राष्ट्रीय मुद्दा बनने के चलते बीजेपी और मुस्लिमों के नाम पर राजनीति करने वाले दलों के पक्ष में हो रहा है वोटों का धुर्वीकरण
चरण सिंह राजपूत
हर चुनाव में भाजपा की एक बड़ी रणनीति होती है। जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के चलते हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा न चल सका तो कर्नाटक के उडपी में एक सरकारी कालेज में हिजाब पहनने को लेकर हुए विवाद को हवा दे दी। दरअसल इस स्कूल में हिजाब पहनने वाली छात्राओं को कॉलेज में प्रवेश नहीं दिया गया। दरअसल भाजपा, आरएसएस और दूसरे तथाकथित हिन्दूवादी संगठनों ने देश में ऐसा माहौल बना रखा है कि हिन्दूओं में एक बड़ा तबका मुस्लिमों के रहन-सहन और खान पीन से नफरत करने लगा है। इन संगठनों ने इस तबके में यह माहौल बना रखा है कि जिस तरह से मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ रही है उस हिसाब से यहां पर बहुत जल्द मुस्लिम राज होने की अंदेशा है। इन सबके चलते मुस्लिमों के प्रति होने वाली कोई धार्मिक घटना को भाजपा हवा दे देती है। यह भी जगजाहिर है कि हिन्दू-मुस्लिम मुद्दा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादा चलता है। पहले चरण में ५८ सीटों पर आज मतदान हो रहा है। विभिन्न जिलों की विभिन्न सीटों पर वोट डालने न देने जबर्दस्ती वोट कहीं और डलवा देने की खबरें लगातार आ रही है। समाजवादी पार्टी ने चुनाव से आयोग के कई शिकायतें की है।
दरअसल हिन्दू-मुस्लिम को लेकर होने वाली किसी भी घटना से भाजपा को फायदा होता है। हिजाब मामला भले कर्नाटक में हुआ हो पर इसका असर उत्तर प्रदेश चुनाव पर भी पड़ेगा। कर्नाटक हिजाब मामले से उत्तर प्रदेश में ध्रुर्वीकरण कराने में बीजेपी लग गई है। हिजाब प्रकरण से यूपी के 26 जिले प्रभावित हो सकते हैं। दरअसल कर्नाटक के उडुपी में एक सरकार कॉलेज में हिजाब पहनने को लेकर हुआ विवाद काफी गहरा गया है। यह मामला हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पास सुनवाई के लिए पहुंच चुका है। उडुपी बले ही लखनऊ से काफी दूर है पर बीजेपी ने एक रणनीति के तहत इसे उत्तर प्रदेश के चुनाव में घुसा दिया है। दरअसल हिजाब विवाद एक भावनात्मक मुद्दा है जिससे भारतीय जनता पार्टी को यूपी चुनाव में मतदाताओं के ध्रुवीकरण करने में मदद मिल सकती है।
यह मुद्दा आजकल मीडिया में भी सुर्खियां बना हुआ है। भाजपा की रणनीति है कि यह मुद्दा जितना उछलेगा उतना ही उसे फायदा होगा।यह मुद्दा अब राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। विभिन्न दलों के नेताओं ने सड़क से लेकर कोर्ट और संसद उठाना शुरू कर दिया है। यह भी अपने आप में दिलचस्प है कि कर्नाटक में हिंदुत्व के पैरोकार निजता के अधिकार और किसी की पोशाक चुनने के मौलिक अधिकार पर पुट्टुस्वामी के फैसले से परेशान नहीं हैं। हालांकि 8 पार्टियों के विपक्षी सांसदों ने भी यह कहते हुए वॉक आउट किया कि हिजाब पहनना कोई अपराध नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि देश में डर का माहौल बनाया जा रहा है।
दरअसल उत्तर प्रदेश में बीजेपी को एक भावनात्मक मुद्दे की जरुरत थी जो कर्नाटक से मिल चुका है। मुस्लिमों को लेकर राजनीति करने वाली विपक्षी पार्टियों को भी ऐसे ही एक मुद्दे की जरूरत थी। राजनीतिक दलों में उत्तर प्रदेश में ऐसी माहौल बना दिया है कि राज्य में हिंदू मतदाता ‘भ्रमित’ हैं। वे यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि जमीनी मुद्दे पर वोट डालें या फिर भावनात्मक। बीजेपी यह भली भांति जानती है कि किसान आंदोलन और दलितों और पिछड़ों की उपेक्षा के चलते एक बड़ा तबका बीजेपी से नाराज है। ऐसे में उसे एक बड़े भावनात्मक मुद्दे को खोज थी जो उसे मिल गया है। बीजेपी जानती है कि (सपा)-राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) गठबंधन द्वारा बनाए गए ओबीसी-जाट के अलावा मुस्लिमों के वोटों को गठबंधन को समर्थन देने से रोकना बहुत जरुरी है। पश्चिमी यूपी के 26 जिलों में 136 सीटें हैं, जहां मुस्लिम आबादी 26 प्रतिशत से थोड़ी अधिक है। यहां पर बीजेपी के लिए हिन्दुओं के वोटों का धुर्वीकरण बहुत जरूरी है।
उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के लिए बीजेपी के लिए पश्चिमी यूपी का चुनाव बहुत बेहद महत्वपूर्ण है। 2017 में बीजेपी को पूरे यूपी में 41 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, पश्चिमी यूपी में उसका वोट शेयर 44.14 फीसदी था, जो आंशिक रूप से कैराना से हिंदुओं के धार्मिक प्रचार और मुजफ्फरनगर दंगे की वजह से होता था। 2019 के आम चुनाव में पूरे यूपी में बीजेपी का वोट शेयर 50 फीसदी था। वहीं, पश्चिमी यूपी में यह 52 फीसदी था। मतलब 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बहुत बड़ा योगदान रहा था।
हिन्दुओं के एक बड़े तबके को खुश करने के लिए भाजपा मुस्लिमों से दूरी बनाकर चलती है। यही वजह है कि भाजपा ने इस क्षेत्र में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है जबकि सपा ने 12, कांग्रेस ने 11, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 16 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। वहीं, एआईएमआईएम ने भी 9 मुसलमानों को मैदान में उतारा है। मुस्लिम वोटों को विभाजित करके असदुद्दीन ओवैसी वही भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों ओवैसी अपना करिश्मा दिखा चुके हैं। मायावती से भी बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारकर मुस्लिम वोटों के बंटने बीजेपी की मदद की है।