नवनिर्मित न्यू नालंदा विश्वविद्यालय के उद्घाटन के साथ ही भारतीय इतिहास से सबसे बड़ा सांस्कृतिक घोटाला हुआ उजागर 

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दिनेश कुमार 

राजगीर। 19 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों नये नालंदा विश्वविद्यालय के उद्घाटन के साथ ही परिसर से भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं पूरी तरह से गायब दिखी। यह नये नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया भर के बौद्ध देशों के आर्थिक सहयोग से बना है और उसी परिसर से भगवान बुद्ध को ही गायब कर दिया गया है।  जबकि सर्वविदित है कि दुनिया भर में नालंदा विश्वविद्यालय की पहचान बौद्ध विश्वविद्यालय के रूप में है।
50 से अधिक बौद्ध देशों से करोड़ करोड़ रुपए आर्थिक सहयोग लेकर नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया। पुराने विरासत को जिंदा और याद करने के लिए ही इस नये परिसर का निर्माण कराया गया। जिस पुराने खंडहर से प्रमाण के रूप में से भगवान बुद्ध की प्रतिमा मिली थी उसी के नये प्रारुप से बुद्ध की प्रतिमा को ही गायब कर दिया जाना बिहार और भारत देश की पहचान मिटाने के साथ भारतीय संस्कृति, इतिहास और बौद्ध विरासत को खत्म करने की दिशा में किया गया केंद्र और राज्य सरकार का सुनियोजित साजिश प्रतीत होता है।
यहां तक की बुद्ध के प्रिय धम्म सेनापति सारिपुत्त जिनका जन्म वहीं सारीचक में हुआ था। वहीं पर सम्राट अशोक महान ने चैत्य (स्तूप) और महाविहार बनवाए जिस पर आगे चलकर नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया। उस सारीपुत और अशोक महान का भी कोई प्रतीक चिन्ह अंकित नहीं है। हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी जब बाहर देशों में जाते हैं तो चिक-चिक कर कहते हैं कि मैं बुद्ध देश से आया हूं पर बुद्ध के सिद्धांतों पर चलने वाले नालंदा विश्वविद्यालय के उद्घाटन कर बुद्ध की प्रतिमा परिसर में न पाकर शर्म नहीं आई वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी आप तो उसी नालंदा की धरती से आते हैं आपको भी यह शर्मसार करने वालों की करतूत नहीं दिखाई दिया ।
नालंदा विश्वविद्यालय बनाने के लिए शिलान्यास  तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने रखी। उद्घाटन के पूर्व  मोदी जी ने क्या  सरकारी स्तर पर एजेंसी द्वारा सूचना नहीं मिली कि भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं और बौद्ध विरासत को पूरी तरह से नए नालंदा परिसर से ही गायब कर दिया गय।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की नींव सम्राट अशोक महान ने रखी वही गुप्त वंश, हर्षवर्धन और पाल वंश के  बौद्ध राजाओं के द्वारा संरक्षण और संवर्धन किया गया था। वहां विश्वविद्यालय में बौद्ध दर्शन के साथ-साथ विभिन्न विषयों की पढ़ाई होती थी।  इस विश्वविद्यालय में नागार्जुन, पतंजलि, आर्यभट्ट, राहुल सीरीधर जैसे आचार्यों ने अपनी सेवा दे कर विश्वविद्यालय की गरिमा पूरे विश्व में फैलाई।आज के वर्तमान समय में संवेदनहीन सरकार द्वारा निर्माण कार्य की देखरेख ना करना वही निमार्ण कार्य में लगी एजेंसियों द्वारा परिसर में तथागत बुद्ध, सारीपुत और सम्राट अशोक महान की प्रतिमा और प्रतिक स्थापित न करवाना भारतीय इतिहास और संस्कृति का घोर अपमान है ऐसे कुकृत्य के लिए जिम्मेदार व्यक्ति व संस्थान को चिन्हित कर दंडित करने की जरूरत है ताकि भविष्य में कोई भी इस तरह से इतिहास, विरासत और संस्कृति से खिलवाड़ न कर सके।

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