Freedom Movement : 550 किसान संगठनों के मंच संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा देश में जय जवान जय किसान 500 सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं
डॉ. सुनीलम
Freedom Movement : 9 अगस्त 2022 को अगस्त क्रांति दिवस की 80 वीं वर्षगांठ है। समाजवादी चिंतक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ लोहिया चाहते थे कि 9 अगस्त देश में इतने जोरदार तरीके से मनाया जाए कि 15 अगस्त का कार्यक्रम उसके सामने फीका पड़ जाए लेकिन शासकों ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने 9 अगस्त की महत्ता कभी देशवासियों के सामने नहीं रखी। जनक्रांति की जगह उन्होंने राज सत्ता के हस्तांतरण को ही अत्याधिक महत्व दिया।
अगस्त क्रांति देश के ढाई सौ साल के स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा जनआंदोलन था। इस आंदोलन के प्रणेता महात्मा गांधी थे जिन्होंने मुंबई के तत्कालीन मेयर, सोशलिस्ट नेता युसूफ मेहर अली के सुझाव पर ‘Quit India’ अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देश को दिया था।
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गांधी जी ने कांग्रेस कार्यसमिति को संबोधित करते हुए कहा था कि आज से हर व्यक्ति खुद को आजाद समझें। उन्होंने अहिंसात्मक तरीके से आंदोलन करने पर जोर दिया था। गांधी जी ने भाषण में जिस आजाद भारत की कल्पना की थी, उसमें हर किसी के पास समान आजादी और अधिकार होने की बात कही थी। जिसे बाद में भारत के संविधान के मूलभूत अधिकारों में जोड़ा गया, परन्तु आज के सत्ताधीशों ने उस पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। August Kranti
के आंदोलन की खासियत यह थी कि इस आंदोलन के गांधी जी सहित लगभग सभी जाने-माने कांग्रेस के नेता जेल में थे।
यह सर्वविदित है कि इसी गिरफ्तारी के दौरान ही गांधी जी की पत्नी और महादेव देसाई की जेल में ही मृत्यु हो गई थी।
सभी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद चर्चिल को लगा था कि अब आज़ादी का आंदोलन धीमा पड़ जाएगा। लेकिन एकदम उल्टा हुआ। देश भर में आजादी की चाहत रखने वाली जनता विशेष कर युवाओं ने खुद इसका नेतृत्व किया था और इसे चलाया था। भूमिगत रहकर इस आंदोलन का नेतृत्व डॉ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अरूणा आसफ अली, उषा मेहता, एसएम जोशी आदि नेताओं ने किया था। उस समय जे पी जेल में थे लेकिन जे पी ने भी हजारीबाग जेल से भागकर इस आंदोलन का भूमिगत रहकर नेतृत्व किया था। ढाई सौ साल के आजादी के आंदोलन के इतिहास में कोई दूसरा ऐसा जन आंदोलन नहीं है जिसमें पचास हजार Martyrdom of the Agitators हुई हो तथा एक लाख से अधिक क्रांतिकारियों को जेल जाना पड़ा हो।
इस आंदोलन की यह भी खासियत रही कि Agitators द्वारा रेल की पटरियां उखाड़ने, टेलीफोन के तार काटने, प्रशासनिक कार्यालयों और पुलिस थानों पर झंडे फहराने के कार्यक्रम बड़े पैमाने पर किये गए थे। जिसमें हजारों आंदोलनकारी पुलिस की गोलियों से मारे गए लेकिन आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ उनकी जान लेने की दृष्टि से हिंसा नहीं की थी। यह गांधीजी के अहिंसा के प्रति आग्रह का प्रभाव था। यदि भूमिगत क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की हत्या का इरादा बनाया होता तो यह आंदोलन जनआंदोलन नहीं हो सकता था। यह याद रखना जरूरी है कि इस आंदोलन को गांधी जी ने चौरीचौरा आंदोलन की तरह वापस नहीं लिया था। 1942 का आंदोलन आज़ादी मिलने तक जारी रहा, सभी कांग्रेस नेताओं को 1946 में छोड़ दिया गया लेकिन अंग्रेज जे पी और डॉ लोहिया को छोड़ने को तैयार नहीं थे। गांधी जी के सार्वजनिक बयान देने के बाद उन्हें छोड़ा गया।
इस आंदोलन की यह भी खासियत थी कि इस आंदोलन में हिंदू और मुसलमानों ने एक साथ आकर बड़े पैमाने पर आंदोलन में हिस्सा लिया था। आंदोलन का एक केंद्र बम्बई था। बम्बई जैसे शहर का मेयर Yusuf Meher Ali का चुना जाना, सरदार पटेल द्वारा यूसुफ मेहेर अली को कांग्रेस का टिकट दिलाया जाना बतलाता है कि तब बम्बई में हिन्दू मुस्लिम एकजुटता का माहौल था। सतारा, बलिया, मिदनापुर आदि जगहों पर तो समानांतर सरकारें गठित की गई थीं।
गांधी जी ने विश्व युद्ध के दौरान ही आंदोलन का समय चुना था । वे दोनों ही पक्षों की हार या जीत के पेंच में भारत की आजादी को नहीं फसाना चाहते थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ होते हुए भी वे बार-बार यह कहते थे कि मैं अंग्रेजों से नफरत नहीं करता तथा किसी को भी नहीं करनी चाहिए और ना ही जापान और जर्मनी को प्यार से देखना चाहिए क्योंकि वे गुलामी की अदला – बदली नहीं चाहते थे यानी देश अंग्रेजों से आजाद हो जाए और जापान और जर्मनी का गुलाम बन जाए।
गांधी जी ने 73 वर्ष की उम्र में अपने 2 घंटे के भाषण में अधिकतर समय हिंदू-मुस्लिम एकजुटता की आवश्यकता बतलाने और समझाने में लगाया था। गांधी जी की वह अपील ही देश को बचा सकती है। अंग्रेजों भारत छोड़ो नारा देते समय गांधी जी का जो सपना था, वही सपना अगस्त क्रांति दिवस के 80 वर्ष बाद डॉ.जी जी परीख जी आज भी देख रहे हैं।
1942 के आंदोलन में विद्यार्थी के तौर पर शामिल रहे 10 माह की अंग्रेजों की जेल काटने वाले डॉ परीख जो आजादी के बाद से आज तक हर वर्ष मुंबई के चौपाटी से तब के गवालिया टैंक तथा अब के August Kranti मैदान तक पैदल मार्च करते हैं। डॉ परीख कहते हैं कि आज का समय तब के समय से भी ज्यादा कठिन समय है क्योंकि आज के जो लोग सत्ता में बैठे हैं वे धर्म के आधार पर भेदभाव कर अंग्रेजों से भी ज्यादा जुल्म कर रहे हैं। वे हिटलर से प्रेरणा लेकर देश में राज चलाने की कोशिश कर रहे हैं ।
डॉ. जी जी परीख चाहते हैं कि देश में फिर अगस्त क्रांति जैसा माहौल बने। 1942 में देश का हर दूसरा, तीसरा नौजवान देश को बचाने के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हो। उसी तैयारी की आज जरूरत है। जी जी कहते हैं अब देश को बचाने और बनाने के लिए बड़े पैमाने पर समाजवादियों को जेल जाने की तैयारी करनी है । वही डॉ जी जी परीख की आज सबसे बड़ी चिंता है।देशवासियों की भी यही चिंता होनी चाहिए । इस बार का 9 अगस्त गत 80 वर्षों में सबसे महत्व का है। इस अवसर पर मुंबई की गिरगांव चौपाटी से August Kranti Maidan तक ‘नफरतों भारत छोड़ो’ मार्च निकाला जा रहा है, जिसका नेतृत्व 1942 के आंदोलन के नायक रहे डॉ जी जी परीख, दत्ता गांधी जी के साथ साथ महात्मा गांधी के प्रपोत्र तुषार गांधी, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और गांधीवादी हिमांशु कुमार, राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष नितिन वैद्य और सर्वोदय मंडल के फिरोज मीठी बोरवाला द्वारा किया जा रहा है।
उदयपुर में हिम्मत सेठ और दिल्ली में Samajwadi Samagam के प्रो. राजकुमार जैन, हिंद मजदूर सभा के महामंत्री हरभजन सिंह सिद्धू , गोरखपुर में समाजवादी समागम के महामंत्री अरुण श्रीवास्तव के नेतृत्व में जनक्रांति दिवस पर मार्च निकाले जा रहे हैं। एक बार फिर देश के किसान और युवा बेरोजगार मैदान में है। 550 किसान संगठनों के मंच संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा देश में जय जवान जय किसान 500 सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। अग्निवीर योजना की खिलाफत युवाओं द्वारा की जा रही है। युवा संगठनों की यात्राएं बिहार और उत्तर प्रदेश में निकाली जा रही हैं। उत्तर प्रदेश में सपाइयों द्वारा ‘देश बचाओ, देश बनाओ’ पदयात्राएं निकाली जा रही हैं।
महाराष्ट्र में ‘हर घर में झंडा, हर हाथ में संविधान’ अभियान चलाया जा रहा है। देश के केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा श्रमिक कानूनों की बहाली, निजीकरण पर रोक जैसे मुद्दों को लेकर आंदोलन जारी है। August Kranti का लक्ष्य किसानों और मजदूरों की मुक्ति हासिल करना था । आजादी मिलने के 75 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, अमृतकाल चल रहा है परंतु अगस्त क्रांति के शहीदों का वह सपना साकार नहीं हो सका है, जिन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था या आजादी के आंदोलन के साथ गद्दारी की थी, उनसे कोई भी उम्मीद करना बेकार है।
आज बिखरे हुए विपक्षी दलों की न्यूनतम कार्यक्रमों के आधार पर एकजुटता के बाद देश के जनसंगठनों के सड़कों पर आने के बाद ही कोई बदलाव संभव हो सकता है । Freedom Movement के तहत आइए हम अगस्त क्रांति के शहीदों को याद करते हुए उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लें , तन,मन ,धन लगाकर मैदान में उतरें। आज फिर अगस्त क्रांति की भावना को आत्मसात करने की जरूरत है।