कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की ओर गठित कमिटी की रिपोर्ट सोमवार को सार्वजनिक कर दी गई। किसान नेता और समिति के सदस्य अनिल घनवत ने यह रिपोर्ट जारी की। दो अन्य सदस्य अनुपलब्ध रहे।
द न्यूज 15
नई दिल्ली। कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की ओर गठित कमिटी की रिपोर्ट सोमवार को सार्वजनिक कर दी गई। इसके अनुसार ज्यादातर किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों से सहमत थे। तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के बॉर्डर पर किसान सगठनों के लंबे विरोध प्रदर्शन के बाद पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार ने इसे वापस ले लिया था। इस बीच सुप्रीम कोर्ट की कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है।
किसान नेता और समिति के सदस्य अनिल घनवत ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि वापस ले लिए जाने के कारण समिति की टिप्पणियों का कृषि कानूनों पर प्रभाव के संदर्भ में बहुत कम महत्व है। हालांकि, यह नीति निर्माताओं और किसानों के लिए महत्वपूर्ण है। समिति के दो अन्य सदस्य कृषि अर्थशास्त्री व कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी और इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक (साउथ एशिया) डॉ प्रमोद कुमार जोशी इस दौरान अनुपलब्ध रहे।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार तीन कृषि कानून को 2022 में लेकर आई थी। किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद इसे नवंबर 2021 में वापस ले लिया गया था। इसे लेकर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी 2021 को तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। रिपोर्ट के अनुसार समिति ने 266 कृषि संगठनों से संपर्क किया था, जिनमें आंदोलन में हिस्सा लेने वाले किसान भी शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपने का एक साल- इसी तरह समिति को पोर्टल पर 19,027 प्रतिक्रया मिली और 1,520 ईमेल भी प्राप्त हुए। पैनल ने 19 मार्च, 2021 को सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी थी। घनवत ने तीन बार मुख्य न्यायाधीश और प्रधानमंत्री मोदी को भी रिपोर्ट जारी करने के लिए पत्र लिखा था। सोमवार को रिपोर्ट सौंपने का एक साल हो गया, जिसके बाद घनवत ने इसे सार्वजनिक करने का फैसला किया।
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रिपोर्ट में क्या दावा किया गया ? रिपोर्ट की एक कॉपी द इंडियन एक्सप्रेस को भेजी गई है। इसमें दावा किया गया है कि 3.83 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले 73 कृषि संगठनों ने उनसे सीधे या वीडियो लिंक के माध्यम से बातचीत की थी। 73 में से 61 संगठनों में 3.3 करोड़ किसान शामिल थे। इसने कानूनों का समर्थन किया। 51 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले चार संगठनों ने इसका विरोध किया था और सात में शामिल 3.6 लाख किसान इसमें संशोधन चाहते थे।
गेहूं और धान की खरीद को सीमित करना चाहिए- रिपोर्ट में बताया गया है पोर्टल पर कानूनों के समर्थन में लगभग दो-तिहाई प्रतिक्रियाएं आईं। इसके अलावा केवल 27.5 प्रतिशत किसानों ने सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर अपनी उपज बेची और वे मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, पंजाब और मध्य प्रदेश के थे। समिति ने सिफारिशों में कहा था कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा गेहूं और धान की खरीद को सीमित करना चाहिए।
कानूनों को वापस लेना एक बड़ी राजनीतिक गलती- समिति की रिपोर्ट के संबंध में घनवत ने कहा कि यह किसानों और नीति निर्माताओं के लिए काफी अहम है और इसलिए उन्होंने इसे सार्वजनिक करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से उत्तर भारत के किसानों को अब एहसास होगा कि वे अपनी आय बढ़ाने के अवसर को गंवा चुके हैं। इन्होंने ही इसका विरोध किया था। उनके अनुसार सरकार की ओर से कानूनों को वापस लेना एक बड़ी राजनीतिक गलती थी, जिसके कारण पंजाब चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा।