आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में मूर्खता और अहंकार का उत्सव!

0
258
मूर्खता और अहंकार का उत्सव
Spread the love

अनिल जैन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इतिहास संबंधी ‘ज्ञान’ से तो देश ही नहीं पूरी दुनिया अच्छी तरह वाकिफ है। कभी वे सिकंदर को बिहार तक ले आते हैं तो कभी तक्षशिला को बिहार में बसा देते हैं और कभी मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त गुप्त वंश का संस्थापक बता देते हैं। कभी वे 700 साल पुराने कोणार्क के सूर्य मंदिर को 2000 साल पुराना बता देते हैं तो कभी कबीर, नानक और गोरखनाथ को मगहर में एक साल बैठा देते हैं। देश को यह जानकारी भी उनसे ही मिलती है कि आजादी के वक्त डॉलर और रुपए की कीमत बराबर थी। इस तरह की इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, विज्ञान आदि से संबंधित भी कई अजीबोगरीब जानकारियों से वे देश-दुनिया को अवगत कराते रहते हैं। अब आजादी के इतिहास संबंधी ऐसी ही अद्भूत जानकारी भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय यानी प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने भी दी है।
भारत सरकार इन दिनों देश की आजादी का अमृत महोत्सव मना रही है। इस साल 15 अगस्त को देश की आजादी के 75 साल पूरे होने जा रहे है। इस निमित्त सरकार के स्तर पर तरह-तरह के कार्यक्रम हो रहे हैं। इस मौके पर केंद्र सरकार के विभिन्न प्रचार माध्यम भी अपने-अपने स्तर पर आजादी के आंदोलन से संबंधित तरह-तरह की विशेष सामग्री का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। इसी सिलसिले में पीआईबी ने हाल में ही में अपनी पाक्षिक पत्रिका में 1857 की क्रांति के बारे में जो जानकारियां दी हैं, वे हैरान करने वाली हैं।
भारत सरकार के तमाम क्रियाकलापों की जानकारी मीडिया को उपलब्ध कराने वाले इस भारी-भरकम प्रचार महकमे यानी पीआईबी की एक पाक्षिक पत्रिका ‘न्यू इंडिया समाचार’ के नाम से प्रकाशित होती है। यह पत्रिका अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में प्रकाशित की जाती है। पत्रिका के अंग्रेजी संस्करण के जनवरी महीने के पहले अंक में 1857 की क्रांति के कई सालों बाद जन्मे स्वामी विवेकानंद और रमण महर्षि को क्रांति का ‘अग्रदूत’ बताया है। यही नहीं, 15वीं सदी में जन्मे चैतन्य महाप्रभु को भी इसी कतार में खड़ा कर दिया गया है।
दरअसल पूरा मामला यह है कि इस पत्रिका में आजादी के अमृत महोत्सव को लेकर कवर स्टोरी छपी है, जिसका शीर्षक है- AMRIT YEAR: TOWARDS A GOLDEN ERA. इस कवर स्टोरी के Inspiration from History शीर्षक वाले पेज पर ‘गोल्डन पीरियड’ वाले बुलेट पॉइंट्स में भक्ति आंदोलन का जिक्र है। इसमें भक्ति काल की आध्यात्मिक चेतना में संतों-महंतों के योगदान की चर्चा करते हुए बताया गया है कि चैतन्य महाप्रभु, स्वामी विवेकानंद और रमण महर्षि 1857 की क्रांति के अग्रदूत (Precursor) थे।
पत्रिका में दिए गए ये सारे तथ्य पूरी तरह गलत हैं। जिन स्वामी विवेकानंद और रमण महर्षि को 1857 की क्रांति का ‘अग्रदूत’ बताया गया है, उनका जन्म क्रांति के वर्षों बाद हुआ था। विवेकानंद 12 जनवरी 1863 को जन्मे यानी क्रांति के छह साल बाद, जबकि रमण महर्षि का जन्म तो क्रांति के 22 साल बाद 30 सितंबर 1879 को हुआ।
सवाल है कि 1857 की क्रांति के बाद जन्मे ये दोनों महापुरुष अपने जन्म से पहले ही किस तरह उस क्रांति के अग्रदूत बन गए?
पत्रिका में भक्ति काल के महान संत चैतन्य महाप्रभु को भी 1857 की क्रांति का ‘अग्रदूत’ बताया गया है जबकि उनका जन्म क्रांति से करीब पांच सदी पहले 18 फरवरी 1486 में यानी पंद्रहवीं सदी में हुआ था, जबकि क्रांति हुई उन्नीसवीं सदी में। पांच सदी पहले चैतन्य महाप्रभु क्रांति के अग्रगामी कैसे बन गए, यह भी बड़ा सवाल है।
इन सवालों के जवाब तो न्यू इंडिया समाचार पत्रिका के संपादक जयदीप भटनागर ही बता सकते हैं, जो भारतीय सूचना सेवा (इंडियन इन्फार्मेशन सर्विस) के सबसे वरिष्ठ अधिकारी और पीआईबी के प्रिसिंपल डायरेक्टर जनरल भी हैं।
दो दिन पहले जब यह पत्रिका पीआईबी के ट्विटर हैंडल पर अपलोड की गई तो सबसे पहले कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने ट्वीट करते हुए इन तथ्यात्मक गलतियों को रेखांकित किया। उसके बाद ग्वालियर के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राकेश पाठक ने भी फेसबुक पोस्ट के जरिए इन्हीं गलतियों का विस्तार से जिक्र किया। बाद में और भी कई लोगों ने इस स्टोरी के लिए पीआईबी की खिल्ली उड़ाई और सरकार तथा पीआईबी पर तंज कसे। तब कहीं जाकर पीआईबी की ओर से मजबूरन खेद जताया गया और कहा गया कि पत्रिका के हिंदी संस्करण में यह गलती सुधार ली जाएगी।
पीआईबी ने गलती स्वीकार करते हुए खेद भले ही जता दिया हो मगर यह सवाल तो अपनी जगह कायम ही है कि आखिर सरकारी प्रचार-प्रसार से जुड़े के इतने बड़े महकमे की पत्रिका में इतिहास को विकृत करते हुए हास्यास्पद तरीके से पेश करने का कारनामा कैसे हो गया और इसके लिए कौन ‘अग्रदूत’ जिम्मेदार है?
आजादी के अमृत महोत्सव को मनाते हुए सिर्फ स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को ही विकृत रूप में नहीं परोसा जा रहा है बल्कि आजादी के बाद आधुनिक भारत के अब तक सफर के बारे में भी सरकारी प्रचार सामग्री में ऐसा ही खेल हो रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव के निमित्त पूरे साल का कार्यक्रम चल रहा है। लेकिन इस कार्यक्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पूरी तरह नदारद है। वैसे भी केंद्र सरकार की प्रचार सामग्री से नेहरू को तो पहले ही हटा दिया गया था। इस बार तो 14 नवंबर को उनकी जयंती पर संसद के केंद्रीय कक्ष में हुए कार्यक्रम में दोनों सदनों के मुखिया यानी राज्यसभा के सभापति और लोकसभा स्पीकर भी नहीं गए और न ही केंद्र सरकार के किसी वरिष्ठ मंत्री या भाजपा नेता ने उसमें शिरकत की।
अमृत महोत्सव के मौके पर सरकार की ओर से तैयार कराई गई प्रचार सामग्री से भी नेहरू पूरी तरह से गायब है। जानकार सूत्रों के मुताबिक हर विभाग को ऊपर से निर्देश दिया गया है कि नेहरू का कहीं जिक्र नहीं आना चाहिए और न ही उनकी तस्वीर कहीं लगनी चाहिए। अमृत महोत्सव पर पूरे साल सरकार का कार्यक्रम चलेगा लेकिन आजादी की लड़ाई में या आजादी के बाद देश के निर्माण में नेहरू की भूमिका के बारे में कुछ भी नहीं बताया जाएगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से एकाध जगह दिखा कर खानापूर्ति की जाएगी। बाकी अमृत महोत्सव में या तो 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से पहले खासतौर से 1857 की लड़ाई के स्वतंत्रता सेनानियो के बारे में बताया जाएगा या फिर 2014 के बाद बनी सरकार की उपलब्धियों की जानकारी दी जाएगी।
यह सब देखते हुए फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के उस बयान की याद आना स्वाभाविक है जो उन्होंने कुछ दिनों पहले दिया था। केंद्र सरकार से वाई श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त इस अभिनेत्री ने पिछले दिनों राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री से सम्मानित होने के बाद एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि भारत को 15 अगस्त 1947 को जो आजादी मिली थी वह भीख मे मिली थी और असली आजादी तो मई, 2014 में मिली है। उस इंटरव्यू के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उन्होंने अपने इस बयान को दोहराते हुए महात्मा गांधी के बारे में भी अपमानजनक टिप्पणियां की थी। उनके इन बयानों की व्यापक आलोचना हुई थी और भाजपा के अलावा सभी राजनीतिक दलों ने भी उस पर आपत्ति जताई। लेकिन न तो कंगना ने अपना कोई बयान वापस लिया था और न ही केंद्र सरकार, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिससे यह माना गया कि कंगना को ऐसा बयान देने की प्रेरणा ‘कही’ से मिली है। अब लग रहा है कि सरकार भी कंगना के बयान की तर्ज पर ही आजादी का अमृत महोत्सव यह मान कर मना रही है कि देश को वास्तविक आजादी 2014 में ही मिली है और सरकारी प्रचार माध्यमों में बैठे लोग भी प्रधानमंत्री के इतिहास-बोध से प्रेरित हैं। कुल मिला कर आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में मूर्खता और अहंकार का उत्सव मन रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here