एनडीए में 122 सीटों से कम पर नहीं मानेंगे नीतीश कुमार
अपने समर्थकों को देंगे टिकट, मिलकर सरकार बनाएंगे नीतीश और लालू
पहले ढाई साल नीतीश कुमार तो दूसरे ढाई साल तेजस्वी यादव होंगे सीएम
2029 के लोकसभा चुनाव में पीएम पद का चेहरा बन बन सकते हैं नीतीश कुमार
चरण सिंह
नई दिल्ली/पटना। बिहार में खेला हो चुका है। आरजेडी मुखिया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अंदरखाने मिलाप हो चुका है। इस खेल में मुख्य भूमिका पूर्व केंद्रीय मंत्री पशु पति पारस ने निभाई है। जानकारी मिल रही है कि दोनों नेताओं में रणनीति बनी है कि चुनाव तो अलग अलग ही लड़ा जाए। यदि बीजेपी चुनाव के बाद कोई खेला करती है तो फिर नीतीश कुमार पाने विधायकों के साथ लालू प्रसाद से मिल सकते हैं। यदि आरजेडी और जदयू की सरकार बनती है तो पहले ढाई साल नीतीश कुमार तो दूसरे ढाई साल तेस्जवी यादव मुख्यमंत्री रहेंगे। उसके बाद 2029 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा।
उत्तर भारत में बिहार देश का ऐसा प्रदेश है कि जिसमें भारतीय जनता पार्टी की कुछ खास चल नहीं पाती है। सुशील मोदी को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी कोई बड़ा नेता तैयार नहीं कर पाई है। इन विधानसभा चुनाव में बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह ने बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री बनाने का बीड़ा उठाया है। बीजेपी के संसदीय बोर्ड के मुख्यमंत्री का निर्णय लेने का उनका बयान भी उसी रूप में देखा जा रहा है।
भले ही बिहार के नेताओं ने बोल दिया हो कि बिहार का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा और नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे। पर अमित शाह या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से ऐसा कोई बयान नहीं आया है। उलटे अमित एक जो छह जनवरी से बिहार का दौरा था वह भी अमित शाह ने स्थगित कर दिया था। मतलब अमित शाह अपने-अपने बयान पर अडिग हैं।
अमित शाह बार को लेकर इतने गंभीर हैं कि न केवल दिल्ली बल्कि बिहार में भी जदयू के नेता ही अमित शाह की जासूसी कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने ऐसे ही वह बयान नहीं दिया है कि वह दो बार गलती कर चुके हैं अब गलती नहीं करेंगे। इसका मतलब वह एनडीए में ही रहकर अपने दांव पेंच चलेंगे। नीतीश कुमार ने चिराग पासवान के दही चूड़ा भोज अपनी नाराजगी जता दी है। चिराग पासवान ने ही संकेत दे दिए हैं कि वह अमित शाह के साथ हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इन परिस्थितियों में नीतीश कुमार क्या करने जा रहे हैं ?
जानकारी यह जानकारी मिल रही है कि अमित शाह को बिहार में शिकस्त देने के लिए नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की बात हो चुकी है। नीतीश कुमार भले ही लालू प्रसाद और पशु पति पारस के दही भोज में शामिल न हुए हों पर उन्होंने पशुपति पारस के माध्यम से लालू प्रसाद को संदेश भिजवा दिया है। मतलब पशु पति पारस नीतीश कुमार के दूत का काम कर रहे हैं। लालू प्रसाद और नीतीश भले ही अलग-अगल चुनाव लड़ रहे हों पर उन्होंने विधानसभा चुनाव के बाद मिलने की रणनीति बना ली है।
लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की रणनीति है कि जदयू 122 सीटों से कम सीटों पर चुनाव न लड़े। आरजेडी की रणनीति है कि कांग्रेस को उन सीटों पर अधिक टिकट दिए जाएं जहां पर से बीजेपी लड़े। नीतीश कुमार अभी इसलिए भी अलग नहीं हो रहे हैं क्योंकि वह एनडीए में रहकर जदयू से अपने अधिक से अधिक विधायक बनाना चाहते हैं। क्योंकि टिकट देने का अधिकार तो नीतीश कुमार के पास ही है। नीतीश कुमार राजनीति के चतुर खिलाड़ी माने जाते हैं। वह ललन सिंह या संजय झा के समर्थक नेताओं को टिकट देंगे ही नहीं। जैसे विधान परिषद् उप चुनाव में उन्होंने अपने पुराने साथी ललन प्रसाद को टिकट दिया है।
नीतीश कुमार का प्रयास है कि अधिक से अधिक विधायक उनके बने। यदि जदयू टूटता भी है तो अधिकतर विधायक उनके साथ ही रहें और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना ली जाए। दरअसल नीतीश कुमार दिलचस्पी फ़िलहाल बिहार में है। लालू प्रसाद उन्हें शुरू के ढाई साल मुख्यमंत्री बने रहने के लिए दे भी सकते हैं। वैसे भी नीतीश कुमार अपने बेटे निशांत को राजनीति में नहीं ला रहे हैं। ऐसे में उन्होंने पहले ही तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी मान लिया है। वह कह भी चुके हैं कि तेजस्वी यादव तो ही उनकी राजनीतिक विरासत संभालेंगे। ऐसे में आने वाले समय में नीतीश कुमार जदयू का विलय आरजेडी में भी कर सकते हैं। उधर चाहे ललन सिंह और या फिर संजय झा, अशोक चौधरी हों या फिर विजय चौधरी सभी नेताओं का कोई अपना जनाधार नहीं है। नीतीश कुमार के दम पर ही ये लोग राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में यदि जदयू का विभाजन होता भी है तो अधिकतर नेता नीतीश कुमार के साथ ही आएंगे। सांसदों में भी अधिकतर सांसद नीतीश कुमार के साथ आएंगे। क्योंकि उनको आगे भी चुनाव लड़ना है।