किसान नेता राकेश ने बनाया मुद्दा, ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए कहा कि 700 किसानों की मौत से मन नहीं भरा जो अब किसानों के आदर्श और हमारे पूर्वजों का अपमान कर रहे हो
चरण सिंह राजपूत
हरियाणा विश्वविद्यालय ने अपने कलेंडर से पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह का फोटो ही हटा दिया गया है । किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत ने इसे मुद्दा बना लिया है।
इस मामले पर नाराजगी व्यक्त करते हुए राकेश टिकैत के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया कि 700 किसानों की मौत से मन नहीं भरा जो अब किसानों के आदर्श और हमारे पूर्वजों का अपमान कर रहे हो । कलेंडर से हटा देना न सिर्फ चौधरी चरण सिंह जी का अपमान है, बल्कि देश के हर किसान के आत्मसम्मान पर आत्मघात है !
दरअसल इस ट्वीट के साथ ही राकेश टिकैत ने एक फोटो भी शेयर किया है, जिसमें लिखा है कि जिस नेता की याद में किसान दिवस मनाया जाता है, उस नेता का नाम कृषि विश्वविद्यालय से हटा दिया, ये देश के हर किसान का अपमान है। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम पर बने चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हर साल एक कैलेंडर छापता है, जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अलावा चौधरी चरण सिंह की तस्वीर प्रकाशित होती थी। लेकिन इस बार और पिछले साल के कैलेंडर में चौधरी चरण सिंह का फोटो नहीं लगाया गया।
कैलेंडर से चौधरी चरण सिंह के फोटो को हटाने का मामला सोशल मीडिया के जरिए वायरल होने लगा है। कई किसान संगठनों ने कुलपति से मिलकर पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह की फोटो लगाने की मांग की और कहा अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे आंदोलन करेंगे। राकेश टिकैत ने भी इसी मुद्दे को उठाते हुए सरकार पर हमला बोला और इसे किसानों का अपमान बताया है।
कैलेंडर से चौधरी चरण सिंह के फोटो को हटाने का मामला सोशल मीडिया के जरिए वायरल होने लगा है। कई किसान संगठनों ने कुलपति से मिलकर पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह की फोटो लगाने की मांग की और कहा अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे आंदोलन करेंगे। राकेश टिकैत ने भी इसी मुद्दे को उठाते हुए सरकार पर हमला बोला और इसे किसानों का अपमान बताया है।
किसान नेता राकेश टिकैत कहा है कि वे किसी पार्टी के विरोध में नहीं है और ना किसी नेता के विरोध में। उनका विरोध सरकारों से हैं जो उनकी मांगों पर विचार नहीं कर रही हैं। प्रदेश सरकार की सहयोगी पार्टी जेजेपी के छात्र संगठन इनसो ने भी इसे निंदनीय बताया है और यूनिवर्सिटी प्रशासन को गलती सुधारने करने के लिए 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। इनसो के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप देशवाल ने कहा कि 48 घंटे के अंदर जाने या अनजाने में हुई गलती को दुरुस्त कर विश्वविद्यालय कैलेंडर में चौधरी चरण सिंह जी की फोटो लगाई जाए और इस गलती के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई हो। उन्होंने कहा कि अगर 48 घंटे में यह गलती नहीं सुधारी जाती है तो इनसो विश्वविद्यालय के कुलपति का घेराव करेगी।
भाजपा ने घर बैठे विपक्ष को बड़ा मुद्दा दे दिया है। यह घटना तब घटी है जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह के पौते जयंत चौधरी चरण सिंह के मानुष पुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का पूरा असर देखा जा रहा है।
दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भले ही चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी के नाम पर सहमत न हों पर चौधरी चरण सिंह अपनाम कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। चौधरी चरण सिंह का कलेंडर से हटाना मुद्दा उत्तर प्रदेश के चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है।
दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को किसानों के अभूतपूर्व विकास के लिए याद किया जाता है। चौधरी चरण सिंह की नीति किसानों व गरीबों को ऊपर उठाने की थी। उन्होंने हमेशा यह साबित करने की कोशिश की कि बगैर किसानों को खुशहाल किए देश व प्रदेश का विकास नहीं हो सकता। चौधरी चरण सिंह ने किसानों की खुशहाली के लिए खेती पर बल दिया था। किसानों को उपज का उचित दाम मिल सके इसके लिए भी वह गंभीर थे। उनका कहना था कि भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, मजदूर, गरीब सभी खुशहाल होंगे। आजादी के बाद चौधरी चरण सिंह पूर्णत: किसानों के लिए लड़ने लगे थे। चरण सिंह की मेहनत के कारण ही ‘‘जमींदारी उन्मूलन विधेयक” साल 1952 में पारित हो सका। इस एक विधेयक ने सदियों से खेतों में खून पसीना बहाने वाले किसानों को जीने का मौका दिया। दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी चौधरी चरण सिंह ने प्रदेश के 27000 पटवारियों के त्यागपत्र को स्वीकार कर ‘लेखपाल‘ पद का सृजन कर नई भर्ती करके किसानों को पटवारी आतंक से मुक्ति तो दिलाई ही, प्रशासनिक धाक भी जमाई। लेखपाल भर्ती में 18 प्रतिशत स्थान हरिजनों के लिए चौधरी चरण सिंह ने आरक्षित किया था। चौधरी चरण सिंह स्वतंत्र भारत के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में 28 जुलाई, 1979 को पद पर आसीन हुए थे. मोरारजी देसाई की सरकार के पतन में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, लेकिन वह अधिक समय तक इस पद पर बने नहीं रह सके। 1977 में चुनाव के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो किंग मेकर जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृह मंत्री बनाया गया. इसी के बाद मोरारजी देसाई और चरण सिंह के मतभेद खुलकर सामने आए. मोरारजी देसाई ने जब चौधरी चरण सिंह को भाव देना बंद कर दिया तो उन्होंने बग़ावत कर दी। इस प्रकार 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए, यह तो स्पष्ट है कि यदि इंदिरा गांधी का समर्थन चौधरी चरण सिंह को न प्राप्त होता तो वह किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे. पर कुछ समय बाद ही इंदिरा गांधी ने भी अपना समर्थन वापस ले लिया। इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त, 1979 को बिना बताए समर्थन वापस लिए जाने की घोषणा कर दी। अब यह प्रश्न नहीं था कि चौधरी साहब किसी भी प्रकार से विश्वास मत प्राप्त कर लेंगे. वह जानते थे कि विश्वास मत प्राप्त करना असम्भव था, यहाँ पर यह बताना प्रासंगिक होगा कि इंदिरा गांधी ने समर्थन के लिए शर्त लगाई थी। उसके अनुसार जनता पार्टी सरकार ने इंदिरा गांधी के विरुद्ध जो मुक़दमें क़ायम किए हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए. लेकिन चौधरी साहब इसके लिए तैयार नहीं हुए थे। उत्तर प्रदेश के किसान चरण सिंह को अपना मसीहा मानने लगे थे। उन्होंने समस्त उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए कृषकों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में कृषि मुख्य व्यवसाय था। कृषकों में सम्मान होने के कारण इन्हें किसी भी चुनाव में हार का मुख नहीं देखना पड़ा।