उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी से अलग अपनी नई पार्टी का एलान कर दिया है, वहीं दूसरी ओर मंगलवार वह राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही यात्रा में शामिल होंगे UP Politics: इंडिया गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमार एनडीए में चले गए। रालोद मुखिया जयंत चौधरी भी लगभग एनडीए में जा चुके हैं। महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी बीजेपी में जा चुके हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ भी बीजेपी में जा रहे हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में भी सपा और कांग्रेस में सीटों का बंटवारा नहीं हो पा रहा है। अखिलेश यादव ने कह दिया है कि सीटों का बंटवारा होने के बाद ही वह यात्रा में शामिल होंगे। कांग्रेस भी सपा से ज्यादा तवज्जो सपा छोड़कर जा रहे नेताओं को दे रही है। सलीम शेरवानी ने महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है। वह कांग्रेस की सदस्यता लेने वाले हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है। अब वह अपनी अलग पार्टी बना रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टी का झंडा भी जारी कर दिया। इसके अलावा अब स्वामी प्रसाद मौर्य 22 फ़रवरी को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में रैली को संबोधित करेंगे। वह भारत जोड़ो न्याय यात्रा में भी शामिल होंगे। बीते कई दिनों से सपा से नाराज बताए जा रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने सोमवार को नई पार्टी का गठन कर अब अलग रास्त चुन लिया है। उन्होंने इस पार्टी के झंडे की तस्वीर भी मीडिया के सामने साझा की है. हालांकि अभी उनके साथ इस पार्टी में कौन-कौन रहेगा ये स्पष्ट नहीं हो पाया है, स्वामी की पार्टी का नाम राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी है। अब स्वामी प्रसाद मौर्य मंगलवार को रायबरेली जाएंगे जहां कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में हो रही भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा लेंगे। ‘एक्स’ अकाउंट पर दी थी जानकारी इससे पहले बीते सप्ताह अपने विवादित बयानों से चर्चा में रहने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य से इस्तीफा दिया था। स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसकी जानकारी अपने ‘एक्स’ अकाउंट पर दी थी। उन्होंने त्यागपत्र को पोस्ट करते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी को टैग किया था। स्वामी प्रसाद ने लिखा कि मैं नहीं समझ पाया कि मैं एक राष्ट्रीय महासचिव हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव व नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है, एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है। दूसरी हैरानी यह है कि मेरे इस प्रयास से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों का रुझान समाजवादी पार्टी की तरफ बढ़ा है. बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास व वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो मैं समझता हूं, ऐसे भेदभावपूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।