जब केंद्र सरकार 2018, 2022 में राज्यों को निर्देश जारी कर चुकी है कि हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए क़ैदियों को विशेष माफ़ी नहीं देनी है। तब यह निर्देश गुजरात सरकार के फ़ैसले पर क्यों नहीं लागू हुआ जब ज़िला स्तरीय कमेटी से लेकर राज्य सरकार तक बिलक़ीस के साथ सामूहिक बलात्कार करने वालों की सज़ा कम कर रही थी।
अब इसी समाज में दस दस क़ैदी घूमते नज़र आएँगे। बिलक़ीस को डरा-सहमा जीवन जीना होगा। मीडिया रिपोर्ट में यह छपा है कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बिलक़ीस को घर बनाकर देने और पचास लाख रुपये का मुआवज़ा देने के लिए कहा गया था। नौकरी भी देने का आदेश था। जिसे आज तक पूरा नहीं किया गया है। अगर ऐसा है तब यह स्पष्ट है कि इरादा क्या है। बाक़ी लाल क़िला की प्राचीर से आप कुछ भी बोल दें।
दूसरी घटना राजस्थान के जालोर की है। जब तक समाज इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करेगा कि उसके भीतर से धर्म और जाति के आधार पर घृणा की प्रवृत्ति समाप्त नहीं हुई है, वह ऐसी अमानवीय घटनाओं से मुक्त नहीं हो सकता है। घृणा की यह प्रवृत्ति उसके भीतर स्वाभाविक रुप से पलती-बढ़ती आती है, एक दिन वह किसी न किसी मौक़े पर जाति के प्रति घृणा का प्रदर्शन कर देता है। ज़रूरी नहीं है कि यह हिंसक ही हो, इसके कई रुप होते हैं। कार्रवाई को ही अंतिम इंसाफ़ मान लेने की इस आदत से कुछ नहीं होगा। कार्रवाई तो होनी ही चाहिए वर्ना समाज बेलगाम हो जाएगा मगर लड़ाई उसके भीतर की सोच से है। इस सोच से लड़े बिना, इसे स्वीकार किए बिना यह बीमारी नहीं जाएगी।
दूसरी तरफ़ से कहा जाने लगा है कि स्कूल में मटकी नहीं थी, इंद्र के पिता का बयान है कि मास्टरों की मटकी अलग थी। जिस टंकी की तस्वीर छप रही है, उससे लगता नहीं कि वहाँ मास्टर पीते होंगे। पुलिस जाँच कर रही है। क्या इंद्र को मारा भी नहीं गया था? एक दिन यह भी कह दिया जाएगा कि इंद्र मेघवाल नाम का कोई बच्चा ही नहीं था। पंचायत के मुक़ाबले पंचायत करते रहिए। एक पंचायत में एक दल के नेता आएँगे और एक पंचायत में दूसरे दल के नेता।
राजस्थान सरकार स्कूल की मान्यता रद्द करने, मुआवज़ा देने, गिरफ्तार कर सज़ा देने तक ही अपनी ज़िम्मेदारी न समझे। इस गाँव में जाति के ख़िलाफ़ अभियान चलना चाहिए। एक ही मटकी से सभी पानी पीने के लिए बुलाए जाएँ। एक साथ सामूहिक भोज में शामिल हों। एक साथ सभी के बच्चे खेलें। उनसे बात की जाए कि जाति को लेकर उनके मन में क्या है ।वर्ना यह बीमारी तो जाएगी नहीं, कार्रवाई ज़रूर हो जाएगी।