चरण सिंह
क्या देश की आज़ादी झूठी थी ? क्या क्रांतिकारियों की शहादत झूठी थी ? क्या देश का संविधान झूठा है ? क्या राम मंदिर निर्माण से पहले देश में जो आज़ाद भारत की गतिविधियां चल रही थी, वे सभी झूठी थी ? क्या राम मंदिर निर्माण से पहले झूठी सरकारें रहे हैं। यदि ऐसा नहीं है तो फिर आरएसएस मुखिया मोहन भागवत ने ऐसा क्यों कहा कि देश को सच्ची आज़ादी राम मंदिर निर्माण के बाद मिली है। ऐसा जब अभिनेत्री से सांसद बनी कंगना राणावत ने कहा तो उनकी बात को देश में इसलिए गंभीरता से इसलिए नहीं लिया क्योंकि वह उस पेशे से आती हैं। जहां पर सब कुछ ड्रामा ही होता है। यदि अपने को सबसे बड़ा राष्ट्रवादी बताने वाले संगठन के मुखिया मोहन भागवत यह बोल दें तो समझा जा सकता है कि देश कहां जा रहा है।
जितना चिंतनीय यह है कि सत्तारूढ़ पार्टी के मातृ संगठन के मुखिया राम मंदिर निर्माण पर ही सच्ची आज़ादी बता रहे हैं। उससे कहीं अधिक चिंतनीय यह है कि मोहन भागवत के इस बयान पर देश के जिम्मेदार स्तंभ और लोग चुप्पी साधे हुए हैं। मोहन भागवत को कम से कम इतना तो समझ लेना चाहिए था कि राम मंदिर निर्माण से पहले न केवल अटल सरकार बनी थी बल्कि मोदी सरकार भी पहले ही बन चुकी थी। तो क्या मोहन भागवत बीजेपी की सरकारें भी झूठी आज़ादी में मानकर चल रहे हैं ? प्रश्न यह भी है राम मंदिर निर्माण से आज़ादी का क्या मतलब है ? तो क्या आज़ादी की लड़ाई राम मंदिर के लिए लड़ी जा रही थी ? तो क्या यदि अंग्रेज राम मंदिर का निर्माण करा देते तो देश को आज़ाद मान लिया जाता ? प्रश्न यह भी उठता है कि देश की आज़ादी को धर्म से जोड़कर देखना कितना जायज है ? मोहन भागवत के इस बयान से प्रदर्शित हो रहा है कि आरएसएस की आज़ादी से ज्यादा दिलचस्पी राम मंदिर निर्माण में रही है। देखने की बात यह है कि गत दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में बोल दिया कि अंबेडकर-अंबेडकर कहना फैशन बन गया है। इतना यदि भगवान का नाम लिया गया होता तो सात जन्म तक स्वर्ग मिलता।मतलब आरएसएस और बीजेपी संविधान से ज्यादा तवज्जो आस्था को देते हैं। कर्म से ज्यादा धर्म को महत्व देते हैं। देखने की बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत से जब यह पूछा गया कि आरएसएस ने 1950 से 2002 तक अपने मुख्यालय में राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया तो भागवत ने कहा था कि हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को हम राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। नागपुर में महाल और रेशमीबाग हमारे दोनों ही परिसरों में ध्वजारोहण होता है। उन्होंने यह भी कहा कि जहां पर देश के सम्मान का प्रश्न है, राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान का प्रश्न है, वहां पर हम सबसे आगे आपको मिलेंगे लड़ने के लिए प्राण देने के लिए। ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि राष्ट्रीय ध्वज और देश के सम्मान के लिए मोहन भागवत प्राण देने को तैयार हैं तो फिर वह सच्ची आज़ादी राम मंदिर निर्माण पर मान रहे हैं तो फिर देश के सम्मान को गिरा नहीं रहे हैं। तो फिर मोहन भागवत देश के सम्मान को राम मंदिर निर्माण से जोड़ रहे हैं ? क्यों राम मंदिर निर्माण के बाद ही सच्ची आज़ादी मिलने की बात कर रहे हैं ?