नीतीश के खिलाफ लालू ने बनाया ‘पांच का पंच’

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तेजस्वी को दे दिया गया है ‘अस्त्र’

दीपक कुमार तिवारी

पटना। आरजेडी नेता और पूर्व डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव 17 अगस्त से बिहार यात्रा पर निकलने वाले हैं। वाल्मीकि नगर से यात्रा आरंभ होगी। किशनगंज में बिहार यात्रा का पहला चरण वे पूरा करेंगे। कई चरणों में होने वाली यात्रा के मद्देनजर पार्टी के सभी जिला अध्यक्षों के साथ उन्होंने ताबड़तोड़ बैठकें की हैं। सभी प्रकोष्ठों के प्रमुख को यात्रा की तैयारियों के बाबत जरूरी निर्देश दिए हैं। यात्रा के दौरान होने वाली सभाओं में भीड़ जुटाने से लेकर यात्रा का मकसद विस्तार से समझाया है। आरजेडी के लिए तेजस्वी की यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह पार्टी का चुनाव अभियान है। तेजस्वी की यात्रा में अन्य मुद्दों के अलावा पांच प्रमुख मुद्दे शामिल किए गए हैं। आरजेडी के रणनीतिकारों ने मुद्दों का ब्लूप्रिंट तैयार किया है।
तेजस्वी यादव के निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार होंगे। उन्हें घेरने के लिए तेजस्वी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा न मिल पाने को मुद्दा बनाएंगे। तेजस्वी यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया। इसके बावजूद नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू सरकार का न सिर्फ समर्थन कर रही है, बल्कि सरकार में शामिल भी है। यह नीतीश कुमार की दोरंगी नीति है। वे विशेष राज्य की मांग का सिर्फ दिखावा कर रहे हैं। सच यह है कि वे खुद ऐसा नहीं चाहते। वे लोगों को भरोसा दिलाएंगे कि बिहार में आरजेडी के नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक की सरकार बनी तो केंद्र से विशेष राज्य का दर्जा लेकर रहेंगे।
तेजस्वी आरक्षण के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा करेंगे। वे लोगों को बताएंगे कि महागठबंधन की सरकार ने बिहार में जाति जनगणना कराई। आबादी के आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की सीमा संशोधित कर 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 65 प्रतिशत की। केंद्र सरकार को इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध पत्र भेजा। आरक्षण विरोधी केंद्र की भाजपा सरकार ने चुप्पी साध ली। नतीजा यह हुआ कि मामला कानूनी पचड़े में फंस गया। इसके बावजूद नीतीश कुमार केंद्र सरकार के सहयोगी बने हुए हैं। इससे नीतीश कुमार की मंशा पर संदेह होता है। उनकी मंशा साफ होती तो सहयोगी होने के नाते वे केंद्र सरकार पर दबाव बना कर इसे नौवीं अनुसूची में जरूर शामिल कराते।
तेजस्वी लोकसभा चुनाव की तरह अपनी यात्रा में यह बताने से नहीं चूकेंगे कि 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने 10 लाख सरकारी नौकरी के उनके वादे की कैसे खिल्ली उड़ाई थी। पर, आरजेडी जब सरकार में शामिल हुआ तो तो कैसे धड़ाधड़ लोगों को सरकारी नौकरियां मिलने लगीं। अगर आरजेडी सत्ता में आया तो सरकारी नौकरियों के उससे भी अधिक अवसर युवाओं को मिलेंगे। ऐसा सब्जबाग दिखा कर तेजस्वी युवाओं को आकर्षित करने का पूरा प्रयास करेंगे। ये अलग बात है कि उनके माता-पिता के शासनकाल में नौकरी कम और पलायन ज्यादा था। ऐसा आंकड़े भी बताते हैं।
भाजपा और जेडीयू के नेता लालू-राबड़ी के शासन को जंगल राज बताने से कभी पीछे नहीं रहे। लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह तो इसे तोते की तरह रटते रहे। नीतीश कुमार लगातार कहते रहे हैं कि 2005 के पहले कैसे लोग अपने को असुरक्षित महसूस करते थे। उनके सत्ता में आने के बाद ही स्थिति में सुधार हुआ। तेजस्वी ने हाल के दिनों में बिहार में अपराध के आंकड़ों का जिस तरह बुलेटिन जारी करना शुरू किया है, उससे साफ हो गया है कि जंगल राज की काट उन्होंने खोज निकाली है। लूट, हत्या और दुष्कर्म की घटनाओं का उल्लेख तो वे करेंगे ही, वे यह भी बताने की कोशिश करेंगे कि क्राइम से समझौता न करने वाले नीतीश कुमार कैसे आनंद मोहन और अनंत सिंह जैसे बाहुबलियों की रिहाई के रास्ते बनाते रहे हैं।
अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए तेजस्वी को वक्फ संशोधन बिल का ताजा मुद्दा हाथ लग गया है। मुस्लिम कम्युनिटी इसके विरोध में है। अल्पसंख्यक हित की बात करने वाले नीतीश कुमार की पार्टी ने लोकसभा में इस बिल का खुल कर समर्थन किया है। तेजस्वी अल्पसंख्यक समुदाय को यह समझाने की कोशिश करेंगे कि नीतीश कुमार कैसे मुसलमानों के मुद्दों पर दोहरा मानदंड अपना रहे हैं।

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