गर्व से खुद को हिन्दू कहने वाले ऋषि सुनक की नाना और नानी भी पंजाब मूल के ही थे। 1960 के दशक में यह परिवार तंजानिया पहुंचा था लेकिन वहां गुजारा हो पाना आसान नहीं था। इस बीच ऋषि सुनक की नानी सरक्षा ने अपनी शादी के जेवर बेचकर ब्रिटेन जाने का एक टिकट लिया था।
मजबूरी का वह दौर ऐसा था कि जेवर बेचने के बाद भी अकेले ही ब्रिटेन जा सकीें और ऋषि सुनक की मां ऊषा समेत उनके तीन बच्चे और पति तंजानिया में ही रह गये। ब्रिटेन आने पर सरक्षा को लिसेस्टर में एक बुक कीपर के तौर पर काम मिल गया था। एक साल के अंदर उन्होंने इतने पैसे बचा लिये थे कि तंजानिया से परिवार को वापस बुला सकें।
इस तरह ऋषि सुनक की मां का परिवार ब्रिटेन आया था। वहीं कुछ ऐसा ही संघर्ष उनके पिता की फैमिली का भी था, जो अविभाजिक भारत के गुजरांवाला से नैरोबी पहुंचा था और फिर रोजगार की तलाश में ब्रिटेन आ गया था। लेकिन ऋषि सुनक के परिवार ने पढ़ाई पर बहुत ध्यान दिया और शिक्षा की अलख से जीवन बदल गया। 1977 में ऋषि सुनक की मां ऊषा और पति यशवीर की शादी हुई थी।
परिवार की सबसे बड़ी संतान ऋषि ही थे। उनके बाद छोटे भाई संजय सुनक हैं जो पेशे से मनो चिकित्सक हैं। इसके अलावा छोटी बहन राखी संयुक्त राष्ट्र में काम करती हैं। पूरे परिवार की जिंदगी में यह बड़ा बलाव शिक्षा की वजह से आया, जिस पर सुनक फैमिली ने हमेशा ध्यान दिया।