जब बीजेपी नेताओं से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बटेंगे तो कटेंगे के नारे के बारे में पूछा जाता है तो वे लोग हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करते हैं। समाज को एकजुट करने की बात करते हैं। जबकि जगजाहिर हो चुका है कि योगी आदित्यनाथ ने यह नारा किस मकसद से दिया है। झारखंड विधानसभा चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ ने फिर से यह नारा दोहराया है। उनका कहना था कि जब जब जातियों में बंटे हैं तब तब निर्ममता से कटे हैं। उन्होंने हेमंत सोरेन के मंत्री आलमगीर को झारखंड का लुटेरा बताते हुए कहा कि औरंगजेब देश को लूटता था और आलमगीर ने झारखंड को लूटा है। दरअसल योगी आदित्यनाथ के इस नारे का दूर दूर तक देश और समाज से कुछ लेना देना नहीं है। उनका यह नारा हिन्दुओं एकजुट करने को लेकर है। वह भी वोटबैंक के लिए। वह चाहते हैं कि हिन्दू धर्म के लोग एकजुट होकर बीजेपी को वोट दें। क्या योगी आदित्यनाथ या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धर्म के नाम पर हिन्दुओं का दूसरे धर्मांे से हटकर कुछ भला कर सकते हैं ? उत्तर हर जगह न में ही आएगा। क्योंकि संविधान में एक वर्ग की उपेक्षा कर दूसरे पर मेहरबान होना अपराध की श्रेणी में आता है।
दरअसल बीजेपी हिन्दुओं को एकजुट कर उनका वोट हासिल करना चाहती है तो कांग्रेस समेत दूसरे दल जातिगत समीकरण बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पीडीए बना लिया है। वह बात दूसरी है कि पिछड़ों में यादव परिवार के साथ पार्टी के स्थापित नेताओं के बच्चों को बढ़ाया जा रहा है। मतलब पार्टी में ही जो जातियों के नेता हैं उनको ही पीडीए में बांटकर अपने कार्य की इतिश्री कर दी है। एक भी नेता किसी भी वर्ग से आगे नहीं बढ़ाया है। इसमें दो राय नहीं कि जातिगत आंकड़ों के आधार पर चुनाव लड़े जा रहे हैं। कोई दल किसी समाज के लिए कुछ करने के लिए तैयार नहीं। यही वजह है कि जाति और धर्म के आधार पर नेताओं की भरमार है। देश और समाज का नेता बनने को तैयार नहीं।
आज के नेताओं के सामने प्रश्न है कि डॉ. राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश, आचार्य नरेन्द्र देव, पंडित जवाहर लाल नेहरू, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सरीखे नेता क्या जाति और धर्म के आधार पर लड़ रहे थे ? क्या सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों ने कभी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया था। क्या ये लोग किसी धर्म और जाति के लिए लड़े थे ? क्या देश के आजाद हुए बिना कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बन सकता था ? सांसद और विधायक बन सकता था ? नहीं न। तो फिर इन नेताओं को जाति और धर्म के आधार पर लोगों को बांटने का क्या अधिकार है ?
योगी आदित्यनाथ का बटेंगे को कटेंगे का नारा देश के लिए नहीं बल्कि हिन्दुत्व के लिए है। अखिलेश यादव का पीडीए का नारा वोटबैंक के लिए है। ऐसे ही कांग्रेस जातिगत जनगणना की पैरवी वोट के लिए कर रही है। ये सभी नेता और दल जो भी काम कर रहे हैं वह सत्ता और अपनी पार्टी के लिए और अपने लिए कर रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि दल भी जाति और धर्म के आधार पर बंट जाएंगे। लोग भी बांट दिये जाएंगे तो फिर देश और समाज की चिंता कौन करेगा ? भाईचारे की बात कौन करेगा ? हिन्दू मुस्लिम एकता की बात कौन करेगा ? यदि इन नेताओं को सब कुछ वोटबैंक के लिए करना है तो फिर इनके हाथों में सत्ता क्यों सौंपी जाए। देश की सत्ता ऐसे लोगों के हाथों मे आनी चाहिए जो देश और समाज की चिंता करने वाले हों।
जाति और धर्म ऊपर उठकर देश और समाज की चिंता करनी होगी!
चरण सिंह