RSS : मुस्लिमों को यवन सर्प कहते थे हेडगेवार

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मुसलमानों के प्रति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से लेकर मोहन भागवत के विचार एक से नहीं हैं। आरएसएस के सर संघचालकों के विचार समय के साथ बदलते रहे हैं।

भारत के प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद की जयंती से एक दिन पहले 11 जनवरी 2023 को पत्रिका को दिये गए एक इंटरव्यू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भारतीय मुसलमानों के लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि आज भारत में रह रहे मुसलमानों और इस्लाम को लेकर ऐसी बातें कहते रहे हैं, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालकों के बयान से मेल नहीं खाता। गत दिनों जब ज्ञानवापी का मामला जोर पकड़े हुए था, तब आरएसएस चीफ ने कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों ढूंढ रहे हैं ?
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पहले भी भारतीय मुसलमानों और इस्लाम को लेकर ऐसी बातें करते रहे हैं, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सर संघ चालकों के बयान से मेल नहीं खाता। गत दिनों जब ज्ञानवापी का मामला जोर पकड़े हुए था, तब आरएसएस चीफ ने कहा था कि हम हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों ढूंढ रहे हैं ?  जुलाई 2021 में आरएसएस की अल्पसंख्यक इकाई मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की ओर से गाजियाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते मोहन भागवत ने कहा था कि अगर कोई हिन्दू कहता है तो किसी मुसलमान को यहां नहीं रहना चाहिए तो वह शख्स हिन्दू नहीं है।

आरएसएस के संस्थापक की क्या थी राय ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27  सितंबर 1925  को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। हेडगेवार 1925  से 1940 तक आरएसएस के सरसंघचालक रहे थे। हेडगेवार 1919 से 1922 के बीच चले खिलाफत आंदोलन के खिलाफ थे। कांग्रेस और गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया था और साथ ही रॉलेट एक्ट पंजाब में मार्शल लॉ लागू करने और जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ असहयोग आंदोलन भी शुरू किया था। खिलाफत आंदोलन तुर्की के सुल्तान को अंग्रेजों द्वारा अपदस्थ किये जाने के विरोध में शुरू हुआ था। भारत समेत दुनिया भर के मुसलमान तुर्की के सुल्तान को अपना आध्यात्मिक नेता खलीफा मानते थे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्क साम्राज्य विभाजित हो गया और खलिफा को सत्ता से हटा दिया गया।

खिलाफत आंदोलन तुर्की के सुल्तान को अंग्रेजों द्वारा अपदस्थ किये जाने के विरोध में शुरू हुआ था। भारत समेत दुनिया भर के मुसलमान तुर्की के सुल्तान को अपना आध्यात्मिक नेता खलीफा मानते थे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्क साम्राज्य विभाजित हो गया और खलीफा को सत्ता से हटा दिया गया। इसके खिलाफ दुनिया भर के मुसलमानों में रोष था और वह अंग्रेजों का विरोध कर रहे थे। इसी क्रम में भारत के मुसलमान भी अंग्रेजों का विरोध कर रहे थे। बाद में वह आंदोलन हिंसक भी हो गया था।

खिलाफत आंदोलन से नाराज हेडगेवार ने मुस्लिमों को यवन सर्प कहा था। वह भारतीय मुसलमानों द्वारा तुर्की के खलीफा के लिए चलाए जा रहे आंदोलन से नाराज थे। यवन सर्प का इस्तेमाल दुश्मनों के लिए किया जाता है। खिलाफत और असहयोग आंदोलन दोनों एक साथ चल रहा था। हेडगेवार की जीवनी लिखने वाले सीपी भास्कर के मुताबिक संघ संस्थापक का कहना था कि महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से देश में राष्ट्रवाद का उत्साह ठंडा हो रहा था। सामाजिक जीवन की वह सभी बुराइयां जो उस आंदोलन से उत्पन्न हुई थीं, भयानक रूप से अपना सिर उठा रही थीं।  चारों ओर व्यक्तिगत कलह का बोलबाला था। विभिन्न समुदायों के बीच संघर्ष शुरू हो गया था।
ब्राह्मण गैर ब्राह्मण संघर्ष नग्न रूप से देखने को मिल रहा था। कोई संगठन एकीकृत या एकजुट नहीं था। असहयोग के दूध पर पाले हुए यवन सांप अपनी विषैली फुफकार से देश में दंगे भड़का रहे थे। संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर थे। उनका कार्यकाल 1940 से 1973 तक रहा था। गोलवलकर को संघ और भाजपा के सदस्य गुरुजी भी कहते हैं। गोलवलकर ने अपनी किताब बंच ऑफ थॉट्स में मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को भारत के आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। गोलवलकर अपनी किताब बंच ऑफ थॉट्स में मुसलमानों, इकाइयों और कम्युनिस्टों को भारत के आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया है।  गोलवलकर अपनी किताब वी.आर. अवर नेशनहुड डिफाइंड में अल्पसंख्यकों के प्रति वही रवैया अपनाने की सलाह देते पाए जाते हैं, जो एडाल्फ हिटलर ने यहूदियों के लिए अपनाया था।

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