सुभाष चंद्र कुमार
समस्तीपुर पूसा । बिहार के जलजमाव वाले क्षेत्रों को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्र में सूर्यमुखी की खेती की जा सकती है। राज्य के उत्पादन की बात करें तो 12 से 15 हजार टन प्रतिवर्ष है। जो सम्पूर्ण देश का 5.40 प्रतिशत है। डा राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय स्थित जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र के निदेशक डा रत्नेश कुमार झा के दिशा निर्देशन में जलवायु अनुकूल कृषि से संबंधित विभिन्न आधुनिक तकनीकों के आधार पर राज्य के 11 जिलें के अंतर्गत 15 कृषि विज्ञान केंद्र पर किसानों के खेत में कार्यक्रम चलाए जा रहे है। वहीं प्रयोगशाला तकनीशियन प्रशांत कुमार मौर्य के अनुसार सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी एवं गरमा तीनों ही मौसमों में की जा सकती है। परन्तु खरीफ में सूरजमुखी पर अनेक रोग कीटों का प्रकोप होता है। फूल छोटे होते है तथा उनमें दाना भी कम पड़ता है। गरमा में सूरजमुखी की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
भूमि एंव जलवायु
सूरजमुखी की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। परन्तु अधिक जल रोकने वाली भारी भूमि उपयुक्त है। निश्चित सिचाई वाली सभी प्रकार की भूमि में अम्लीय व क्षारीय भूमि को छोडकर इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
खेत की तैयारी
खेत में पर्याप्त नमी न होने की दशा में पलेवा लंगाकर जुताई करनी चाहियें। आलू, राई, सरसों अथवा गन्ना आदि के बाद खेत खाली होते ही एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा देशी हल से 2-3 बार जोतकर मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए। रोटावेटर से खेत की तैयारी शीघ्र हो जाती है।
प्रजात्ति: संकुल में मॉर्डन, सूर्या एवं संकर में के.वी. एस.एच,एस.एच., एम०एस०एफ०एच एवं वी०एस०एफ० है। बुवाई का
समय तथा विधि
गरमा में सूरजमुखी की बुवाई का उपयुक्त समय फरवरी का दूसरा पखवारा है जिससे फसल मई के अन्त या जून के प्रथम सप्ताह तक पक जायें। बुवाई में देर करने से वर्ष शुरू हो जाने के बाद फूलों को नुकसान पहुंचता है। बुवाई कतारों में हल के पीछे 4-5 से0मी0 की गहराई पर करनी चाहियें। लाइन से लाइन की दूरी 45 से0मी0 होनी चाहियें और बुवाई के 15-20 दिन बाद सिंचाई से पूर्व थिनिंग (विरलीकरण) द्वारा पौधे से पौधे की आपसी दूरी 15 से0मी0 कर देनी चाहियें। 10 मार्च तक बुवाई अवश्य पूरी करा लें।
बीज दर
एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 12 से 15 किग्रा० स्वस्थ संकुल प्रजाति का प्रमाणित बीज पर्याप्त होता है, जब कि संकर प्रजाति का 5-6 किग्रा. बीज प्रति हे. उपयुक्त रहता है। यदि बीज का जमाव 70 प्रतिशत से कम हो तो तद्नुसार बीज की मात्रा बढ़ा देना चाहिये।
बीज शोधन
बीज को 12 घण्टे पानी में भिगोकर साये में 3-4 घण्टे सुखाकर बोने से जमाव शीघ्री होता है। बोने से पहले प्रति किलोग्राम बीज को कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा या थीरम की 2.5 ग्राम मात्रा में से किसी एक रसायन से शोधित कर लेना चाहिए।
उर्वरक
सामान्यतः उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। मिट्टी परीक्षण न होने की दशा में संकुल में 80 किग्रा० संकर में 100 किग्रा० नत्रजन, 60 किग्रा० फास्फेारस एवं 40 किग्रा० पोटाश प्रति हेक्टर पर्याप्त होता है।नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूंडों में प्रयोग करना चाहिये। नत्रजन की शेष मात्रा बुवाई एंव पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूडो में प्रयोग करना चाहियें। नत्रजन की शेष मात्रा बुवाई के 25-30 दिन बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहियें। अगर आलू के बाद बुवाई की जा रही है। तो उर्वरको की मात्रा 25 प्रतिशत तक कम की जा सकती हैं सूरजमुखी की खेती में 200 किग्रा. जिप्सम प्रति हेक्टर का प्रयोग बुवाई के समय अवश्य करना चाहियें। इसकी खेती में 3 से 4 टन गोबर की कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टर का प्रयोग लाभप्रद पाया गया है।
सिंचाई
हल्की भूमि में जायद मे सूरजमुखी की अच्छी फसल के लिए 4-5 सिचांईयो की आवश्यकता पडती है। तथा भारी भूमि में 3-4 सिंचाइयां क्यारियों बनाकर करनी चाहिेयें पहली सिंचाई बोने के 20-25 दिन बाद आवश्यक है। फूल निकलते समय तथा दाना भरते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। इस अवस्था में सिंचाई बहुत सावधानी पूर्वक करनी चाहिए ताकि पौधे न गिरने पायें। सामान्यतः 10-15 दिनों के अन्तर पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रारम्भिक अवस्था की सिंचाई स्प्रिकलर द्वारा किया जायें। तो लाभप्रद होती है।
खरपतवार नियंत्रण
यांत्रिक विधि से खरपतवार नियंत्रण करना उपयुक्त है। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डिमैथेलिन 30 प्रतिशत की 3.3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टर के हिसाब से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद 2-3 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिए। इस रसायन के प्रयोग से खरपतवार नियंत्रण हो जाता है।
मिट्टी चढ़ाना
सूरजमुखी का फूल काफी बड़ा होता है जिससे पौधों के गिरने का भय रहता है। अतः नत्रजन की टाप ड्रेसिंग के बाद एक बाद एक बार पौधों पर 10-15 सेमी0 मिट्टी चढ़ा देना अच्छा होता है।
परपरागण : परपरागण (परसेचन) क्रिया
सूरजमुखी का परसेचित फसल है। इसमें अच्छे बीज पड़ने हेतु परसेचन क्रिया नितान्त आवश्यक है। यह क्रिया भौरों एवं मधु–मक्खियों के माध्यम से होती है। जहां इनकी कमी हो हाथ द्वारा परसेंचन की क्रिया अधिक प्रभावकारी है। अच्छी तरह फूल आ जाने पर हाथ में दस्ताने पहनकर या किसी मुलायम रोंयेदार कपड़े को लेकर सूरजमुखी के मुंडकों पर चारों ओर धीरे से घुमा दें। पहले फूल के किनारे वाले भाग पर, फिर बीच के भाग पर यह क्रिया प्रातःकाल 7:30 बजे तक करनी चाहिए ।