सी.एस. राजपूत
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी राजनीतिक दल चुनावी दंगल में उतर चुके हैं। चाहे सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी हो, विपक्ष में बैठी सपा हो, बसपा हो, कांग्रेस हो या फिर छोटे-छोटे दल सभी ने अपने दांव पेंच आजमाने शुरू कर दिए हैं, वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश के सभी मतदाताओं की भूमिका इन चुनाव में महत्वपूर्ण है पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों पर बड़ा दांव लगा है। नए कृषि कानूनों के विरोध और गन्ने के बकाया भुगतान को लेकर संघर्षरत ये किसान मोदी और योगी सरकार पर बड़े आक्रामक हैं। केंद्र सरकार के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन में अग्रिम मोर्चे पर हैं। इस बात को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी भली भांति समझ रहे हैं। यही वजह है कि उनके राज में भले ही चार से साल से गन्ने का मूल्य न बढ़ा हो पर चुनाव के करीब आते देख योगी आदित्यनाथ ने एक मुश्त गन्ने का मूल्य 25 रुपए बढ़ाया है।
किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत के आंसू प्रकरण के बाद गाजीपुर बॉर्डर पर उन्होंने बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई हैं। लखीमपुर कांड में राकेश टिकैत के योगी सरकार के साथ किये गए सहयोग को भले ही उनके मैनेज होने के रूप में देखा गया हो पर टिकैत फिर से भाजपा पर आक्रामक हैं। वह जहां 22 नवम्बर को अपने संगठन भाकियू को साथ लेकर लखनऊ में योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रहे हैं वहीं 29 नवम्बर को ट्रैक्टर मार्च निकालने जा रहे हैं वह भी बिना अनुमति के। मतलब यदि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले कृषि कानूनों और गन्ना किसानों के बारे में मोदी और योगी सरकार ने कुछ न किया तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान चुनाव में योगी बड़ा उलटफेर कर सकते हैं।
दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों पर कभी चौधरी चरण सिंह की पकड़ थी। उनके बाद काफी हद तक उन बेटे अजित सिंह की पकड़ रही। 2012 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से 38 सीटें हासिल करने वाली बीजेपी ने मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बदले राजनीतिक माहौल की वजह से साल 2014 के आम चुनाव में क्लीन स्वीप किया था। इसके बाद साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 88 सीटों पर जीत हासिल की। 2019 में भी इस क्षेत्र में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन इस बार किसान विशेषकर जाट समुदाय बीजेपी से नाराज़ नज़र आ रहा है। बता दें कि 2019 के आम चुनाव तक बीजेपी को किसानों का समर्थन मिला था. लेकिन पिछले दो सालों से जाट समुदाय धीरे-धीरे बीजेपी से दूर हटता दिख रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों में जाट समुदाय राजनीतिक रूप से काफ़ी प्रभावशाली माना जाता है और बीजेपी साल 2013 के बाद से लगातार इस समुदाय को अपने साथ रखने की कोशिशें करती रही है। इन्हीं कोशिशों के दम पर बीजेपी ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 2012 की अपेक्षा बेहतरीन प्रदर्शन किया। लेकिन गन्ना किसानों की समस्याओं और किसान आंदोलन की वजह से अब यह समुदाय बीजेपी से दूरी बनाता हुआ दिख रहा है।