जाम से रेंगते शहर

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भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण वाहनों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, जिससे प्रमुख शहरों में यातायात की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। इस समस्या से निपटने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता है, ताकि यातायात का सुचारू प्रवाह सुनिश्चित हो, प्रदूषण कम हो और शहरी निवासियों के जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार हो। भारत में लोग अनावश्यक रूप से निजी वाहन का उपयोग करते हैं, जिससे यातायात की समस्या उत्पन्न होती है। निजी वाहन का उपयोग करने के बजाय यदि लोग सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें, साइकिल का उपयोग करें, पैदल चलें। इससे न केवल यातायात की समस्या हल होगी, बल्कि पर्यावरण संबंधी समस्या भी हल होगी और भारत के राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद मिलेगी, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होगी।

प्रियंका सौरभ

सड़क जाम जैसी समस्या पहले महानगरों के हिस्से ही थी। छोटे शहर व कस्बे इससे मुक्त थे। मगर अब छोटे-बड़े नगर भी इससे पस्त होने लगे हैं। मध्यम श्रेणी के शहरों में भी सड़कों पर गाड़ियां रेंगती नजर आती हैं। स्थिति यह है कि जो चौक-चौराहे कभी इन शहरों की पहचान हुआ करते थे, आज वे जाम के कुख्यात केंद्र बन गए हैं। महानगरों में एलीवेटेड रोड, फ्लाई ओवर, अंडरपास जैसे नव-निर्माण से जाम की समस्या का कुछ हद तक हल निकाला जा सकता है, निकाला जाता भी है, मगर मध्यम व छोटे शहर बडे़ पैमाने पर ऐसा नहीं कर पा रहे। फिर इन नगरों में जाम का चरित्र भी अलग-अलग है। भारत में सड़क जाम की समस्या व्यापक है। 10 लाख से अधिक आबादी वाले नगर इससे सर्वाधिक पीड़ित हैं। अमूमन सड़कों की दुर्व्यवस्था व अनुशासित परिचालन के अभाव के कारण ऐसा होता है।

पहिये के पीछे फँसे हुए निराश होकर हम घोंघे की गति से आगे बढ़ते हैं। दुर्भाग्य से, यातायात सड़क पर जीवन का एक अपरिहार्य हिस्सा है और अधिकांश समय ऐसा महसूस होता है कि जिस भीड़भाड़ में हम खुद को फँसा हुआ पाते हैं, उससे बचने के लिए हम बहुत काम कर सकते हैं। बीआरटी सिस्टम लागू करने से बस सेवाएं सुव्यवस्थित हो सकती हैं, जिससे तेज़ और अधिक विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध हो सकता है। उदाहरण के लिए, अहमदाबाद में बीआरटी ने यातायात की भीड़ और यात्रा के समय को सफलतापूर्वक कम किया है। मजबूत लाइट रेल नेटवर्क विकसित करने से सड़क परिवहन के लिए कुशल विकल्प मिल सकते हैं। दिल्ली जैसे शहरों को दिल्ली मेट्रो से लाभ हुआ है, जिससे सड़क पर कारों की संख्या में काफी कमी आई है। बस कवरेज का विस्तार और समर्पित बस लेन बनाने से अधिक लोगों को सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। बैंगलोर में उच्च गुणवत्ता वाली बस सेवाओं की शुरूआत ने सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं ।

पुणे जैसे शहरों ने साइकिल-शेयरिंग कार्यक्रम लागू किए हैं, जो परिवहन के एक व्यवहार्य साधन के रूप में साइकिलिंग को बढ़ावा देते हैं तथा वाहनों की भीड़ को कम करते हैं। सुरक्षित और सुलभ पैदल यात्री मार्ग बनाने से पैदल चलने को बढ़ावा मिलता है, जिससे मोटर वाहनों पर निर्भरता कम होती है। भारत में स्मार्ट सिटीज मिशन में पैदल यात्री अवसंरचना को बढ़ाने की योजनाएँ शामिल हैं। इंटेलिजेंटम ने ट्रैफ़िक की स्थिति में काफ़ी सुधार किया है । ट्रैफ़िक सिग्नल को प्रबंधित करने और भीड़भाड़ का पूर्वानुमान लगाने के लिए रीयल-टाइम डेटा का उपयोग करके ट्रैफ़िक प्रवाह को अनुकूलित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, हैदराबाद में स्मार्ट ट्रैफ़िक सिग्नल सिस्ट निर्धारण। सिंगापुर और लंदन जैसे शहरों में देखा गया है कि व्यस्त समय के दौरान उच्च यातायात वाले क्षेत्रों में वाहन चलाने के लिए शुल्क लिया जाए, जिससे अनावश्यक कार उपयोग को हतोत्साहित किया जा सकता है और सार्वजनिक परिवहन में सुधार के लिए धन जुटाया जा सकता है।

विप्रो और इंफोसिस जैसी कंपनियों ने कारपूलिंग और कंपनी बस सेवाएं शुरू की हैं, जिससे सड़क पर निजी वाहनों की संख्या कम हुई है। इन पहलों से यात्रा के समय में उल्लेखनीय कमी आई है। सब्सिडी और कर लाभ के माध्यम से कारपूलिंग और राइड-शेयरिंग के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने से इनके अपनाने को और बढ़ावा मिल सकता है। सार्वजनिक परिवहन केंद्रों के पास पार्क-एंड-राइड सुविधाएँ स्थापित करने से शहर के भीतरी इलाकों में यातायात कम हो सकता है। बैंगलोर जैसे शहरों में ऐसी पहलों से सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं, पार्किंग की कमी दूर हुई है और सड़क पर भीड़भाड़ कम हुई है। निजी वाहन का उपयोग करने के बजाय यदि लोग सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें, साइकिल का उपयोग करें, पैदल चलें आदि। इससे न केवल यातायात की समस्या हल होगी, बल्कि पर्यावरण संबंधी समस्या भी हल होगी और भारत के राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद मिलेगी, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होगी।

अपने यहां सड़कों की मरम्मत ही तभी की जाती है, जब वे धंसती या टूटती हैं, जबकि यह काम नियमित तौर पर होना चाहिए। हालांकि, फुटपाथ का न होना या उस पर अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण पैदल यात्री सड़कों पर चलने को मजबूर होते हैं। सड़क जाम हमें कई तरह से प्रभावित करता है। इससे शहरों की आबोहवा तो प्रदूषित होती ही है, अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। अवैध कॉलोनियों का बेतरतीब विस्तार हो रहा है। शहरी नियोजन के अभाव में छोटी-छोटी गलियां बन जाती हैं, जो मुख्य सड़कों को प्रभावित करती हैं। यहां सार्वजनिक परिवहन में सुधार करना होगा। अमूमन जब कभी सार्वजनिक परिवहन की बेहतरी की बात उठती है, तो हर शहर मेट्रो मांगने लगता है। मगर मेट्रो के बजाय आवासन और शहरी कार्यमंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का इस्तेमाल अधिक व्यावहारिक है, जिसमें अलग-अलग शहरों की जरूरतों के मद्देनजर अलग-अलग सार्वजनिक परिवहन को विस्तार देने की बात कही गई है। ये परिवहन-माध्यम बस, लाइट रेल ट्रांजिट (एलआरटी), मोनो रेल, मेट्रो कुछ भी हो सकते हैं।

प्रमुख भारतीय शहरों में यातायात की भीड़भाड़ से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। इसमें सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाना, गैर-मोटर चालित परिवहन को बढ़ावा देना, स्मार्ट ट्रैफ़िक प्रबंधन तकनीकों को लागू करना, कारपूलिंग और राइड-शेयरिंग को प्रोत्साहित करना और पार्क-एंड-राइड सुविधाओं का विकास करना शामिल है। भविष्य की शहरी योजना को सतत और एकीकृत परिवहन समाधानों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शहर रहने योग्य और पर्यावरण के अनुकूल बने रहें। इन उपायों को लागू करने से अधिक कुशल और कम भीड़भाड़ वाली शहरी परिवहन प्रणाली का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

(लेखिका रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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