बन सकती लू प्रचंड उष्ण एवं शुष्क हवा की स्थिति
सुभाषचंद्र कुमार
समस्तीपुर पूसा। डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविधालय स्थित जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा, एवं भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से जारी 27 अप्रैल-01 मई, 2024 तक के मौसम पूर्वानुमान की अवधि में उत्तर बिहार के जिलों में आसमान में हल्के बादल आ सकते है।
हालांकि मौसम के शुष्क बने रहने का अनुमान है। इस अवधि में तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है जिसके चलते अधिकतम तापमान 41-43 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुँच सकता है। जिसके कारण लू (प्रचंड उष्ण एवं शुष्क हवा) की स्थिति बन सकती है। जबकि न्यूनतम तापमान 25-27 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रह सकता है।
शुक्रवार के तापमान पर एक नजर डालें तो अधिकतम तापमानः 40.0 डिग्री सेल्सियस, सामान्य से 4.1 डिग्री सेल्सियस अधिक
एवं न्यूनतम तापमानः 21.1 डिग्री सेल्सियस, सामान्य से 1.5 डिग्री सेल्सियस कम रहा है। इस अवधि में सतही हवा की गति तेज रह सकती है। औसतन 12 से 16 कि०मी० प्रति घंटा की रफ्तार से पछिया हवा चलने की सम्भावना है। सापेक्ष आर्द्रता सुबह में 40 से 50 प्रतिशत तथा दोपहर में 20 से 35 प्रतिशत रहने की संभावना है।
समसामयिक सुझाव देते हुए मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि उच्च तापमान एवं लू के प्रभाव से खड़ी फसलों में पानी की मांग अत्याधिक हो सकता है। खेत में नमी की कमी से फसलों के विकास एवं तत्पश्चात उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इस स्थिति में खेत की निगरानी कर आवश्यकतानुसार सिचाई शाम के समय करें। गेहू की कटनी एवं दौनी के कार्य को प्राथमिकता दें। कटाई के बाद गेहूँ को पूरी तरह सुखाकर भंडारित करें।
रबी फसल की कटाई के बाद खाली खेतों की गहरी जुताई कर खेत को खुला छोड़ दें ताकि सुर्य की तेज धुप मिट्टी में छिपे कीड़ों के अण्डे, प्युपा एवं घास के बीजों को नष्ट कर दें। दुधारू पशुओं को दिन में धूप में चराने ना भेजें एक छायादार स्थान पर रखें। चारा दाना सुबह जल्दी एवं शाम में देर से खिलाए। सूखा चारा की मात्रा कम कर दें एवं तिलहन खल्ली और हरे चारा की मात्रा बढ़ा दें।
लू लगने की स्थिती में पशु चिकित्सक की सलाह से मेलोक्सीकैम सुई लगवा लें एवं इंटालाईट ओरल 30 ग्राम पाउडर को 2 लीटर पानी में घोलकर सुबह शाम पिलायें। प्रभावित पशु को बार-बार ठंढ़े पानी से धोये। पशु में लू लगने के लक्षण है तेज बुखार, तेज हाफना, ज्यादा लार निकलना, बेचैनी, भूख न लगना एवं ज्यादा पानी पीना। गर्म हवाएं से अपने बाग को सुरक्षित करने के लिए आम एवं लीची के बगीचों में नमी बनाये रखें।
नमी की कमी होने से फलों में नुकसान हो सकता है अगर किसान भाई के बाग में विगत वर्षों में फल फटने की स्थिति देखने को मिली हो तो ऐसे किसान अपने बाग में ४ ग्राम घुलनशील बोरान प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें जिससे आने वाले दिनों फल फटने के नुकसान से बच सकते है। आम में फल मक्खी के प्रबन्धन के लिए ‘फ्रूट फ्लाई ट्रैप’ सबसे बढ़िया विकल्प है।
प्रति हेक्टेयर 15-20 फरोमैन ट्रैप लगाकर फ्रूट पलाई मक्खी को प्रबंधित किया जा सकता है। इन ट्रैपो को निचली शाखाओं पर 4 से 6 फिट की ऊंचाई पर बांधना चाहिए। एक ट्रैप से दुसरे ट्रैप के बीच में 35 मीटर की दुरी रक्खे। ट्रैप को कभी भी सीधे सूर्य की किरणों में नहीं रखे। ट्रैप को आम की बहुत घनी शाखाओ के बीच में नहीं बाधना चाहिए।
ट्रैप बाग में स्पष्ट रूप से दिखाई देना चाहिए की कहा बाधा गया है। ट्रैप बांधने की अवस्था फल पकने से 60 दिन से पहले होना चाहिए और 6से 10 सप्ताह के अंतराल पर नर की सुगंध बदलते रहना चाहिए। भिण्डी की फसल को लीफ हॉपर कीट द्वारा काफी नुकसान होता है। यह कीट दिखने में सुक्ष्म होता है। इसके नवजात एवं व्यस्क दोनो पत्तियों पर चिपककर रस चुसते है।
अधिकता की अवस्था में पत्तियों पर छोटे-छोटे घब्बे उभर जाते है और पत्तियाँ पीली तथा पौधे कमजोर हो जाते है जिससे फलन प्रभावित होती है। इस कीट का प्रकोप दिखाई देने पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मी०ली० प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। भिंडी फसल में माइट कीट की निगरानी करते रहे। प्रकोप दिखाई देने पर ईथियॉन /1.5 से 2 मि०ली० प्रति ली० पानी की दर से छिड़काव आसमान साफ रहने पर ही करें।
गरमा सब्जियों जैसे भिन्डी, नेनुआ, करैला, लौकी (कद्दू), और खीरा की फसल में निकाई-गुड़ाई करें। फल मक्खी लत्तर वाली सब्जियों जैसे नेनुआ, करैला, लौकी (कद्दू), और खीरा फसल को क्षति पहुंचाने वाला प्रमुख कीट है। यह घरेलू मक्खी की तरह दिखाई देने वाली भूरे रंग की होती है। मादा कीट मुलायम फलों की त्वचा के अन्दर अंडे देती है।
अंडे से पिल्लू निकलकर अन्दर ही अन्दर फलों के भीतरी भाग को खाता है। जिसके कारण पूरा फल सड़ कर नष्ट हो जाता है। इस कीट का प्रकोप शुरू होते ही 1 किलोंगाम छोआ, 2 लीटर मैलाथियान 50 ई०सी० को 1000 लीटर पानी में घोल कर 15 दिनों के अन्तराल पर दो बार छिड़काव आसमान साफ रहने पर ही करें।