सियासत : लालू यादव जैसी चालाकी करेंगे अरविंद केजरीवाल या चलेंगे हेमंत सोरेन की राह!

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 आप नेता ने निकाला हल?

 राजनीतिक गर्माहट

दीपक कुमार तिवारी

नई दिल्ली/पटना। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल मंगलवार को इस्तीफा देंगे। रविवार को उन्होंने अपना फैसला सार्वजनिक कर दिया। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि जेल से उनकी ही तरह जमानत पर रिहा हुए मनीष सिसोदिया भी सत्ता से दूर रहेंगे। संभव है इस बाबत दोनों में मशविरा हुआ हो। इसके साथ ही यह जिज्ञासा भी बढ़ गई है कि नया सीएम कौन बनेगा। कई नामों पर कयास लगाए जा रहे हैं। इनमें एक नाम अरविंद की पत्नी सुनीता केजरीवाल का भी है।
अरविंद केजरीवाल के जेल जाने पर पार्टी में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल की काफी सक्रिता रही। ‘इंडिया ब्लॉक’ की बैठकों में वे शामिल होती रहीं और सोशल मीडिया पर अपने विचार जाहिर करती रही हैं। पार्टी की बैठकों में भी वे शामिल होती रही हैं। विपक्षी नेताओं से उनके संपर्क का दायरा भी बढ़ा है। इसलिए उनकी सीएम की दावेदारी पुख्ता दिखती है। सीएम चयन का निर्णय आम आदमी पार्टी के विधायकों को लेना है, लेकिन सच यही है कि अरविंद केजरीवाल का निर्णय ही आखिरी होगा। ऐसे में इस बात की प्रबल संभावना है कि अरविंद अपनी पत्नी को ही यह मौका दें।
बिहार का सीएम रहते हुए लालू प्रसाद यादव के सामने जब चारा घोटाले में जेल जाने की नौबत आई तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीएम बना दिया था। हालांकि अरविंद केजरीवाल ने जेल जाने पर नया नजीर पेश किया। वे 177 दिन जेल में रहे, लेकिन इस्तीफा नहीं दिया। इस्तीफा देने का फैसला उन्होंने जमानत पर जेल से रिहाई के बाद लिया है। जेल जाने वाले सीएम, झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन भी रहे। उन्होंने लालू की तरह अपनी पत्नी को सीएम बनाने का निर्णय आखिरी वक्त में बदल दिया था। उन्होंने पार्टी के सीनियर लीडर चंपई सोरेन को सीएम बना दिया, जिसकी महंगी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी। जेल से बाहर आते ही चंपई से उन्होंने सीएम की कुर्सी ले ली तो वे बिदक गए। बाद में चंपई ने भाजपा ज्वाइन कर ली। हेमंत की जमानत मिलने पर चंपई ने इसे सत्य की जीत बताया था। अब उन्हें हेमंत सरकार को कठघरे में खड़ा करने से परहेज नहीं है।
ऐसे में सवाल उठता है कि अरविंद केजरीवाल किस राह पर चलेंगे। वे हेमंत सोरेन जैसी गलती करेंगे या लालू की तरह समझदारी से काम लेंगे। सुनीता को अगर केजरीवाल सीएम बनाते हैं तो पार्टी में किसी विवाद की गुंजाइश नहीं दिखती। अरविंद केजरीवाल के त्याग के आगे पार्टी के लिए यह बड़ी बात नहीं होगी। सुनीता अभी विधायक नहीं हैं, लेकिन संवैधानिक प्रावधानों के हिसाब से वे सीएम बन सकती हैं। अलबत्ता उन्हें छह महीने के अंदर विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होना होगा। दिल्ली में अगले साल फरवरी में विधानसभा के चुनाव होने हैं। तब तक ऐसे ही छह महीने निकल जाएंगे। उन्हें चुनाव लड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। केजरीवाल भी फ्री होकर चुनाव प्रचार के काम कर सकेंगे।
अरविंद केजरीवाल को जमानत देते समय सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह की शर्तें लगाई हैं, उसमें बतौर सीएम वे काम नहीं कर पाते। ऐसे में उन्होंने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। अगर सुनीता केजरीवाल को पार्टी ने सीएम बना दिया तो फैसले परोक्ष तौर पर अरविंद केजरीवाल ही लेंगे। इस्तीफा देकर उन्होंने जो विक्टिम कार्ड खेला है, उसका भी थोड़ा-बहुत लाभ मिलेगा ही। पार्टी और चुनाव के लिए भी उनके पास पर्याप्त समय होगा। इस्तीफा देकर वे यह भी दिखाना चाहते हैं कि उनके लिए सत्ता से अधिक जनता की चिंता है।

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