अमेठी के राजा संजय सिंह 33 साल बाद फिर लड़ रहे विधानसभा की जंग

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विधानसभा की जंग
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संजय गांधी के बाद राजीव गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले संजय सिंह ने पिछले तीन दशकों में लगातार कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों में केंद्रीय मंत्री और राज्य मंत्री के रूप में किया है काम

द न्यूज 15 

नई दिल्ली। अमेठी को कांग्रेस का गढ़ बनाने का रोडमैप तैयार करने वाले अमेठी के राजा संजय सिंह पिछले 33 सालों में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में उनकी दो पत्नियों का आमना-सामना देखा गया था, जिसमें उनकी पहली पत्नी गरिमा सिंह ने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा और दूसरी पत्नी अमीता सिंह को शिकस्त दी। बता दें कि अमीता सिंह कांग्रेस उम्मीदवार थी।
वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में संजय सिंह सुल्तानपुर सीट से कांग्रेस से टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली। इसके बाद संजय सिंह और अमीता ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। अब, भाजपा में सिंह, अमीता और गरिमा के साथ, पार्टी ने दो पत्नियों में से किसी एक को चुनने के बजाय उन्हें रखने का फैसला किया है।
संजय गांधी के बाद राजीव गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले संजय सिंह ने पिछले तीन दशकों में लगातार कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों में केंद्रीय मंत्री और राज्य मंत्री के रूप में काम किया है। लोकसभा में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने के अलावा, उन्हें पार्टी ने उन्होंने राज्यसभा भी भेजा। हालांकि कार्यकाल के अंतिम दौर में वो भाजपा में चले गये।
बता दें कि अमेठी गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हरा दिया था। ऐसे में अब संजय सिंह खुद चुनाव लड़कर गांधी परिवार से “पारिवारिक विरासत” को पुनः प्राप्त करने की उम्मीद में हैं।
वैसे इस सीट को कांग्रेस का गढ़ भले ही माना जाता रहा लेकिन अब यह सीट भगवामय हो चुकी है। इस सीट पर जातीय समीकरण भी खूब प्रभावी देखा जाता है, यहां सामान्य वर्ग के मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। इसके बाद दूसरे पायदान पर पिछड़ा वर्ग आता है। वहीं अनुसूचित जाति के मतदाता तीसरे नंबर हैं।
इस सीट पर अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या आंशिक रूप से है, जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 1962 से से लेकर अब तक 9 बार सामान्य वर्ग के लोग चुनाव जीते है। इसके अलावा 2 बार पिछड़े वर्ग के लोगों को जीत मिली है।
गौरतलब है कि संजय सिंह के पिता रणंजय सिंह ने आजादी के बाद यहां से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पहला चुनाव जीता था। उन्होंने बाद में जनसंघ (1969) और कांग्रेस के टिकट (1974) पर चुनाव जीता।
संजय सिंह ने कहा, ‘यहां गांधी परिवार को लाने वाले हम ही हैं, हम लोगों ने ही उन्हें यहां स्थापित किया। यह मेरी मातृभूमि है और हमारा 1400 साल पुराना इतिहास है जो इस जगह से जुड़ा है। मैंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1980 में अपनी मातृभूमि से की थी और लोगों ने खुले हाथों से मुझे अपनाया। मैं विभिन्न विभागों में मंत्री बना और अमेठी के लोगों के लिए रोजगार सुनिश्चित किया। उन्होंने कहा कि “अपने करियर के अंतिम चरण में, मुझे फिर से अपने लोगों की सेवा करने का अवसर मिला है। क्या यह काफी नहीं है?” बता दें कि इस चुनाव में कांग्रेस ने बसपा के पूर्व नेता आशीष शुक्ला को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। वहीं समाजवादी पार्टी ने गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी देवी को मैदान में उतारा है। वहीं बसपा ने रागिनी तिवारी को टिकट दिया है।

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