जल्द सरकार को सौंपेगी उर्वशी मित्तल
द न्यूज 15 ब्यूरो
नई दिल्ली। पर्यावरण और स्वास्थ्य को बेइंतहा नुकसान पहुंचाने वाला प्लास्टिक चारों ओर पड़ा दिखाई दे जाएगा। चाहे कपड़े हों, चप्पल या जूते हों या फिर बिस्तर हर चीज में तो प्लास्टिक भरा पड़ा है। ऊपर से इससे फैलने वाला प्रदूषण भी। इसमें दो राय नहीं कि प्लास्टिक दुनिया के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन चुका है। प्लास्टिक की समस्या समेत समस्यायों से निपटने के लिए फ्लास्क लेडी के नाम से दुनिया भर में मशहूर उर्वशी मित्तल ने एक मास्टर प्लान तैयार किया है।
पर्यावरण संरक्षण के हितों में निरंतर कार्य कर रही उर्वशी इंटरनेशनल इनर व्हील क्लब की राष्ट्रीय सचिव हैं उन्होंने अपनी एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया है कि प्लास्टिक उत्पादन की वजह से 2019 में 2.24 गीगाटन के बराबर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन हुआ था, जोकि 2019 में हुए कुल वैश्विक उत्सर्जन के 5.3 फीसदी के बराबर है.
तमाम देशों को प्लास्टिक खत्म करने के लिए एक मंच पर लाना चाहती हैं उर्वशी
बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण से निजात पाने के मकसद से ही दुनिया भर के वैज्ञानिक और पर्यावरण संरक्षण के लिए लोग कार्य कर रहे है उर्वशी मित्तल भी लगातार इस कार्य में जुटी हैं। इसके लिए देश समेत विदेशों में उन्होंने जिम्मेदार लोगों के साथ कई बैठके की हैं।
फ्लास्क लेडी उर्वशी मित्तल दुनिया भर में मीटिंग कर प्लास्टिक से जुड़े हर पहलुओं पर मंथन कर चुकी है, जिसमें समुद्री पर्यावरण सहित बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण पर लगाम लगाने जैसे एजेंडे शामिल है.
इनर व्हील क्लब के जरिए दुनिया भर में बैठक कर दे रही संदेश
प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने का सफर इनर व्हील क्लब से शुरू हुआ जहां उन्होंने महिलाओं के जरिए पूरे विश्व को संदेश दिया… उनसे जुड़े लोग बताते की है उर्वशी को देख उन्होंने भी प्लास्टिक का साथ छोड़ा है और आज वो इनर व्हील के कार्यक्रमों में भी प्लास्टिक का बहिष्कार किया जाता है… हिंदुस्तान समेत विश्व में उन्होंने कई अहम बैठकों में हिस्सा लिया है।
अगर उनकी रिपोर्ट के कुछ बिंदुओं को जाने तो प्लास्टिक संधि पर दुनिया बटी हुई है।
हालांकि बातचीत तेल उत्पादक देशों के रुख के चलते अधर में अटक गई थी. दरअसल अमेरिका और सऊदी अरब जैसे प्रमुख तेल और गैस उत्पादकों ने प्लास्टिक उत्पादन में कटौती के पक्ष में नहीं थे. वजह है प्लास्टिक का उत्पादन, जो ज्यादातर तेल के उत्पादन पर निर्भर करता है. मतलब ये हुआ कि प्लास्टिक की मांग बढ़ेगी तो तेल का प्रोडक्शन भी उसी क्रम में बढ़ेगा।
यही है एक पेंच है जिससे सहज ही सवाल उठ रहे हैं कि क्या उर्वशी सभी देशों को एकजुट करने में कामयाब होगी. यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब ये अनुमान है कि 2060 तक प्लास्टिक उत्पादन तीन गुना होने की राह पर है।
फ्लास्क लेडी उर्वशी मित्तल कहती है कि अगर उत्पादन इसी तरह बढ़ता गया तो प्लास्टिक बनने के प्रोसेस के दौरान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन दोगुना से अधिक हो जाएगा. जो कि वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य को पाने में रोड़ा बन सकता है।
इसी के साथ उर्वशी को ये उम्मीद है कि सभी देश अपने व्यक्तिगत हितों और मतभेदों को दरकिनार कर लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गौर करेंगे.
फ्लास्क लेडी उर्वशी मित्तल की उस रिपोर्ट के कुछ बिंदु आपको बताते हैं जिसमें ये समझाया गया है कि हमें क्यों प्लास्टिक से छुटकारा पाने की जरूरत है और इसके क्या क्या खतरे हैं..।
प्लास्टिक कचरे में बेतहाशा बढ़ोतरी – फ्लास्क लेडी उर्वशी मित्तल
उर्वशी के मुताबिक हर दिन, प्लास्टिक से भरे 2,000 कचरा ट्रकों को दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में फेंक दिया जाता है. लोग तेजी से प्लास्टिक के इन छोटे कणों में सांस ले रहे हैं, खा रहे हैं और पी रहे हैं।
फ्लास्क लेडी के मुताबिक़ 2040 तक पूरी दुनिया में क़रीब 1.3 अरब टन प्लास्टिक जमा हो जाएगा। अकेले भारत हर साल 33 लाख टन से अधिक प्लास्टिक पैदा करता है. प्लास्टिक उद्योग अब वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का 5% हिस्सा है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2050 तक 20% तक बढ़ सकता है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक आज सालाना करीब 40 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है।
वहीं उर्वशी दूसरी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहती है कि अब तक 110,00,000 टन प्लास्टिक महासागरों की अथाह गहराइयों में जमा हो चुका है. जिससे आप साफ तौर पर समझ सकते हैं कि प्लास्टिक से समुद्री जीवन भी सुरक्षित नहीं रह गई है. यूनाइटेड नेशंस इनवायरमेंट प्रोग्राम के ही मुताबिक प्लास्टिक के मलबे से हर साल दस लाख से अधिक समुद्री पक्षी और 1,00,000 समुद्री स्तनधारी मारे जाते हैं।
प्लास्टिक से भी बड़ा खतरा माइक्रोप्लास्टिक – फ्लास्क लेडी उर्वशी मित्तल
समस्या सिर्फ यह प्लास्टिक और उससे पैदा होने वाला कचरा ही नहीं है. इससे पैदा हुआ माइक्रोप्लास्टिक भी परेशानी का सबब बन चुका है. ये हमारे चारों ओर फैला हुआ है और अफसोस लोगों को फिर भी इसके बारे में न के बराबर जानकारी है।
जब प्लास्टिक के बारीक़ टुकड़े बहुत छोटे आकार में टूट जाते हैं तो उन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है. उर्वशी ने नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन NOAA का हवाला देते हुए कहा कि, माइक्रोप्लास्टिक 0.2 इंच (5 मिलीमीटर) से छोटे प्लास्टिक के कण हैं. देखने में इनका आकार एक तिल के बीज के बराबर हो सकता है.
हाल अब यह है कि मानव शरीर भी माइक्रोप्लास्टिक की पनाहगाह बनता जा रहा है. 2020 में, उर्वशी की रिसर्च टीम ने एक अध्ययन में पाया कि पहली बार अजन्मे शिशुओं के प्लेसेंटा में माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए. उर्वशी ने इसे बड़ी चिंता का विषय बताया.
बता दें एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया कि लोग हर साल 39,000 से 52,000 माइक्रोप्लास्टिक के कणों को निगल जाते हैं. इसके अपने अलग खतरे हैं, जैसे रक्तचाप में बढ़ोतरी, तंत्रिका
प्रणाली पर असर और किडनी को नुकसान
फ्लास्क लेडी ने इस रिपोर्ट में कई चौंकाने और हैरान करने वाले खुलासे किए है. उनकी माने तो पूरी स्टडी आपकी उस प्लास्टिक बॉटल के इर्द गिर्द ही है जिसे आप ऑफिस ले जाते हैं, घूमने-फिरने जाने पर साथ ले जाते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक एक लीटर पानी में लगभग 2 लाख 40 हजार प्लास्टिक के बेहद महीन टुकड़े होते हैं. यह हाल तब है जब इसमें टॉप 10 ब्रांडेड पानी के बॉटल शामिल किए गए।
स्वास्थ्य पर भी खतरे
इस बात के कई संकेत मिले हैं कि सांस में घुलकर जाने वाला प्लास्टिक हमारे फेफड़ों को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है. इस बारे में वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं कि अगर लंबे समय तक यह प्लास्टिक जमा होता रहा तो क्या होगा?
वैज्ञानिकों ने यहां तक चेताया है प्लास्टिक कैंसर, जन्मजात विकलांगता और फेफड़ों की बीमारी सहित कई प्रकार की बीमारियों का कारण बनता हैं. एक जाने माने कैंसर रिसर्चर लुकास केनर की स्टडी कहती है कि पर्यावरण में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक इंसानों में कैंसर सेल्स के प्रसार को तेज कर सकते हैं.
अगली दो पीढ़ियां हो सकती हैं प्रभावित : उर्वशी मित्तल
उर्वशी की इस रिपोर्ट से पता चला है कि प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक केमिकल्स अगली दो पीढ़ियों में मेटाबॉलिक डिजीज का कारण बन सकते हैं. प्लास्टिक में एंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल होते हैं जो जीवों के हार्मोनल और होमोस्टैटिक सिस्टम में बदलाव कर सकते हैं. होमोस्टैटिक सिस्टम का काम होता है पर्यावरण में हो रहे बदलावों के दौरान किसी भी जीव के आंतरिक स्थिरता को बनाए रखना.
अब इन पर असर पड़ेगा तो शारीरिक विकास, मेटाबॉलिज्म, प्रजनन और भ्रूण का विकास प्रभावित हो सकता है. शोध से ये भी पता चला है कि माता-पिता के ईडीसी के संपर्क में आने से बच्चों में मोटापा और मधुमेह हो सकते हैं.
प्लास्टिक में 16 हजार से ज्यादा केमिकल्स
फ्लास्क लेडी उर्वशी मित्तल की टीम ने अपनी इस रिपोर्ट में प्लास्टिक में 16,325 केमिकल्स के होने की पुष्टि की है. यह वो केमिकल्स है जो जानबूझकर या अनजाने में प्लास्टिक में मौजूद होते हैं. हैरानी की बात ये है कि ये संयुक्त राष्ट्र के पिछले अनुमान से 3,000 से भी अधिक हैं।
हालांकि इनमें से सिर्फ छह फीसदी केमिकल्स ऐसे हैं, जिन्हें फिलहाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रेगुलेट किया जाता है, इसके बावजूद कई रसायनों का उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाता है जिनसे बेहद ज्यादा खतरे की आशंका होती है. इनमें से करीब 26 फीसदी यानी 4,200 केमिकल इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए चिंता का विषय हैं।
उर्वशी मित्तल देश की जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और इंटरनेशनल इनर व्हील क्लब की राष्ट्रीय सचिव हैं इसके साथ ही वो दुनिया भर में फ्लास्क लेडी के नाम से मशहूर हैं… पर उनकी इस रिपोर्ट ने दुनिया भर में कोहराम मचा दिया है… जब वो सरकार को ये रिपोर्ट सौंपेगी तो सरकार इसपर क्या एक्शन लेगी।
इस धरती पर ऐसी कोई जगह नहीं बची जो प्लास्टिक की पहुंच से बाहर हो. चाहे वो ईरान के रेगिस्तान हों, पृथ्वी का सबसे सुदूर इलाका अंटार्कटिका हो या माउंट एवरेस्ट की चोटी हो, प्लास्टिक यहां भी आपको मिल जाएंगे. ऊपर से प्लास्टिक के ज्यादा इस्तेमाल से फैलने वाला प्रदूषण भी दुनिया के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन चुका है. इसी सर के दर्द से निपटने के लिए उर्वशी देश दुनिया में लगातार काम कर रही हैं।