Vanishing Traditions : मिट्टी के बर्तनों और लाल दूध की यादें

0
3
Spread the love

 दीपक कुमार तिवारी 

आज के आधुनिक युग में जहाँ मोमो, पिज्जा और बर्गर जैसे विदेशी व्यंजन हर घर में अपनी जगह बना चुके हैं, वहीँ पुरानी भारतीय परंपराएं और उनके साथ जुड़ी कई अद्वितीय चीजें धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं। विशेष रूप से ग्रामीण भारत की संस्कृति और वहां की खानपान की आदतें समय के साथ धुंधली होती जा रही हैं।

 

हड़िया और बरोसी का युग:

 

एक समय था जब हर घर में मिट्टी के बर्तनों का विशेष महत्व होता था। हड़िया और बरोसी जैसे बर्तन घर के रसोईघर की शोभा बढ़ाते थे। दूध जब हड़िया में धीरे-धीरे गरम होता, तो उसकी मलाई लाल रंग की हो जाती थी। उस मलाई का स्वाद अविस्मरणीय होता था। जब रोटी पर वह मलाई रखकर उसे नून (नमक) और मिर्च के साथ खाया जाता था, तो उसका आनंद कुछ और ही होता था।

 

हड़िया का लाल दूध और मेहमानों की मेजबानी:

 

आज जब मेहमानों का स्वागत चाय या कोल्ड्रिंक से किया जाता है, तब कभी मेहमानों को हड़िया में पकाया गया लाल दूध परोसा जाता था। इस दूध का स्वाद ऐसा होता था कि लोग इसे बार-बार पीने की इच्छा जताते थे। चाय और कोल्ड्रिंक जैसे आधुनिक पेय पदार्थों का कोई नामोनिशान नहीं था।

 

खुरचन का अद्भुत स्वाद:

 

हड़िया में पकाए गए दूध की एक और खासियत थी—उसकी खुरचन। जब रात को दूध के नीचे की खुरचन निकाली जाती थी, तो उसका स्वाद अद्वितीय होता था। बच्चों में तो खुरचन खाने को लेकर अक्सर झगड़े हो जाया करते थे, क्योंकि इस स्वाद की तुलना किसी और व्यंजन से नहीं की जा सकती थी। यह एक अलग ही मिठास और संतोष प्रदान करता था, जो आज के आधुनिक व्यंजनों में मिलना मुश्किल है।

 

आधुनिकता में खोती परंपराएं:

 

अब समय के साथ-साथ मिट्टी के बर्तन, हड़िया और बरोसी जैसे पारंपरिक बर्तन घरों से गायब हो गए हैं। उनके स्थान पर स्टील, कांच और अन्य आधुनिक बर्तन आ गए हैं। न तो अब वह लाल मलाई वाली दही रही, और न ही बरोसी में पकाया गया दूध। आज के बच्चे पिज्जा, बर्गर और मोमो के स्वाद के आदी हो गए हैं, लेकिन वे शायद ही कभी उन पारंपरिक व्यंजनों के बारे में जान पाएंगे जिनका कभी उनके पूर्वज आनंद लेते थे।

 

बचपन की यादें:

 

यह सब केवल उन पुरानी यादों का हिस्सा बनकर रह गया है। खुद के बचपन की यादें जब ताजा होती हैं, तो वह हड़िया का लाल दूध, उसकी मलाई और खुरचन का स्वाद जुबान पर आ ही जाता है। इन पारंपरिक अनुभवों का महत्व न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए था, बल्कि यह हमारे जीवन की सादगी और आत्मीयता का प्रतीक भी था।

आज भले ही आधुनिकता ने हमारी जीवनशैली को बदल दिया हो, लेकिन इन पुरानी परंपराओं और उनके साथ जुड़ी यादों का महत्व कभी कम नहीं होगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here