Aryan Dispute : डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने शूद्र कौन ? पुस्तक में आर्यों को बताया है मूल भारतीय
Aryan dispute : देश में भाजपा की सरकार बनने के बाद मुगलों के बाहर से आकर भारत में राज करने की बात प्रमुखता से उठ रही है। मुगल शासकों की क्रूरता की कहानी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है।अकबर की महानता पर बहस छिड़ रही है। पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप जैसे हिन्दू राजाओं की वीरता को इतिहास से जोड़ा जा रहा है। ऐसे में एक बड़ा तबका Aryan Dispute की बात कर रहा है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आर्य बाहरी थे या फिर भारत के मूल निवासी ?
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यदि आर्यों की उत्पत्ति की बात करें तो मौजूदा समय में वर्ण व्यवस्था को लेकर सबसे अधिक बहस Dr Bheem Rao Ambedkar के मनुवाद के खिलाफ उग्र विचारों को लेकर होती है। Dr. Ambedkar ने अपनी पुस्तक शूद्र कौन ? में पूरी तरह से विदेशी लेखकों द्वारा आर्यों के बाहर से आकर यहां पर बसने से संबंधित मान्यताओं का स्पष्ट खंडन किया है। अपनी इस पुस्तक में Dr.. Ambedkar लिखते हैं कि वेदों में आर्य जाति के संबंध में कोई जानकारी नहीं है।
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Rig Vedic Period : वेदों में आर्य जाति Arya Samaj के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। वेदों में ऐसा कोई प्रसंग उल्लेख नहीं है, जिससे यह सिद्ध हो सके कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण कर यहां के मूल निवासियों दासो दस्युओं को विजय किया। Dr Bheem Rao Ambedkar के हिसाब से आर्य, दास और दस्यु जातियों के अलगाव को सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्य Rig Vedic Period में उपलब्ध नहीं है। इस पुस्तक के अनुसार वेदों में इस मत की पुष्टि नहीं की गई है कि आर्य, दास और दस्युओं से भिन्न रंग के थे। Dr Bheem Rao Ambedkar ने तो शुद्रों को भी आर्य कहा है। यह शुद्र कौन ? पुस्तक के पृष्ठ संख्या 80 पर लिखा है। आर्यों के बाहरी होने की बात भी विशेष रूप से अंबेडकरवादी लोग ही ज्यादा करते हैं। तो क्या ये लोग बाबा साहेब की इन बातों पर विश्वास नहीं करते है ?
वैसे महात्मा बुद्ध भी आर्य शब्द को गुणवाचक मानते थे। वो धम्मपद 270 में कहते हैं कि प्राणियों की हिंसा करने से कोई आर्य नहीं कहलाता। सर्व प्राणियों की अहिंसा से ही मनुष्य आर्य अर्थात श्रेष्ठ व धर्मात्मा कहलाता है। अम्बेडकरवादी सभी संस्कृत ग्रंथों को गप्प कहते हैं। इसलिए कुछ विदेशी यात्रियों के प्रमाण विचारणीय हो सकते हैं। वैसे भी हमारा समाज आदि काल से वर्ण व्यवस्था पर चल रहा है। यदि आर्य Arya Samaj बाहर से आये हैं तो फिर यह वर्ण व्यवस्था किसने बनाई ? हमारे समाज की वर्णव्यवस्था तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों और शुद्रों पर टिका है।
यदि यूनान के राजदूत मेगस्थनीज की बात करें तो 350 ईसा पूर्व चंद्रगुप्त के दरबार में आये मेगस्थनीज ने भी आर्यों को भारत का ही मूल निवासी बताया है। मेगस्थनीज ने अपनी इंडिका नामक पुस्तक में वर्णन किया है कि भारतीय मानते हैं कि ये सदा से ही इस देश के मूल निवासी हैं। चीनी यात्री फाह्यान और हन्यून्सांग दोनों ने भी कहीं पर कोई ऐसा शब्द नहीं लिखा है जो आर्यों को विदेशी या आक्रांता बताता हो। वैसे भी ये दोनों बौद्ध थे। इतिहास के पितामह हेरोडेटस ने भी अपने लेखन में भारत का कुछ विवरण दिया है पर उनके लेखन में एक भी शब्द ऐसा नहीं लिखा है कि भारत में आर्य बाहर से आये थे।
अलबेरूनी जो मूलत मध्य पूर्व ईरान और अफगानिस्तान से महमूद गजनवी के साथ आया था। वह भी लंबे समय तक भारत में रहा। अलबरूनी ने भी भारत के संबंध में कई पुस्तकें लिखी हैं पर एक शब्द भी आर्यों के बाहर से आने का नहीं लिखा है।
वैसे भी गत वर्ष हरियाणा के हिसार में राखीगढ़ी में हुई हड़प्पाकालीन सभ्यता की खुदाई से कई राज से पर्दा उठ चुका है। 5000 साल पुराने कंकालों के अध्ययन के बाद रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि आर्य यहीं के ही थे। दरअसल इस मामले को लेकर वैज्ञानिकों ने राखीगढ़ी में मील के नरकंकालों के अवशेषों का डीएनए टेस्ट कराया था। रिपोर्ट में पता चला कि प्राचीन आर्यन्स की डीएनए रिपोर्ट से यह रिपोर्ट मेल नहीं खाती है। ऐसे में जाहिर होता है कि बाहर से नहीं आये थे।
Education in Vedic Period : वैदिक काल में छात्र माता-पिता से अलग गुरु के घर अर्थात् गुरुकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। गुरु मौखिक प्रवचन द्वारा शिक्षा प्रदान करते थे और छात्र सुनने के पश्चात् मनन तथा चिन्तन करते थे। 2) शिक्षण संस्थाएँ – शिक्षण प्रदान करने का कार्य गुरुकुल या ऋषि आश्रम में किया जाता था।
दरअसल दक्षिणपंथी Aryan Dispute को नकारते हुए मानते हैं कि भारतीय सभ्यता उनसे से ही निकली है। ये लोग खुद को आर्य कहते हैं। यह घुड़सवारी करने वाले और पशुपालन करने वाले योद्धाओं और चरवाहों की एक घुमंतू जनजाति थी, जिन्होंने हिन्दू धर्म के सबसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों यानी वेदों की रचना की थी। वे कहते थे हैं कि आर्य भारत से निकले और फिर एशिया और यूरोप के बड़े हिस्सों में फैल गये। इसी से उन इंडो-यूरोपीय भाषाओं का विस्तार हुआ जो आज यूरोप और भारत में बोली जाती है। एडोल्फ हिटलर और मानव जाति के इतिहास का अध्ययन करने वाले यूरोप के कई लोग 19वीं सदी में यह मानते थे कि आर्य ही वह मुख्य नस्ल थी, जिसने यूरोप को जीता लेकिन एडोल्फ हिटलर का मानना था कि आर्य नॉर्डिक थे यानी वे उत्तरी यूरोप से निकले थे।