैयार नहीं हुए। क्योंकि, एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी नेता थीं, तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार गठबंधन के नेता थे। छह महीने राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा।
नए सिरे से चुनाव हुए। इस बार एनडीए गठबंधन में शामिल जदूय को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिलीं। जो बहुमत के आंकड़े 122 से काफी ज्यादा था। नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
2010 में तीसरी बार किंग बने नीतीश
एनडीए गठबंधन ने 2010 में भी साथ में मिलकर चुनाव लड़ा। तब जदयू को 115, भाजपा को 91 सीटें मिलीं। लालू प्रसाद यादव की राजद 22 सीटों पर सिमटकर रह गई। तब तीसरी बार नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता मिली। वह मुख्यमंत्री बने।
2013 में टूटा 17 साल पुराना साथ
2013 में नीतीश ने 17 साल पुराने साथ का साथ छोड़ा था। तब भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। नीतीश कुमार भाजपा के इस फैसले से सहमत नहीं थे। उन्होंने एनडीए से अलग होने का फैसला ले लिया।
भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया। राजद ने नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया। नीतीश पद पर बने रहे। 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश की पार्टी ने अकेले लड़ा। उसे महज दो सीटों पर जीत मिली। एनडीए केंद्र की सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने महादलित परिवार से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि, फरवरी 2015 में नीतीश कुमार ने फिर से बिहार की कमान अपने हाथ में ले ली और मुख्यमंत्री बने। इस बार उनकी सहयोगी राजद और कांग्रेस थीं।
2015 में जब बिहार में बना महागठबंधन
2015 विधानसभा चुनाव से पहले जदयू, राजद, कांग्रेस समेत अन्य छोटे दल एकसाथ आ गए। सभी ने मिलकर महागठबंधन बनाया। तब लालू की राजद को 80, नीतीश कुमार की जदयू को 71 सीटें मिलीं। भाजपा के 53 विधायक चुने गए। राजद, कांग्रेस और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई और नीतीश कुमार फिर से पांचवी बार मुख्यमंत्री बन गए। लालू के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम और दूसरे बेटे तेज प्रताद स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए।
2017 में तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नीतीश कुमार ने उनसे इस्तीफा मांगा। हालांकि, राजद ने मना कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार ने खुद इस्तीफा दे दिया और चंद घंटों बाद भाजपा के साथ मिलकर फिर से सरकार बना ली। भाजपा की मदद से सीएम बने।
भाजपा ने ज्यादा सीटें जीतीं, फिर भी नीतीश को बनाया मुख्यमंत्री
2020 में भाजपा-जदयू ने मिलकर एनडीए गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा। तब जदयू ने 115, भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 74 सीटें हासिल की। ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जदयू सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी। इसके बाद भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने।
भाजपा की तरफ से दो उप मुख्यमंत्री बनाए गए। अभी बिहार विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 243 है। यहां बहुमत साबित करने के लिए किसी भी पार्टी को 122 सीटों की जरूरत होती है। वर्तमान आंकड़ों को देखें तो बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद है। उसके पास विधानसभा में 79 सदस्य हैं। वहीं, भाजपा के 77, जदयू के 45, कांग्रेस के 19, वाम दलों के 16, एआईएमआईएम का 01, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के 04 विधायक और एक निर्दलीय विधायक हैं। अब एक बार फिर से जदयू एनडीए से अलग हो गई है।