देव मणि शुक्ल नोएडा सेक्टर 82 पाकेट 7 के सेन्ट्रल पार्क में 22वा छठ महापर्व मनाया जा रहा है। छठ पूजा समिति के अध्यक्ष शैलेंद्र मिश्रा ने कहा है कि 5 नवंबर कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व शुरू होगा।6 नवम्बर कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना 7 नवंबर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य और 8 नवम्बर कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान किया जायेगा।
नहाय-खाय के दिन 5 नवंबर को छठव्रती एवं श्रद्धालु सुबह के समय सर्वप्रथम अपने घरों और आस-पास की सफाई करेंगे।स्नान करके छठव्रती चावल, चना दाल और लौकी की शब्जी का प्रसाद बनाएंगें।पूजा के उपरांत छठव्रती प्रसाद ग्रहण करेंगे और घर के सभी सदस्यों और पड़ोसियों को प्रसाद देंगे।इस दिन छठव्रती पूर्ण रूप से शुद्ध और स्वच्छ होकर सूर्योपासना के लिए पूर्ण रूप से समर्पित हो जाते हैं।उसके बाद उनका व्रत शुरू हो जाएगा।
6 नवंबर को प्रातः उठकर छठव्रती और श्रद्धालु घर और आस-पास की सफाई करेंगे।स्नान करके छठव्रती स्वयं रोटी, चावल का पिट्ठा, शक्कर का खीर,आदि प्रसाद बनायेंगे।सभी प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है।शाम के समय घर के अंदर अकेले व एकांत में बैठकर छठव्रती छठी मैया व भगवान भास्कर की पूजा करेंगी।मिट्टी की चुकड़ी, ढकना आदि में प्रसाद, कसेली, पान का पत्ता, कपूर,सिंदूर आदि रखकर दीपक जलाएंगे और छठी मैया और भगवान भास्कर की पूजा छठव्रतियों द्वारा की जायेगी।पूजा के उपरांत छठव्रती स्वयं प्रसाद ग्रहण करेंगी और घर के सभी सदस्यों, पड़ोसियों और मित्रगणों को प्रसाद दिया जायेगा।इसी के साथ छठव्रतियों का 36 घण्टे का निर्जला उपवास व्रत शुरू हो जायेगा।इस 36 घण्टे के उपवास में छठव्रती कोई खाना,पानी आदि कुछ ग्रहण नहीं करते हैं। बिना पानी के पूर्ण रूप से उपवास में रहते हैं।
7 नवम्बर को दिन में छठव्रतियों द्वारा गेहूं का आटा, घी और शक्कर का ठेकुआ तथा चावल, घी और शक्कर का लड्डू प्रसाद के लिए बनाया जायेगा।बांस के बने सूप, डाला, दौरा में सभी प्रकार का प्रसाद रखा जायेगा।प्रसाद के रूप में सेब, केला, नारंगी, अमरूद, डाभ सहित सभी प्रकार का फल,ईख, पानी में फलनेवाला सिंघाड़ा, मूली, सुथनी, सकरकंद,कच्चा नारियल, चीनी का बना साँचा, घर में बना ठेकुआ, लड्डू, कच्चा धागे का बना बद्धी, सिंदूर, कपूर,अगरबत्ती आदि रखा जाता है।सायं काल में सूर्यास्त से पूर्व छठव्रती और उनके परिवार के सदस्य सिर पर प्रसाद सहित सूप, डाला, दौरा लेकर श्रद्धालु घर से निकलकर छठघाट पर जायेंगे।छठव्रती घर से घाटों तक कष्टी देते जाते हैं।नदी, तालाब, कृत्रिम तालाब,तरणताल आदि छठघाट के रूप में प्रयोग में लाये जाते हैं।सूर्यास्त से पूर्व हाथ में प्रसाद रखा हुआ सूप, डाला, दौरा लेकर छठव्रती छठघाट में प्रवेश करेंगे और भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करेंगे।सभी उपस्थित श्रद्धालु भगवान भास्कर को जल द्वारा अर्घ्य प्रदान करेंगे।भगवान सूर्य को अर्घ्य सूर्यास्त से पूर्व दिया जायेगा।
सायंकाल छठ घाट के निकट सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें मुख्य रूप से छठ माता के गीतों और लोकगीतों की धूम रहेगी।
8 नवंबर को प्रातःकाल उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा।सूर्योदय से पूर्व छठव्रती और उनके परिवार के सदस्य सिर पर प्रसाद से भरा सूप,डाला और दौरा लेकर श्रद्धालु घर से चलकर छठघाट पर आयेंगे। सूर्योदय होते ही छठव्रती घाट में प्रवेश कर और हाथ में प्रसाद से भरा सूप, डाला, दौरा आदि लेकर उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान करेंगे।अन्य उपस्थित श्रद्धालु गौ दूध से भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे।
अर्घ्य अर्पित करने के उपरांत छठव्रती छठघाट पर बने सूर्यपिंड के निकट बैठकर भगवान भास्कर और छठमाता की पूजा-अर्चना करेंगे।पूजा के उपरांत छठव्रतियों द्वारा पारण किया जायेगा।छठव्रतियों द्वारा प्रसाद ग्रहण करने के बाद घर के सभी सदस्य, पड़ोसी और सभी लोग प्रसाद ग्रहण करेंगे।इसके साथ ही चार दिवसीय छठपूजा महापर्व का समापन हो जायेगा।