मौसम शुष्क रहने का अनुमान
समस्तीपुर पूसा डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र स्थित ग्रामीण कृषि मौसम सेवा एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से जारी 09-13 मार्च, 2024 तक के मौसम पूर्वानुमान की अवधि में उत्तर बिहार के जिलों में आसमान प्रायः साफ तथा मौसम के शुष्क रहने का अनुमान है।
इस अवधि में अधिकतम तापमान 29 से 31 डिग्री सेल्सियस एवं न्यूनतम तापमान 13-16 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने का अनुमान है। वहीं शुक्रवार की तापमान पर नजर डालें तो अधिकतम तापमानः 28.0 डिग्री सेल्सियस जो सामान्य से 1.3 डिग्री कम एवं न्यूनतम तापमानः 11.0 डिग्री सेल्सियस जो सामान्य से 3.1 डिग्री कम दर्ज किया गया। पूर्वानुमानित अवधि में औसतन 10 से 15 कि0मी0 प्रति घंटा की रफ्तार से मुख्यतः पछिया हवा चलने का अनुमान है। सापेक्ष आर्द्रता सुबह में 85 से 90 प्रतिशत तथा दोपहर में 55 से 60 प्रतिशत रहने की संभावना है।समसामयिक सुझाव देते हुए मौसम वैज्ञानिक डा ए सत्तार ने बताया कि
मौसम की शुष्क रहने की संभावना को देखते हुए तैयार सरसों की कटनी, दौनी तथा सुखाने का काम प्राथमिकता देकर करें। तैयार आलू की खोदाई कर लें। शुष्क मौसम एवं तापमान में वृद्धि होना थ्रिप्स कीट के लिए अनुकुल वातावरण है। प्याज में चिप्स कीट की निगरानी करें। यह प्याज को नुकसान पहुँचानेवाला मुख्य कीट है। यह आकार में अतिसुक्ष्म होता है तथा पत्तियों की सतह पर चिपक कर रस चुसते है जिससे पत्तियों का ऊपरी हिस्सा टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है। पत्तियों पर दाग सा दिखाई देता है जो बाद में हल्के सफेद हो जाते है। जिससे उपज में काफी कमी आती है। थ्रीप्स की संख्या फसल में अधिक पाये जाने पर प्रोफेनोफॉस 50 ई0सी0 दवा का 1.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड दवा का 1.0 मि.ली. प्रति 4 लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें। प्याज की फसल में खर-पतवार निकालें। फसल में 10 से 12 दिनों पर लगातार सिंचाई करें।
बसंत ईख रोप के लिए उपयुक्त समय चल रहा है। मार्च के अन्तिम सप्ताह में यदि खेत में नमी की कमी होने पर रोप से पहले हल्की सिंचाई कर रोप करना चाहिए। ईख रोप हेतु दोमट मिट्टी तथा ऊँची जमीन का चुनाव कर गहरी जुताई करनी चाहिए। अनुशंसित प्रभेदो का चुनाव कर बीज मेड़ो की कवकनाशी (कार्बडाजीम) 1 ग्रा० प्रति लीटर के घोल में 15-20 मिनट उपचारित कर रोपनी करनी चाहिए। प्रभेदो के बीज रोग-व्याधि से मुक्त होना चाहिए एवं रोग मुक्त खेतों से लेना चाहिए और जहाँ तक संभव हो 8-10 महीने के फसल को ही बीज के रुप में प्रयोग करना चाहिए। गरमा फसल की बुआई से पूर्व मिट्टी में प्रयाप्त नमी की जाँच अवश्य कर लें। नमी के अभाव में बीजो का अंकुरण प्रभावित हो सकता है फलतः पौधों की संख्या में आयी कमी होने की वजह से उपज प्रभावित होगी। जो कृषक बन्धु गरमा सब्जी लगाना चाहते है वे अविलंब बुआई करें। लौकी की अर्का बहार, काशी कोमल, काशी गंगा, पूसा समर, प्रोलिफिक लॉग, पूसा मेद्यदूत, पूसा मंजरी, पूसा नवीन किस्मों की बुआई करें। तरबूज की अर्का मानिक, दुर्गापुर मधु, सुगरबेली, अर्का ज्योती (संकर) तथा खरबूज की अर्का जीत, अर्का राजहंस, पूसा शर्बती किस्में उत्तर बिहार के लिए अनुशंसित है। नेनुआ की पूसा चिकनी, स्वर्ण प्रभा, करेला की अर्का हरित, काशी उर्वषी, पूसा विशेष, कायमबटूर लॉग की बुआई करें। खेत की जुताई में 20-25 टन गोबर की खाद, 30 किलोग्राम नेत्रजन, 50 किलोग्राम फॉसफोरस, 40 किलोग्राम पोटास प्रति हेक्टेयर की दर से व्यवहार करें। सुर्यमुखी की बुआई के लिए मौसम अनुकूल है। इसकी बुआई 10 मार्च तक संपन्न कर लें। खेत की जुताई में 100 क्विंटल कम्पोस्ट, 30-40 किलोग्राम नेत्रजन, 80-90 किलोग्राम फॉस्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटास का व्यवहार करे। उत्तर बिहार के लिए सूर्यमुखी की उन्नत संकुल प्रभेद मोरडेन, सूर्या, सी0ओ0-1 एवं पैराडेविक तथा संकर प्रभेद के लिए बी०एस०एच०-1, के०बी०एस०एच०-1, के०बी०एस०एच०-44, एम०एस०एफ०एच०-1, एम०एस०एफ०एच०-8 एवं एम०एस०एफ०एच०-17 अनुशंसित है। संकर किस्मों के लिए बीज दर 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा संकुल किस्मों के लिए 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें। बुआई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम या कैप्टाफ दवा से उपचारित कर बुआई करे। रबी मक्का की फसल में धनबाल व मोचा निकलने से दाना बनने एवं दुध भरने की अवस्था तक खेत में प्रयाप्त नमी बनाए रखने हेतु आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। गेहूं की फसल जो दुध भरने की अवस्था में है ध्यान दें कि खेत में नमी की कमी नही हो। अगात बोयी गई भिण्डी की फसल में लीफ हॉपर (जैसिड) कीट की निगरानी करें। यह हरे रंग का कीट दिखने में सुक्ष्म होता है। भिंडी की खेत में घुसते ही यह कीट भिंडी के पौधे के पास से समूह में उड़ते हुए देखा जा सकते है। इसके शिशु व प्रौढ दोनो भिण्डी की पत्तियों के निचले हिस्से में रहते हैं और पत्तों का रस घुसते है जिसके फलस्वरूप पत्तियों किनारे से पिली होकर सिकुड़ती है तथा प्यालानुमा आकार बनाकर धीरे धीरे सुखने लगती है। फलन प्रभावित होती है। इस कीट का प्रकोप दिखाई देने पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।