दस देशों के विद्वानों ने किया नागरी लिपि की स्थिति पर विचार-मंथन : प्रियंका सौरभ

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मनुमुक्त ट्रस्ट द्वारा अंतरराष्ट्रीय नागरी लिपि सम्मेलन आयोजित

नारनौल। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा स्थानीय हूडा सैक्टर स्थित मनुमुक्त भवन में ‘अंतरराष्ट्रीय नागरी लिपि सम्मेलन’ का भव्य आयोजन आज रविवार को किया गया। डॉ सुनील भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-गीत के उपरांत ‘साझा संसार’ वैश्विक साहित्य-मंच, विलनिस (नीदरलैंड्स) के संस्थापक और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामा तक्षक की अध्यक्षता में आयोजित इस सम्मेलन में केंद्रीय हिंदी निदेशालय और तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रो अवनीश कुमार मुख्य अतिथि थे, वहीं सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान) के कुलपति डॉ उमाशंकर यादव और नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली के कार्यकारी अध्यक्ष तथा अहमदनगर (महाराष्ट्र) के प्रमुख शिक्षाविद् डॉ शहाबुद्दीन शेख विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर नागरी लिपि को विश्व की सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि बताते हुए प्रो अवनीश कुमार ने कहा कि नागरी लिपि कंप्यूटर युग के भी सर्वथा अनुरूप है। वैज्ञानिकता के कारण विश्व-भर में इसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है।

अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ रामा तक्षक ने कहा कि राजभाषा हिंदी की लिपि होने के कारण नागरी को राजलिपि का दर्जा प्राप्त है। हिंदी भाषा विश्व में जहां कहीं भी जाती है, उसकी लिपि नागरी भी वहां पहुंच जाती है। डॉ उमाशंकर यादव और डॉ शहाबुद्दीन शेख ने नागरी लिपि के स्वरूप, स्थिति और महत्त्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि देश की लिपि-विहीन बोलियों के लिए नागरी सर्वोत्तम लिपि हो सकती है तथा इसमें विश्व-लिपि बनने की भी‌ पूरी क्षमता है। इससे पूर्व विषय-प्रवर्तन करते हुए चीफ ट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव’ ने कहा कि नागरी लिपि को संपर्क लिपि के रूप में स्वीकार कर लिया जाये, तो यह राष्ट्रीय एकता में भी बड़ी सहायक सिद्ध हो सकती है। उन्होंने नागरी लिपि पर केंद्रित दोहा-पाठ भी किया। इससे पूर्व आयोजित वर्चुअल सत्र में काठमांडू (नेपाल) की डॉ श्वेता दीप्ति, सिंगापुर सिटी (सिंगापुर) की डॉ संध्या सिंह, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) की डॉ भावना कुंअर, ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) के रोहितकुमार ‘हैप्पी’, मौका (मॉरीशस) के डॉ कृष्णकुमार झा, पोर्ट ऑफ स्पेन (ट्रिनिडाड) के डाॅ शिवकुमार निगम, वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) की डाॅ एस अनुकृति और टोरंटो (कनाडा) की डॉ शैलजा सक्सेना ने भी नागरी लिपि के स्वरूप और स्थिति पर विस्तृत चर्चा करते हुए इसके महत्त्व और प्रासंगिकता को रेखांकित किया।

इस अवसर पर संजय पाठक (अलवर), डॉ कृष्णा आर्य, डॉ महीपाल सिंह, भूपसिंह भारती, स्वतंत्र विपुल (नारनौल) आदि कवियों ने काव्य-पाठ किया तथा कार्यक्रम को रोचक बना दिया। कार्यक्रम के अंत में ट्रस्ट द्वारा अंगवस्त्र, सम्मान-पत्र और स्मृति-चिह्न भेंट कर प्रो अवनीश कुमार और डॉ रामा तक्षक को ‘विश्व हिंदी-सेवी सम्मान’ से तथा डाॅ शहाबुद्दीन शेख (अहमदनगर), डॉ हेमंतपाल घृतलहरे (बिलासपुर), डॉ नूरजहां रहमतुल्लाह (गुवहाटी), उपमा आर्य (लखनऊ) और श्वेता मिश्रा (पुणे) को ‘विशिष्ट नागरी-सेवी सम्मान’ से विभूषित भी किया। इस अवसर पर डॉ रामा तक्षक के उपन्यास ‘हीर हम्मो’ का विमोचन किया गया तथा नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली द्वारा उन्हें ‘विनोबा भावे अंतरराष्ट्रीय नागरी-सम्मान’ भी प्रदान किया गया। लगभग अढ़ाई घंटों तक चले इस महत्त्वपूर्ण सम्मेलन में ट्रस्टी डॉ कांता भारती, दीनबंधु आर्य (लखनऊ), हवलदार जयप्रकाश तक्षक (जाट बहरोड़), महेंद्रसिंह गौड़, डॉ सुमेरसिंह यादव, किशनलाल शर्मा, गजानंद कौशिक, दुलीचंद शर्मा, बलदेवसिंह चहल, परमानंद दीवान, रामसिंह मधुर, मुकेश कुमार, डॉ मीना यादव, प्रो अंजू निमहोरिया, डॉ शर्मिला यादव, हरमहेंद्रसिंह यादव, दलजीत गौतम, शफी मोहम्मद, कृष्णकुमार शर्मा, एडवोकेट, डॉ महताब सिंह, बीरसिंह यादव, मुकेश कुमार आदि गणमान्य नागरिकों की उपस्थित विशेष उल्लेखनीय रही।

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