उत्तर बिहार के अधिकांश जिलों में हल्की से मध्यम वर्षा होने की संभावना : मौसम वैज्ञानिक

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जिन किसानों के पास धान का विचड़ा तैयार हो वे नीची तथा मध्यम जमीन में धान की करें रोपनी

धान की रोपाई प्राथमिकता के आधार पर करें

उचास जमीन में अविलंब करें अरहर की बुआई

सुभाषचंद्र कुमार

समस्तीपुर । डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविधालय पूसा स्थित जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा, एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से जारी 17-21 जुलाई, 2024 तक के मौसम पूर्वानुमान के अनुसार पूर्वानुमानित अवधि में उत्तर बिहार के जिलों में 17-18 जुलाई को आसमान में मध्यम से घने बादल छाए रह सकतें है। उसके बाद आसमान में हल्के से मध्यम बादल छाये रह सकतें है।

अगले 24-48 घण्टो तक उत्तर बिहार के अधिकांश जिलों में हल्की से मध्यम वर्षा हो सकती है तथा पश्चिमी चम्पारण जिला के एक-दो स्थानों पर भारी वर्षा हो सकती है। उसके बाद मैदानी भागो में ज्यादातर स्थानों पर मौसम के शुष्क रहने की सम्भावना है।
हालाकि 20 जुलाई के बाद तराई के जिलों में विशेष रूप से पश्चिम चम्पारण एवं पूर्वी चम्पारण जिलों में अच्छी वर्षा होने की सम्भावना बन सकती है।

अधिकतम तापमान 35 से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने का अनुमान है। न्यूनतम तापमान 27 से 30 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रह सकता है। मंगलवार के तापमान पर एक नजर डालें तो अधिकतम तापमानः 33.5 डिग्री सेल्सियस, सामान्य से 0.3 डिग्री सेल्सियस अधिक
एवं न्यूनतम तापमानः 27.5 डिग्री सेल्सियस, सामान्य से 0.9 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है।

सापेक्ष आर्द्रता सुबह में 75 से 85 प्रतिशत तथा दोपहर में 40 से 50 प्रतिशत रहने की संभावना है।

पूर्वानुमानित अवधि में औसतन 14 से 20 कि०मी० प्रति घंटा की रफ्तार से पूरवा हवा चलने का अनुमान है।

समसमायिक सुझाव देते हुए मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि अगले 24-48 घण्टो तक उत्तर बिहार के अधिकांश जिलों में हल्की से मध्यम बर्षा की संभावना को देखते हुए जिन किसानों के पास धान का विचड़ा तैयार हो वे नीची तथा मध्यम जमीन में धान की रोपनी करें। धान की रोपाई के समय उर्वरकों का व्यवहार सदैव मिट्टी जाँच के आधार पर करें। यदि मिट्टी जाँच नहीं कराया गया हो तो मध्यम एवं लम्बी अवधि की किस्मों के लिए 30 किलोग्राम नेत्रजन, 60 किलोग्राम स्फुर एवं 30 किलोग्राम पोटाश तथा अगात किस्मों के लिए 25 किलोग्राम नेत्रजन, 40 किलोग्राम स्फुर एवं 30 किलोग्राम पोटाश के साथ 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट या 15 किलोग्राम प्रति हेक्टर चिलेटेड जिंक का व्यवहार करें।

धान की रोपाई प्राथमिकता के आधार पर करें। धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 2-3 दिन बाद तथा एक सप्ताह के अन्दर ब्यूटाक्लोर (3 लीटर दवा प्रति हेक्टेयर) या प्रीटलाक्लोर (1.5 लीटर दवा प्रति हेक्टर) या पेन्डीमिथेलीन (3 लीटर दवा प्रति हेक्टर) का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर एक हेक्टर क्षेत्र में छिड़काव करें।

मिर्च का बीज उथली क्यारियों में गिराये। इसके लिए उन्नत प्रभेद पंत मिर्च-3, कृष्णा, अर्का लोहित, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार, पंजाब लाल, काशी अनमोल तथा संकर किस्में अग्नि रेखा, कल्याणपुर चमन, कल्याणपुर चमत्कार, बी०एस०एस०-267 अनुशंसित है। उन्नत किस्मों के लिए बीज दर 1 से 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा 200 से 300 ग्राम संकर किस्मों के लिए रखें। क्यारियों की चौड़ाई एक मीटर तथा लम्बाई सुविधानुसार 3-4 मीटर रखें। बीज को गिराने से पूर्व थायरम 75 प्रतिशत दवा से बीजोपचार करें।

सब्जियों में आवश्यकतानुसार निकाई-गुड़ाई करें तथा लाही, सफेद मक्खी व चूसक कीड़ों की निगरानी करें। इन कीट का प्रकोप दिखाई देने पर बचाव के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड दवा का 0.3 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर फसल में छिड़काव करें। प्याज की बीजस्थली में जहाँ बिचड़े 15 से 20 दिनों के हो गये हों, में खर-पतवार निकालें।

पौधशाला को धूप अथवा वर्षा से बचाने के लिए 40% छायादार नेट से 6-7 फीट की ऊचाई पर ढ़कने का कार्य करें। आर्द्रगलन (डेम्पिंग ऑफ) रोग की नियमित रुप से निगरानी करते रहें।

उचास जमीन में अरहर की बुआई करें। उपरी जमीन में बुआई के समय प्रति हेक्टेयर 20 किलो नेत्रजन, 45 किलो स्फुर, 20 किलो पोटाश तथा 20 किलो सल्फर का व्यवहार करें। बहार, पूसा 9. नरेंद्र अरहर 1, मालवीय-13, राजेन्द्र अरहर 1 आदि किस्में बुआई के लिए अनुशसित है। बीज दर 18-20 किलो प्रति हेक्टेयर रखें। बुआई के 24 घंटे पूर्व 2.5 ग्राम थीरम दवा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करे। बुआई के ठीक पहले उपचारित बीज को उचित राईजोबियम कल्बर से उपचारित कर बुआई करनी चाहिए।

आम के पौधों की उम्र (10 वर्ष से अधिक) के अनुसार फलन समाप्त होने के बाद अनुशंसित उर्वरको जैसे 15-20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 1.25 किलोग्राम नेत्रजन्, 300-400 ग्राम फॉसफोरस, 1.0 किलोग्राम पोटाश, 50 ग्राम बोरेक्स तथा 15-20 ग्राम थाइमेट प्रति पौधा प्रति वर्ष के अनुसार उपयोग करें। जिससे अगले वर्ष पौधे फलन में आ सकें तथा उनका श्वास्थ अच्छा बना रहें।

केला की रोपाई करें। उत्तर बिहार में लम्बी किस्मों के लिए अलपान, चम्पा, कंथाली, मालभोग, चिनियाँ, शक्कर चिनियाँ, फिआ-23 तथा बौनी एवं खाने वाली किस्मों के लिए ग्रेडनेन, रोबस्टा, बसराई, फिआ-1 अनुशंसित है। सब्जी वाली किस्में बतीसा, सावा, बनकेल, कचकेल, फिआ-3 तथा सब्जी एवं फल दोनों में उपयोग आने वाली किस्में कोठियों, मुठियाँ, दुधसागर एवं चकिया अनुशंसित है।

लम्बी जातियों में पौधा से पौधा की दूरी 20 मीटर है एवं बौनी जातियों में 1.5 मीटर रखें। लीची के लिए, मई के अन्त में पकने वाली किस्में जैसे देशी, शाही, अर्ली वेदाना, देहरारोज, पूर्वी तथा रोज सेण्टेड, जून के आरंभ में पकने वाली किस्में जैसे-कसवा, सबौर वेदाना, चाईना तथा लेट बेदाना, जून के मध्य में पकने वाली किस्में जैसे कसैलिया, लौगिया, स्वणरुपा, सबौर मधु, सबौर प्रिया आदि हैं। उपजाऊ मिट्टी में 10X10 मीटर की दूरी पर पौधों की रोपाई करें।

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