उत्तर बिहार के ज्यादातर स्थानों पर मौसम शुष्क बने रहने की सम्भावना
सुभाष चंद्र कुमार
समस्तीपुर पूसा। डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविधालय स्थित जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से जारी 01-05 जून, 2024 तक के मौसम पूर्वानुमानित अवधि में उत्तर बिहार के जिलों में आसमान में हल्के से मध्यम बादल छाये रह सकते हैं।
उत्तर बिहार के ज्यादातर स्थानों पर मौसम शुष्क बने रहने की सम्भावना है। हालांकि समस्तीपुर के दक्षिणी भाग, बेगूसराय दरभंगा, मधुबनी जिलों में कहीं कहीं अगले 48 घंटों में हल्की वर्षा हो सकती है।
इस अवधि में अधिकतम तापमान 38-40 डिग्री सेल्सियस के बीच रह सकता है। जबकि न्यूनतम तापमान 24-27 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रह सकता है।
शुक्रवार के तापमान पर एक नजर डालें तो अधिकतम तापमानः 33.0 डिग्री सेल्सियस, सामान्य से 2.8 डिग्री सेल्सियस कम न्यूनतम तापमानः 23.4 डिग्री सेल्सियस, सामान्य से 1.9 डिग्री सेल्सियस कम रहा है।
सापेक्ष आर्द्रता सुबह में 75 से 80 प्रतिशत तथा दोपहर में 50 से 60 प्रतिशत रहने की संभावना है।पूर्वानुमानित अवधि में औसतन 18 से 25 कि0मी० प्रति घंटा की रफ्तार से पुरवा हवा चलने का अनुमान है।
समसामयिक सुझाव देते हुए मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि किसान भाई धान का विचड़ा बीजस्थली में लगाने का काम शुरु करें। 10 जून तक लम्बी अवधि वाले धान का विचड़ा गिराने का उपयुक्त समय है। 10 से 25 जून तक मध्यम अवधि वाले धान का विचड़ा बोने के लिए अनुकूल समय है। जो किसान धान की सीधी बुआई करना चाहते है, वे लम्बी अवधि वाले धान की किस्म की बुआई अगले सप्ताह में कर सकते हैं, इसके लिए उनके पास सिंचाई की उचित व्यवस्था हो।
अल्प अवधि वाले धान की किस्म एवं सुगंधित धान का किस्म का विचड़ा बीजस्थली में 20 जून से 10 जुलाई तक बोने के लिए अनुशंसित है। सुगंधित किस्मों का विचड़ा बीजस्थली में पहले से गिराने से उसकी सुगंध खत्म हो जाती है
गरमा सब्जियों जैसे भिन्डी, नेनुआ, करैला, लौकी (कद्दू), और खीरा की फसल में निकाई-गुड़ाई करें। कीट-व्याधियों से फसल की बराबर निगरानी करते रहें। प्रकोप दिखने पर अनुशंसित दवा का छिड़काव करें।
खरीफ प्याज की खेती के लिए नर्सरी (बीजस्थली) की तैयारी करें। स्वस्थ पौध के लिए र्नसरी में गोबर की खाद अवश्य डाले। छोटी-छोटी उथली क्यारियों, जिसकी चौड़ाई एक मीटर एवं लम्बाई सुविधानुसार रखें। खरीफ प्याज के लिए एन0-53, एग्रीफाउण्ड डाक रेड, अर्का कल्याण, भीमा सुपर किस्में अनुशंसित है।
बीज गिराने के पूर्व बीजोपचार कर लें। बीज की दर 8-10 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर रखें। बीज प्रमाणित स्त्रोत से खरीदकर ही लगावें।भिंडी एवं बोरा जैसे फल वाली सब्जियों में भी नत्रजन का उपरिवेषन करें एवं कीट नियंत्रण हेतु मैलाथियान 2 मि०ली० प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 7-10 दिनों के अन्तराल पर फल तोड़ने के बाद दो बार छिड़काव करें।
कटु वर्गीय सब्जियों में चूर्णिल आसिता के आक्रमण होने पर केराथेन 1.5 ग्राम प्रति लीटर या 25 कि०ग्रा० सल्फर पाउडर प्रति हेक्टेयर की दर मुरकाव करें।
खरीफ मक्का की बुआई के लिए मौसम अनुकुल है। इसके लिए सुआन, देवकी, शक्तिमान-1, शक्तिमान-2, राजेन्द्र संकर मक्का-3, गंगा-11 किस्मों की बुआई करें।
बुआई के समय प्रति हेक्टेयर 30 किलो नेत्रजन, 60 किलो स्फुर एवं 50 किलो पोटाश का व्यवहार करें। प्रति किग्रा० बीज को 2.5 ग्राम थीरम द्वारा उपचारीत कर बुआई करें। बीज दर 20 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर रखें।
हल्दी एवं अदरक की बुआई करें। हल्दी की राजेन्द्र सोनिया, राजेन्द्र सोनाली किस्में तथा अदरक की मरान एवं नदिया किस्में उत्तर बिहार के लिए अनुशंसित है। हल्दी के लिए बीज दर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा अदरक के लिए 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रखें। बीज प्रकन्द का आकार 30-35 ग्राम जिसमें 3 से 5 स्वस्थ कलियों हो। रोपाई की दुरी 30×20 से०मी० रखे। बीज को उपचारित करने के बाद बुआई करे।
ओल की रोपाई अतिशीघ्र संपन्न करें। रोपाई के लिए गजेन्द्र किस्म अनुशंसित है। प्रत्येक 0.5 कि०ग्रा० के कन्द की रोपनी के लिए दूरी 75×75 से० मी० रखें। 0.5 कि0ग्रा0 से कम वजन की कंद की रोपाई नहीं करे। वीज दर 80 क्विटल प्रति हेक्टेयर की दर से रखें।
जो किसान भाई फलदार वृक्ष लगाना चाहते है, और वृक्ष लगाने के लिए गड्डा खोदे है, वे जून के पहले सप्ताह में आम, लीची आदि फलदार वृक्षों के लिए खोदे गड्डों में मिटटी के साथ अनुशंसित मात्रा में खाद, उर्वरक एवं थिमेट देकर ऊपर तक भर दें।
पशुओं के चारा के लिए ज्वार, बाजरा तथा मक्का की बुआई करें। इसके साथ मेथ, लोबिया तथा राईस बीन की बुआई अन्तर्वती खेती में करने से चारे की गुणवता बढ़ जायेगी तथा दुधारु पशुओं के लिए पौष्टिक चारा प्राप्त होगा। पशुओं के प्रमुख रोग एन्थेक्स, ब्लैक क्वार्टर (डकहा) एवं एच०एस० (गलघोंटू) से बचाव के लिए पशुओं को टीके लगाएं।