जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय है राष्ट्रीय किसानी मंच
अमेरिकन कंपनियों के फल, सब्जी, दाले, उपज की आयात से किसानी पर आघात
नई दिल्ली। भारतभर के किसान, जिनमे प्राकृतिक संसाधनों के साथ अपनी श्रम की पूंजी का निवेश, कुशलता और स्वावलंबन के साथ स्वयं सादगी भरा जीवन बिता कर, समाज को अन्न सुरक्षा देने वाले विविध समुदाय शामिल है, उनका संघर्ष निरंतर जारी है! देश के करीबन 60 प्रतिशत परिवार कृषि निर्भर है जो कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेट कारण/ कंपनीकरण द्वारा पूंजीपतियों का हस्तक्षेप और लूट बचाने के पक्ष में आवाज उठाते, शहादत भी देते रहे हैं| किसान विरोधी तीन कानूनों की वापसी से जीत भी पाये हैं|
लेकिन देश के सत्ताधीश आज भी कंपनियों को कृषि संबंधी कार्य और स्थान, सम्मान देकर उनकी कमाई बढ़ाने में लगे हैं| जबकि किसान कर्जदार होकर, न्यूनतम समर्थन मूल्य भी न अपने से आत्महत्या के लिए मजबूर होते रहे हैं, तब भी कृषिउपज का व्यापार बढ़ाकर कृषकों की लूट से करोड़पति बनने वालों से राजनीतिक गठजोड़ एक चुनौती बन गयी है|
सबसे धक्कादायक और धोखादायक खबर है, लोकसभा चुनाव द्वार में और आचार संहिता लागू होते हुए, अमेरिका से 47 कंपनियों का दल जो कृषि व्यापार में सक्रिय है, अमेरिकन कृषि विभाग की सचिव अलेक्सिन टेलर, उसी राष्ट्र के विविध क्षेत्रों के कृषि आयुक्त, और उच्च अधिकारियों के नेतृत्व में भारत पहुंच गया | अप्रैल 22 से 26 तक उन्होंने भारत के व्यापार मंत्री सुनील बर्थवाल जी और अन्य अधिकारियों के साथ चर्चा और अनुबंध किये हैं| उसकी जानकारी देश के किसान- मजदूरों से, संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलनकारी ही नहीं, आम मतदाता -नागरिक जनता से छुपाई गयी है| देश के मीडिया ने इतनी बड़ी हकीकत जाहिर नहीं की लेकिन अमेरिकन अधिकारी अलेक्सिन टेलर जैसी नेता ने अमेरिका के मीडिया को भारत से ही पत्रकार वार्ता कर खबर दी है| अमेरिका की शासन की वेबसाइट पर दर्ज की गयी खबरे और दावे से इस किसान और किसानी पर हो रहे आघात की सच्चाई हर कोई जान सकता है|
आचार संहिता के काल में इतने बड़े वैश्विक व्यापार के हित में करोड़ों क्या अब्जों के अनुबंध करना क्या नियमों का उल्लंघन नहीं है? इसमें शामिल हुए व्यापार मंत्री और अधिकारी दोषी नहीं है?
अमेरिका अधिकारियों के उनके राष्ट्र में जाहिर हुए और भारतीय किसानों -मजदूरों से छुपाये गये दावे इस वैश्वीकरण और पूंजी- बाजारवादी अर्थनीति और आयात- निर्यात की साजिश की पोलखोल करते हैं| उनका दावा है कि भारत एक सबसे बड़ा ग्राहक राष्ट्र है जो अमेरिका के किसानों को फल, सब्जियां, दालें (pulses) आदि के निर्यात पर बड़ा लाभ देता रहा है और अधिक देगा भी! पिछले दो वर्षों में मोदी शासन ने उनकी उपजों की भारत में आयात पर टैक्स (tariff) कम करके, उनके मुनाफे में 11% बढ़ावा मिलने की हकीकत भी उन्होंने जाहिर की है| भारत में 634 दशलक्ष (63 करोड़) युवा साथी, जो 24 वर्ष से कम उम्र के मध्यमवर्गीय होकर उन्हें ई- व्यापार के द्वारा आगे बढ़ाने की ख्वाहिश है और भारत के मध्यमवर्ग की खरीदी की क्षमता बढ़ी है, इससे अमेरिका की ‘खेती विकास कार्यक्रम’ में बढ़ोतरी निश्चित होगी| उनका यह भी दावा है कि इस भारत दौरे में हुए समझौते और अनुबंधों से अमेरिका की कृषि व्यापार कंपनियों और खेतीहरों को लाभ मिलेगा, जो निर्यात पर (tariff) टैक्स कम होने से 1 साल में 345 दशलक्ष से डॉलर्स याने 34.5 करोड़ डॉलर्स (2900 करोड़ रु.) का होगा!
इतनी बड़ी आयात- निर्यात के द्वारा भारतीय किसानों की खेती उपज की बिक्री पर आघात करने वालों का कहना है कि अमेरिका खेती उपज अधिक सकस आहार देती है| भारत की खेती में विविध प्रकार का बदलाव तकनीकी योगदान के द्वारा, लाने में अमेरिका मदद रूप होने वाली है| क्या इससे अन्नसुरक्षा के बदले नगद फसलों का व्यापार बढ़ाएगी ये कंपनियां? बिलगेट्स फाउंडेशन ने अफ्रीका की खेती में बड़ा नुकसान कारक बदलाव और उससे बर्बादी लायी यह बात तो जाहीर है!
अमेरिका के इस दल ने भारत में इथेनॉल को वैकल्पिक ईंधन के रूप में बढ़ाने की योजना भी जाहीर करते हुए कहा है कि इसके लिए भी इथेनॉल उत्पादन के लिए जरूरी अनाज अमेरिका से भेजने का,तकनीकी प्रशिक्षण का अनुबंध (MOU) भी हस्ताक्षरित हो चुका है| इसे जलवायु परिवर्तन से बचाने का कार्य घोषित करते, यहां के पानी, अनाज के दुरुपयोग को दुर्लक्षित करते हुए अमेरिका स्वहित में इथेनॉल को आगे बढ़ा रही है, जरूर! आज ही तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार तक इथेनॉल उत्पादन के उद्योग बढ़ते जा रहे हैं, तो यह भी जलवायु परिवर्तन को कहां तक रोकेंगे, इसका कोई अध्ययन नहीं है| भारत की जनता, विशेषत: किसानी समुदायों को अज्ञानी मानकर यह सब उन्हें जानकारी और सहभाग से वंचित रखकर आगे बढ़ रहा है|
विकास के नाम पर हो रही यह पूंजीवादी घुसपैठ, वैश्विक कंपनियों की लूट, आने वाले चुनाव के पहले, अमेरिका के लिए भरोसेमंद साबित हुई केंद्रीय भारत सरकार से किये गये करार- मदार, अनुबंध धोखाधड़ी है| भारत की अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भरता खत्म करेगी, न केवल किसानी परिवार और भविष्य निर्माता युवाशक्ति की, बल्कि भारत की भी| हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता, हमारे प्रजातंत्र और स्थानीय स्वराज्य संस्था के स्थान, सम्मान और योगदान की भी यह अवमानना है| भाजपा के घोषणा पत्र में भी खेती, पर्यटन, इंफ्रास्ट्रक्चर, औद्योगिकरण जैसे हर क्षेत्र में आज तक हुआ उससे भी अधिक वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण की झलक स्पष्ट है ही!
भारत के जनआंदोलन, हमारा राष्ट्रीय किसानी मंच, संयुक्त किसान मोर्चा भी इस पर कड़े सवाल उठाकर अपना विरोध जाहीर करेगा और स्वयंनिर्भर भारतीय कृषि आधारित अर्थव्यवस्था हासिल करने का संकल्प लेगा, तभी बचेगी खेती, खेतीहर, संविधानिक अधिकार और देश भी! मीरा संघमित्रा, महेंद्र यादव, राजकुमार सिन्हा, अंबिका यादव और मेधा पाटेकर ने इन सब बातों पर जोर दिया है।