यूपी में सपा-कांग्रेस के गठबंधन के बाद दिल्ली, प. बंगाल और महाराष्ट्र में भी सीटों के तालमेल की बनी संभावना
चरण सिंह
वजूद खोते जा रहे विपक्ष के लिए किसान आंदोलन संजीवनी का काम कर सकता है। जिस तरह से शंभू बॉर्डर पर एक किसान की मौत के बाद आंदोलनकारियों में गुस्सा देखा जा रहा है। जिस तरह से संयुक्त किसान मोर्चा ने भी दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया है। ऐसे में केंद्र सरकार और किसानों के बीच के पूरे आसार बन गये हैं। इस बार गृह मंत्रालय ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा को सख्त निर्देश दे दिये हैं कि किसी भी तरह से कोई किसान दिल्ली में घुसना नहीं चाहिए। जिस तरह से किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत ने ऐलान कर दिया है कि किसान दिल्ली में जाकर टकराव रहेंगे। ऐसे में जब किसान हर हालत में दिल्ली में घुसना चाहेेंगे तो कुछ भी हो सकता है। यदि किसान आंदोलन में जान और माल की हानि होती है तो ऐसे में विपक्ष उसे मुद्दा जरूर बनाना चाहेगा।
वैसे भी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी उनकी सरकार बनने पर एमएसपी पर कानून की गारंटी देने की बात कर चुके हैं। वह बात दूसरी है कि यूपीए सरकार में राहुल गांधी सर्वेसर्वा थे पर एमएसपी पर कानून की गारंटी न दे सके थे। पंजाब और दिल्ली में राज करने वाली आप आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल भी लगातार किसान आंदोलन की पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने किसानों की मांगों को जायज बताते हुए केंद्र सरकार से उनकी मांगों को मानने की अपील है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवत मान का रुख भी किसानों की ओर है। यह माना जा रहा है कि फिर से दिल्ली बॉर्डर पर किसानों का हुजूम उमड़ने वाला है। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में स्थिति यह है कि या तो केंद्र सरकार किसानों की मांगें माने नहीं तो फिर किसान आंदोलन कोई भी रूप धारण कर सकता है।
दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र कृषि प्रधान प्रदेश हैं। इन प्रदेशों में किसान आंदोलन का अच्छा खासा असर पड़ सकता है। इस आंदोलन का असर इसलिए भी पड़ रहा है, क्योंकि किसानों ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया है। किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार ने पिछले आंदोलन में उनकी जो मांगें मानी थी उन पर काम नहीं हुआ है। दो साल से सरकार किसानों को टरका रही है। किसान एमएसपी और कर्ज माफी पर कानून की गारंटी समेत कई मांगों पर अड़े हैं। वैसे भी एमएसपी पर कानून की गारंटी और कर्ज माफी का वादा प्रधानमंत्री चुनावी प्रचार में कर चुके हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सरकार से एसएसपी पर कानून की गारंटी की बात कही थी। ऐसे में किसानों की मांगों का असर केंद्र सरकार पर पड़ रहा है। किसान भी जानते हैं कि लोकसभा चुनाव के दबाव में उनकी मांगें मानी जा सकती हैं।
दरअसल इंडिया के सूत्रधार नीतीश कुमार के एनडीए में जाने के बाद विपक्ष की स्थिति डांवाडोल होने लगी थी। पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को कोई सीट देने को तैयार नहीं थी। पश्चिमी बंगाल में टीएमसी अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी थी। महाराष्ट्र में सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस का उद्धव गुट और शरद पवार से कोई तालमेल नहीं बन पा रहा था। ऐसे में उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के गठबंधन के बाद विपक्ष में थोड़ा सा ठहराव दिखा है। कांग्रेस 17 सीटों पर मान गई है। अब आम आदमी पार्टी भी दिल्ली में कांग्रेस को तीन सीटें देने को तैयार हो गई है। ऐसे ही अब महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस की बात बन सकती है।
दरअसल केंद्र सरकार के खिलाफ किसान आंदोलन के खड़े होने से विपक्ष में जान आ गई है। विपक्ष यह मानकर चल रहा है कि किसान आंदोलन लंबा चलेगा। ऐसे में लोकसभा चुनाव पर किसान आंदोलन का असर पड़ना तय है। विपक्ष की यह बात भलीभांति समझ में आ रही है कि गत किसान आंदोलन में बीजेपी उत्तर प्रदेश के चुनाव में ही किसान आंदोलन से घबरा गई थी और आनन और फानन में खुद प्रधानमंत्री मोदी ने खुद नये कृषि कानून वापस लेने की बात कही थी। ऐसे में जब किसान नेताओं की केंद्र सरकार से बात हुई तो केंद्र सरकार ने किसानों की सभी मांगें मानने की बात तक कह दी थी। अब किसानों का यह आरोप केंद्र सरकार पर है कि कानून वापस लेने के बाद अलावा केंद्र सरकार ने उनकी कोई मांग नहीं मानी। केंद्र सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए किसान अब किसी भी तरह से दिल्ली में घुसने को तत्पर हैं।
दरअसल पिछले किसान आंदोलन में सरकार और उसके समर्थकों ने किसान आंदोलन को बदनाम करने की पूरी कोशिश की पर किसान नेता अपनी मांगों पर अडिग रहे। पिछले आंदोलन में 700 किसानों की मरने की बात सामने आई थी। यह किसानों का आंदोलन में टिकना ही था कि 13 महीने आंदोलन होने के बाद गत उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले खुद प्रधानमंत्री मोदी आगे आये और तीन नये कृषि कानून वापस ले लिये। तब उन्होंने कहा था कि वह किसानों को समझाने में कामयाब नहीं हुए। पिछले किसान आंदोलन में गाजीपुर बॉर्डर पर किसान नेता राकेश टिकैत के आंसू निकलने के बाद किसान आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया था। पिछला आंदोलन सिंघु बॉर्डर से शुरू हुआ था तो इस बार का आंदोलन शंभू बॉर्डर से शुरू हुआ है। अब देखना यह होगा कि यह आंदोलन लोकसभा चुनाव में क्या गुल खिलाता है। किसानों की मांगें मानी जाती हैं या फिर किसानों को उनके हालात पर छोड़ दिया जाता है।