Social Crime : क्या है डिजिटल रेप ? जानें इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां
शिवानी मांगवानी
डिजिटल रेप, यह शब्द सुनते सुनते ही सबसे पहले इसे हम साइबर क्राइम या इंटरनेट से जोड़ते हैं, लेकिन इसका इंटरनेट से कोई भी कनेक्शन नहीं है। डिजिटल रेप आखिर है क्या ? आपको बताते हैं कि बिना किसी कन्फ्यूजन के आप खुद भी समझ सकें और अपने आस-पास वालों को भी समझा सकें। दरअसल डिजिटल रेप शब्द दो शब्दों को जोड़कर बना है जो डिजिट और रेप है। इंग्लिश के डिजिट का मतलब हिंदी में मतलब अंक होता है तो वहीं अंग्रेजी के शब्दकोश में डिजिट उंगली, अंगूठा, पैर की अंगुली इन शरीर के अंगों को भी डिजिट कहा जाता है।अगर कोई शख्स महिला की बिना सहमति के उसके प्राइवेट पार्ट्स को अपनी अंगुलियों या अंगूठे से छेड़ता है तो ये डिजिटल रेप कहलाता है। यानी जो शख्स अपने डिजिट का इस्तेमाल करके यौन उत्पीड़न करे तो ये डिजिटल रेप कहा जाता है।
इस अपराध के खिलाफ कानून सख्त
बता दें कि साल 2012 से पहले इस टर्म को कोई नहीं जानता था। आज जिस अपराध को डिजिटल रेप का नाम दिया गया है उसे 2012 के पहले छेड़खानी का नाम दिया गया था, लेकिन निर्भया केस के बाद से इसे रेप लॉ को पेश किया गया और हाथ उंगली या अंगूठे से जबरदस्ती पेनेट्रेशन को यौन अपराध मानते हुए सेक्शन 375 और पॉक्सो एक्ट की श्रेणी में रखा गया। यानि कि साल 2013 से पहले भारत में छेड़खानी या डिजिटल रेप को लेकर कोई कानून नहीं था। लेकिन निर्भया केस के बाद साल 2013 में इस शब्द को मान्यता मिली। बाद में डिजिटल रेप को Pocso एक्ट के अंदर शामिल किया गया।
आरोपित पर पॉक्सो एक्ट क्यों लगा?
आप यह जरूर सोच रहे होंगे कि जब डिजिटल रेप बलात्कार की श्रेणी में है तो फिर आरोपित पर पॉक्सो एक्ट की धाराएं भी क्यों लगाई गई हैं? आपको बता दें कि पॉक्सो एक्ट के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, पोर्नोग्राफी, छेड़-छाड़ जैसे मामलों में कार्रवाई की जाती है। वही नोएडा डिजिटल रेप में पीड़िता के नाबालिग होने की वजह से पॉक्सो एक्ट की भी धाराएं लगाई गई हैं। आपको जानकारी दे दें कि महिला कल्याण एवं बाल विकास मंत्रालय ने सन 2012 में पॉक्सो एक्ट बनाया था। इस कानून के तहत अलग अलग अपराध के लिए अलग अलग सजा निर्धारित की गई है।
इस अपराध में कितनी सजा का प्रावधान?
वहीं इस मामले में लोगों के बीच ये भी कंफ्यूजन है कि अब केस में अपराधी को कितनी सजा मिलती है। यदि किसी आरोपित पर डिजिटल रेप का आरोप सिद्ध होता है तो उसे पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के अंतर्गत न्यूनतम 7 वर्ष के कारावास का प्रावधान है। वहीं इस केस में उम्रकैद की सजा भी दी जा सकती है।