दिहाड़ी पर रोगी

0
180
Spread the love

राजेश बैरागी
चिकत्सा शिक्षा और नकली रोगियों का आपस में क्या संबंध हो सकता है? पेशेवर चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने वाले निजी संस्थानों में सीटों की संख्या बढ़ाने  के लिए फर्जी रोगियों को भर्ती करने का खेल धुले (महाराष्ट्र)से लेकर उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा तक बखूबी चलता है।
धुले (महाराष्ट्र) का अण्णासाहेब चूड़ामन पाटिल मेमोरियल मेडिकल कॉलेज आजकल खूब चर्चा में है। वहां बहुत सारे बच्चों को बिना चिकित्सा जरूरत के भर्ती करके रखा गया था। ऐसा उसने अपने यहां स्वीकृत सीटों में बढ़ोत्तरी कराने के उद्देश्य से किया था। जांच के दौरान यह फर्जीवाड़ा सामने आया तो कार्रवाई हुई। उक्त मेडिकल कॉलेज अपने खिलाफ हुई कार्रवाई को चुनौती देते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा है। सर्वोच्च न्यायालय भी हैरान है कि ऐसा कैसे किया जा सकता है। हालांकि यह पहला और अकेला मामला नहीं है। ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क स्थित एक मेडिकल कॉलेज में लंबे समय तक प्रतिदिन दिहाड़ी मजदूरों को लाकर खाली बिस्तरों पर लिटाकर रखने का नाटक चलता रहा है।उस दौरान नगर में अपना मकान बनाने वाले लोगों को भारी मुश्किल आती थी। सुबह सवेरे ही  मेडिकल कॉलेज की गाड़ियां मजदूर चौक पर पहुंच जाती थीं। मजदूरों को लाकर कॉलेज के खाली बिस्तरों पर लिटा दिया जाता। मजदूर दिनभर कंबल या चादर ओढ़े लेटे रहते थे। बाकायदा उनका चिकित्सा अभिलेख,परिचारिकाओं का ड्यूटी विवरण आदि तैयार किया जाता था। आज यह मेडिकल कॉलेज खूब जोर-शोर से चल रहा है।
दरअसल चिकित्सा, कानून आदि पेशेवर शिक्षा देने वाले निजी संस्थान संबंधित विश्वविद्यालय या संगठनों से अधिक से अधिक सीटों की अनुमति प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की फर्जी गतिविधियों को अंजाम देते हैं। आवश्यक ढांचागत सुविधाओं व फैकल्टी के बगैर अधिकतम सीटों पर दाखिला देकर धन कमाना ही उनका उद्देश्य है। शिक्षा और चिकित्सा धन कमाने के बड़े उद्योग के रूप में स्थापित हुए हैं।इन निजी शिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षित चिकित्सक,विधि स्नातक और अभियंताओं को यदि अपने क्षेत्र विषयक न्यूनतम जानकारी भी ना हो तो  आश्चर्य नहीं होना चाहिए। व्यवसायिक  शिक्षा और शिक्षा के व्यवसाय में यही अंतर है।(साभार:नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here