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मैं एक समय पर बहुत ज़्यादा चरमपंथी था लेकिन अब मैंने अपनी सारी जमीन दवाखाना खोलने, स्कूल बनाने और शेल्टर होम के लिए दान कर दी हैं।मुझे बहुत बाद में समझ आया की ये राह ठीक नहीं हैं,ये कहना हैं वस्सन सिंह जफ्फरवाल का…
कहानी चरमपंथी संगठन खालिस्तान कमांडो फोर्स के चीफ की…….
मेरा नाम वस्सन सिंह जफ्फरवाल ,मैं पंजाब के धारीवाल का रहने वाला हु , मेरा सपना शुरू से ही था की मैं बड़ा होकर आर्मी में अफसर बनु लेकिन में बन ना सका मैं बना क्या मैं बना खालिस्तान कमांडो फोर्स का चीफ ,जट्ट परिवार में पैदा हुआ और बड़ा हुआ मेरा ध्यान शुरू से ही पढाई मे कम था,उन दिनों हमारा इलाका बहुत ज़्यादा पिछड़ा हुआ था,और 80 के शुरूआती दशक में हिंसा भड़कने लगी थी , हम परिवार में 6 लोग थे , मेरे पिताजी आकाली दल के सदस्य थे ,वो कई बार जेल जा चुके थे,उन दिनों पंजाब में खालिस्तान की मांग उठ रही थी,हमारा इलाका छावनी में बदल चूका था,उस समय मैं 8 कक्षा में था,उनदिनों के हालत को देखते हुए मैंने सोचा की मैं अब आगे नहीं पढूगा,मेरे दो बड़े भाई दिल्ली मे ट्रक चलाते थे,मैंने अपने घर के पास के ही कारखाने में काम करना शुरू कर दिया था ,मेरा एक छोटा भाई भी था जो घर में ही रहता था , पुलिस और प्रशासन बार-बार घर पर आ कर छोटे भाई को तंग करते थे,मेरा शुरू से ही ये था की मैं जहाँ रहू वहा चर्चा मे रहू इसी विचार के कारण में कारखाने के लोगो का नेता बन गया,कई हज़ार लोग मेरे साथ थे ,पढाई के दौरान मैंने NCC की थी जिस कारण से मेरे अंदर आर्मी का अफसर बनने की ललक थी , खालिस्तानी मूवमेंट को देख कर मुझे लगा की क्यों न में भी फ़ौज बनाऊ,
उसी दौरान मेरे पिता को NSA लगाकर के गिरफ्तार कर लिया गया , बाद में पुलिस मेरे घर जा कर मेरे भाई और माँ को तंग करने लगी जो मुझे बरदासत नहीं हुआ ,मुझे लगा की मुझे कुछ करना चाहिए मैं नौकरी छोड़ कर वापस आ गया , लेकिन एक दिन मेरे छोटे भाई को पुलिस ने घेर कर बहुत मारा,उस दिन में बच गया और मैं समझ गया था , की अगर मैं यहा रहा तो पकड़ा जाऊगा और शायद मारा भी जाऊ , 1982-83 की बात है। पंजाब में बसें जलाई जा रही थीं। पुलिस ने छोटे भाई को पकड़ा वह उससे जानना चाहती थी कि बसें जलाने वाले कौन हैं, स्टूडेंट फेडरेशन वाले कौन हैं, भिंडरांवाला कहां है, भिंडरांवाला से तुम लोग कितनी बार मिले, क्या बातें हुईं।
मेरे भाई को पुलिस ने इतना मारा की वो आज तक कुछ करने लायक नहीं हैं ,मैं फिर वहा से दमदमी टकसाल चला गया ,मैंने वहा पर फिर खालिस्तान लिब्रशन आर्मी ज्वाइन कर ली और उसी के काम मे लग गया हम लोग गाँव-गाँव जाकर युवाओ को इकक्ठा करते थे,हम लोग अक्सर रात को ही सफर किया करते थे और कच्चे रास्तो पर चला करते थे , हमे कभी खाने-पीने की तकलीफ कभी नहीं हुई , क्युकी हमारा नेटवर्क बहुत ज़्यादा बढ़िया हो चूका था,जवान युवक मेरे साथ जुड़ रहे थे, उन दिनों हर बड़ा नेता और अधिकारी मेरा नाम जानता था,हमनें अपनी पार्टी का नाम खालिस्तानी लिब्रशन पार्टी से बदल कर खालिस्तान कमांडो फाॅर्स कर दिया था, मैं उसमे चीफ था ,
उसी दिन पंथक कमेटी का गठन भी किया गया। उसमें कुल पांच सदस्य थे। मैं भी उसमें शामिल था। 1986 को हमने पंजाब को खालिस्तान बनाने का ऐलान किया। उन दिनों मैं गोल्डन टेंपल में ही रहता था। मैं समझ गया था कि अब यहां रहना संभव नहीं है। चिंगारी भड़क उठी है। पुलिस और एजेंसिया मेरे पीछे पड़ी थीं।
पाकिस्तान में मिला आलीशान घर……
सभी एजेंसी मेरे पीछे पड़ी थी उनदिनों हम लोगो का एक ही मेहफुज्ज़ अड्डा था वो था पाकिस्तान ,मैं बॉर्डर पार करके पाकिस्तान चला गया,पाकिस्तान सरकार हमे स्पोर्ट करती थी, नये-नये बच्चे बॉर्डर पार करके पाकिस्तान की शरण में आते मैंने वहा रहकर कम से कम 40,000 बच्चो को हथियार चलाना सिखाया ,मुझे वहा एक बहुत ही बड़ा आलिशान बांगला दिया था, वहा हमारी रोज ही लोगो से मीटिंग होती थी मैं लगभग 8 साल लाहौर में रहा उन दिनों पाकिस्तान सरकार हमारी बात मानती थी , हमने 15 लाख रुपया का खर्चा पाकिस्तान सरकार से करवाया , करतारपुर साहिब में सेवा के लिए,
जैसें-जैसें वक़्त बीतता गया खालिस्तानी मूवमेंट ख़तम होता गया,मुझे समझ आ गया था,की पाकिस्तान में रह कर कुछ नहीं होने वाला मैंने पाकिस्तानी सरकार की मदद से अपनी आप को स्विट्ज़रलैंड पहुँचवाया,मैंने फिर वह होम्योपैथिक का कोर्स किया,समय बीतने के बाद मुझे गाँव की याद आने लगी इस दौरान में अपने पंजाब के दोस्तों से वापस कांटेक्ट करने लगा तो वे मुझसे ऐसे बर्ताव करने लगे जैसे मैं कोई आतंकवादी हु,मुझे जब थोड़ा-थोड़ा समझ आने लगा था की मैं गलत रास्ते पर निकल गया था मैं फिर 2001 में पंजाब वापस आ गया मुझे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और म/र्डर समेत 13 मामलो मे मुझे गिरफ्तार कर लिया, धीरे-धीरे मैं सभी आरोपों से बरी होता गया,
अब मैंने अपनी नई ज़िन्दगी शुरू कर दी है, अब मैं सोचता हु की अगर मैं पढ़ा लिखा होता तो शयद मैं आर्मी मे अफसर होता,मुझे नहीं पता की आर्मी अफसर और खालिस्तानी चीफ में कितना फर्क होता,लेकिन अब मैं मानता हु की मैंने कितना समय बर्बाद कर दिया,अब मैं ऐसा कुछ करना चाहता हु की लोग मुझे एक अच्छे व्यक्ति के रूप में याद रखे,