कई राज्यों में हो रही माल की सप्लाई
दीपक कुमार तिवारी
पटना/भागलपुर। बिहार के भागलपुर जिले का ये लड़का गन्ने के कचरे से कप-प्लेट बना कर अच्छी आमदनी कर रहा है. उसके इस काम में मां भी हाथ बटाती हैं।
रितेश का कहना है कि बाजार में गन्ने के कचरे से बने कप-प्लेट की काफी डिमांड है। लोग अब सिंगल यूज प्लास्टिक की जगह इन प्रोडक्ट को खरीद रहे हैं।
बिहार के युवा लगातार क्रांतिकारी प्रयोग करके अपने नए उद्योग से लोगों को चौंका रहे हैं। 21वीं सदी में आत्मनिर्भर भारत का बेहतर उदाहरण भी पेश कर रहे है।
दरअसल, बिहार में गन्ना एक प्रमुख नकदी फसल है। किसानों द्वारा बड़े क्षेत्रफल में इसकी खेती की जाती है। गन्ने का रस निकालने के बाद उसके कचरे (खोई) को यू ही बर्बाद कर देते हैं। कुछ किसान तो इसे खेत मे ही जला देते हैं, जिससे काफी प्रदूषण भी फैलता है।
भागलपुर के नवगछिया के रहने वाले रितेश ने तो गजब का प्रयोग किया और उसमें सफलता भी पा ली है. रितेश ने गन्ने की कचरे (खोई) से बड़े पैमाने पर सिंगल यूज कप, प्लेट, कटोरी बनाना शुरू किया है। वो पहले गन्ने के वेस्ट को प्रोसेस करते हैं और उससे इको फ्रेंडली प्रोडक्ट तैयार करते हैं।
गन्ना का रस निकालने वाले दुकानदार व अन्य जगहों से वह खोई को जमा करके घर ले आते हैं फिर मशीनों की मदद से उसे डेली यूज प्रोडक्ट में तब्दील कर देते हैं। खोई से बना प्रोडक्ट अब बिहार के कई जिले समेत दूसरे राज्य मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा भी भेजा जा रहा है।
बाजारों में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाते ही नई व्यवस्था ढलने लगी है फिलहाल डिस्पोजेबल उत्पाद जैसे थाली, प्लेट, कटोरा आदि बाजार में पहुंच रहा है। रितेश द्वारा बनाए गए गन्ने की खोई से बने उत्पाद दिखने में बेहद खूबसूरत और टिकाऊ भी हैं। इस वजह से ग्राहक से ज्यादा पसंद करने लगे हैं।
यह उत्पाद सिंगल यूज प्लास्टिक की जगह अच्छा विकल्प साबित हो रहे हैं।रितेश गन्ने की खोई, केला का थंब, धान की भूसे और फलों के वेस्ट से उत्पाद तैयार करते हैं। उन्होंने बताया कि इस प्रोडक्ट में किसी प्रकार का केमिकल उपयोग नहीं किया जाता है। इस वजह से यह इको फ्रेंडली भी है। रितेश ने कहा कि उन्होंने बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर से इंटर की पढ़ाई एग्रीकल्चर से की है।
वह एग्रीकल्चर में ही अपना भविष्य देखते हैं।रितेश ने कहा कि पारिवारिक दिक्कतों के कारण स्नातक में मुझे आर्ट्स विषय को चुनना पड़ा लेकिन कृषि के क्षेत्र में नई क्रांति लाने का जज्बा हमेशा से था। इस वजह से यूट्यूब की मदद से वीडियो देखकर इस उद्योग को शुरू करने की इच्छा हुई। अब तो मुझे यह सामान बनाते 3 महीने हो चुके हैं।
बाजार में प्रोडक्ट्स को अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।शुगर पेशेंट गन्ने की खोई से बने कप को ज्यादा पसंद कर रहे हैं, क्योंकि इस कप में बिना चीनी का चाय पीने से भी थोड़ी मिठास का अनुभव होता है। रितेश ने बताया कि मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना से 6 लाख की मदद मिली थी। उसी से रोजगार शुरू किया और इसमें मेरी मां भी मेरा पूरा सहयोग कर रही हैं।