बिहार में सत्ता का रिमोट कंट्रोल किसके हाथ?

0
33
Spread the love

 नए समीकरणों से गरमाया सियासी पारा,  किंगमेगर बनेंगे जातीय आधारित दल

दीपक कुमार तिवारी

पटना। बिहार की राजनीति में इन दिनों सत्ता के नए नए केंद्र बन रहे हैं। और ये नए बन रहे केंद्र जातीय वोट बैंक के आधार पर बन कर गठबंधन की राजनीति में साझीदार बन कर संजीवनी पाते रहे हैं। आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ये बनते सत्ता के नए केंद्र इन दिनों खुद को मजबूत करने में लगे हैं। आइए जानते हैं बिहार की राजनीति में जातीय आधार पर बनी पार्टियां वो कौन है जो हिस्सेदारी की लड़ाई में मजबूत करने में लगे हैं।
गत लोकसभा चुनाव में 100 फीसदी स्ट्राइक रेट देने वाली पार्टी लोजपा (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान बिहार की राजनीति में एक बड़े कद के साथ उभरे हैं। अब वो आस पास के राज्यों में भी अपनी ताकत का विस्तार करते नजर आ रहे हैं। इस सोच के साथ लोजपा (आर) की बैठक भी झारखंड में हुई। बैठक को झारखंड में पार्टी के विस्तार के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी यहां एनडीए के साथ लड़ेगी या अकेले यह अभी तय नहीं है,पर चुनाव जरूर लड़ेगी। पार्टी के विस्तार के पीछे गठबंधन की राजनीति में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी पाने का दवाब महत्वपूर्ण होता है और ऐसा नहीं हुआ तो अकेले दम पर चुनाव लड़ कर अपरोक्ष रूप से हार जीत का कारण बने। लोजपा ने अपना यह स्वरूप वर्ष ,2020 विधान सभा चुनाव में दिखा कर जदयू जैसी नंबर वन पार्टी को नंबर तीन की पार्टी की हैसियत में ले आई थी।
लोजपा से टूट कर बनी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति पारस के नेतृत्व में आगामी बिहार विधान सभा चुनाव में एक फैक्टर बनने जा रही है। पशुपति पारस ने लोकसभा चुनाव में एनडीए का समर्थन करते एक भी सीट पर चुनाव न लड़कर अपना दावा बिहार विधान सभा में मजबूत बनाई है। अभी तक तो विधानसभा में इनकी दावेदारी सामने नहीं आई है लेकिन जिस ढंग से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह ने पशुपति पारस के पीठ पर हाथ रखा है वे भी आगामी विधानसभा चुनाव के लिए महत्वपूर्ण ताकत तो बन ही सकते हैं।
बिहार की राजनीति में मल्लाह वोट के आधार पर खड़ी वीआईपी अपना वजूद विशेषकर उत्तर बिहार में विस्तार कर चुकी है। आगामी विधान सभा चुनाव को ले कर वीआईपी के नायक मुकेश सहनी तो फलहाल महागठबंधन के साथ खड़े हैं। लेकिन इनकी राजनीति एनडीए के साथ भी चली है। बिहार विधानसभा चुनाव में ये एक ताकत तो हैं पर किसके साथ जाएंगे इस पर अभी विराम लगा है। जदयू के वरीय नेता अशोक चौधरी से मिलने के बाद अटकल इस बात को ले कर तेज हो गई कि मुकेश सहनी ज्यादा से ज्यादा सीटों का डिमांड रखेंगे। जो गठबंधन उन्हें ज्यादा सीट देगा उधर जा सकते हैं।
आगामी विधानसभा चुनाव को ले कर राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा अभी पार्टी को सांगठनिक मजबूती देने बिहार की यात्रा पर है। इनके राजनीति का आधार कुशवाहा वोट है। अपने इस वोट बैंक के साथ उपेंद्र कुशवाहा गठबंधन की राजनीति कर चुके हैं। लेकिन इस राजनीति में सहमति के साथ रिश्ते आगे नहीं बढ़ते तो गठबंधन से अलग होने में देर भी नही करते। बात नहीं बनी तो इन्होंने केंद्रीय मंत्री पद तक छोड़ कर एकला चलो की राह पर भी चल पड़े हैं।
मुस्लिम वोट की राजनीति के साथ एआईएमआईएम बिहार की राजनीति में एक केंद्र तो बन गई है। छोटे-छोटे दल के साथ गठबंधन बना कर और अकेले दम पर भी एआईएमआईएम चीफ ए. ओवैसी चुनावी खेल रख चुके है। हालांकि विधानसभा में कई सीटें जीतने वाले एआईएमआईएम राजद के उम्मीदवार को हराने का कारण भी बने हैं। इसलिए कभी कभी इन पर आरोप भाजपा की बी टीम का भी लगता रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here